नई दिल्ली । पिछले दो माह में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने 2024 लोकसभा चुनाव के तहत दक्षिण में हुई भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विरोधी दो अलग-अलग सभाओं में भाग लिया, लेकिन केंद्रीय नेता को लेकर अब भी असमंजस कायम है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को पूरी तरह स्पष्ट कर अपनी पार्टी का नाम भी बदल दिया है, जबकि तमिलनाडु के सीएम एम के स्टालिन ने इस बात पर जोर दिया कि वह पहले से ही राष्ट्रीय परिदृश्य में हैं।
स्टालिन ने एक मार्च को अपने जन्मदिन की रैली में केंद्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को हटाने के प्रयासों में कांग्रेस को अहम ताकत बताया, लेकिन तीसरे मोर्चे की संभावनाओं पर भी पानी फेरने की कोशिश की। राव एवं स्टालिन क्षेत्रीय क्षत्रप साबित हुए हैं, जो भाजपा की ताकत का मुकाबला कर सकते हैं, दोनों को ही हाल में शीर्ष राष्ट्रीय नेताओं के साथ देखा गया है।
भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) द्वारा 18 जनवरी को खम्मम में हुई बैठक में अगले साल केंद्र में सत्ता परिवर्तन के लिए स्पष्ट आह्वान किया गया, तब स्टालिन के 70वें जन्मदिन पर चेन्नई में आयोजित रैली में विपक्षी एकता पर जोर दिया गया। बीआरएस नीत बैठक में केंद्र में सरकार बदलने की आवश्यकता को लेकर प्रतिबद्धता जाहिर की गई, जबकि चेन्नई में आयोजित कार्यक्रम में समाजवादी सोच के साझा जुड़ाव को रेखांकित किया और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला जैसे नेताओं ने स्टालिन के बड़ी भूमिका निभाने की वकालत की। कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि उनकी पार्टी और द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) का साझा सामाजिक दृष्टिकोण है।
वहीं इस पूरे प्रकरण में राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि खम्मम में आयोजित बैठक को तेलंगाना के मुख्यमंत्री की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को पेश करने के लिए उनके शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखा गया, लेकिन जनसभा में राजनीतिक दुविधा नजर आई। केसीआर ने न तो बीआरएस के एजेंडे के बारे में कुछ बताया और न ही उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपने राजनीतिक मित्रों के बारे में कोई संकेत दिया। उन्होंने कहा कि केसीआर के कार्यक्रम के लिए आए नेताओं में केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अलावा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के शीर्ष नेता डी राजा शामिल थे, लेकिन उन्होंने भी केसीआर को अपना नेता घोषित नहीं किया। चेन्नई स्थित राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा कि दोनों समूह 2024 में मोदी को हारते देखना चाहते हैं, लेकिन वे इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि किसे नेतृत्व करना चाहिए। उन्होंने कहा, गठबंधन का नेतृत्व किसे करना चाहिए, इस बात को लेकर विपक्षी दलों में असमंजस की स्थिति है। इस तरह की दुविधा और असहयोग के कारण मोदी अगले साल तीसरी बार अपनी सरकार बना लेने वाले हैं।
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