बीएचयू में पुरातत्वविद प्रो. वसंत शिंदे ने कहा कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भी एक अर्कैओजेनेटिक्स (पुरावांशिकी ) केंद्र की स्थापना की जरूरत है। इससे डीएनए की व्यवस्था और सभ्यताओं के अनुवांशिकी संबंधों को समझने में आसानी होगी।
अब जीन कुंडली से बीमारियों की जानकारी मिल सकती है। इस दिशा में वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। इसकी मदद से पता लगाने का प्रयास है कि कोई भी व्यक्ति कब व किस उम्र में बीमार होगा। ये भी पता चल जाएगा कि आने वाली पीढ़ी कौन किस रोग से ग्रसित हो सकता है। जीवन के अंतिम समय में कौन सी दवाइयां कारगर होंगी, इसका पता भी चल सकेगा।
यह कहना है बीएचयू में जूलोजी डिपार्टमेंट के प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे का। वह बीएचयू के महामना हॉल में शुक्रवार को आयोजित महामारियों के डीएनए के डिफेंस मैकेनिज्म पर आयोजित 23वें एसोसिएशन ऑफ डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड एसोसिएटेड टेक्नोलॉजी की तीन दिवसीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।
पुरातत्वविद प्रो. वसंत शिंदे ने कहा कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भी एक अर्कैओजेनेटिक्स (पुरावांशिकी ) केंद्र की स्थापना की जरूरत है।
इससे डीएनए की व्यवस्था और सभ्यताओं के अनुवांशिकी संबंधों को समझने में आसानी होगी। बेल्जियम से आए वैज्ञानिक प्रो. तूमस किविसिल्ड ने कहा कि अंग्रेजों ने औपनिवेशिक काल में संपूर्ण मानव जाति को रंग एवं शारीरिक स्वरूप के अनुसार विभाजित किया था, जो पूरी तरह से गलत है। मानव जाति का विभाजन डीएनए के आधार पर होना चाहिए। हम चाहे भारतीय हों, यूरोपियन या फिर अमेरिकन हमारा डीएनए मिश्रित होता है। डीएनए कई अलग-अलग अनुवांशिक तत्वों से मिलकर बनता है।
इटली के वैज्ञानिक प्रो. अलेक्सेंद्रो अकिली ने बताया कि भले ही मानव अफ्रीका से 65 हजार साल पहले निकला, लेकिन उसको अमेरिका पहुंचते-पहुंचते 48 हजार वर्ष लग गए। अमेरिका में सर्वप्रथम साइबेरिया के रास्ते ब्रेंजियन दर्रे को पार करते हुए मानव उत्तरी अमेरिका पहुंचा, लेकिन उत्तरी अमेरिका न रुकते हुए गर्म दक्षिणी अमेरिका जा पहुंचा। शोध में पता चलता है कि पहला मानव 17 हजार साल पहले अमेरिका पहुंचा था।
बीएचयू में इस तरह का सम्मेलन पहली बार हुआ
सम्मेलन का शुभारंभ एसोसिएशन ऑफ डीएनए फिंगर प्रिंटिंग एंड एसोसिएटेड टेक्नोलॉजी (एडनैट) के अध्यक्ष प्रो. सतीश कुमार, विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. अनिल कुमार त्रिपाठी, प्रो. मधुलिका अग्रवाल व प्रो. अरबिंद आचार्या ने किया। प्राे. सतीश ने कहा कि एडनैट की स्थापना भले ही कुलपति डॉ. लालजी सिंह ने की थी, लेकिन इस तरह का सम्मेलन बीएचयू में पहली बार हो रहा है। प्रो. अनिल कुमार त्रिपाठी ने कहा कि महात्मा बुद्ध, कबीर और तुलसी का केंद्र आज भी कई शताब्दियों से जीवंत है। कार्यक्रम का आयोजन आईआईटी बीएचयू, प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग एवं सेंटर फॉर जेनेटिक डिसऑर्डर के संयुक्त प्रयास से हो रहा है। इसमें 15 देशों के 21 वैज्ञानिक शामिल हो रहे हैं। इस मौके पर प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे, डॉ. चंदना बसु, प्रो ब्रिंदा परांजपे, डॉ. वी. रामानाथन, डॉ. सचिन तिवारी, डॉ. आकिब मौजूद रहे।
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