भोपाल । मप्र इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एमपीआईडीसी) इंदौर-पीथमपुर इकोनॉमिक कॉरिडोर के लिए जमीन भूस्वामियों और किसानों की सहमति के आधार पर ही लेगा। जमीन लेने की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ रही है। पिछले दिनों 850 जमीन मालिकों को दावे-आपत्तियों की सुनवाई के लिए बुलाया था। अब इसी महीने आपत्तियों की सुनवाई का एक दौर होगा। इसमें लगभग 100 आपत्तिकर्ताओं की सुनवाई होगी। पिछली सुनवाई के दौरान ये आपत्तिकर्ता अनुपस्थित थे। इंदौर-पीथमपुर इंडस्ट्रियल कॉरिडोर योजना 1300 हेक्टेयर जमीन पर आकार लेगी।
योजना के तहत 75 मीटर चौड़ी सड़क के दोनों तरफ 300-300 मीटर जमीन ली जाएगी, जहां व्यावसायिक, औद्योगिक और आवासीय गतिविधियों के विकसित भूखंड तैयार जाएंगे। यह कॉरिडोर दो हिस्सों में बंटा होगा। पहला हिस्सा इंदौर के सुपर कॉरिडोर जंक्शन से पीथमपुर तक बनेगा और दूसरा पीथमपुर से आगरा-मुंबई राजमार्ग की तरफ सिमचा तक रहेगा। दोनों हिस्सों की कुल लंबाई लगभग 19.50 किलोमीटर होगी। यह कॉरिडोर केंद्र सरकार की दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर की तर्ज पर तैयार किया जा रहा है। अब तक एमपीआईडीसी ने प्रोजेक्ट क्रियान्वयन की कोई समय सीमा तो तय नहीं है, लेकिन योजना पर तेजी से काम हो रहा है। एममपीआईडीसी का मानना है कि कॉरिडोर बनने से समग्र रूप से व्यावसायिक और औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा और पीथमपुर देश-विदेश के निवेशकों व कंपनियों के लिए बेहतरीन विकल्प के रूप में उभरेगा।
1200 से 1500 करोड़ के खर्च का अनुमान
एमपीआईडीसी के कार्यकारी निदेशक रोहन सक्सेना ने स्पष्ट किया कि कॉरिडोर चौड़ाई घटाने-बढ़ाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। यह जस की तस रहेगी। योजना के लिए जमीन अनिवार्य जमीन अधिग्रहण से नहीं, बल्कि आपसी सहमति के आधार पर ली जा रही है। फरवरी अंत तक दावे-आपत्तियों की सुनवाई कर उनका जल्द निराकरण किया जाएगा। इसके बाद आगे की कार्यवाही होगी। सक्सेना के मुताबिक अब तक प्रोजेक्ट क्रियान्वयन की अनुमानित लागत तो नहीं सटीक रूप से तय नहीं है, लेकिन इस पर प्रदेश सरकार 1200 से 1500 करोड़ रुपए खर्च करेगी। इस प्रोजेक्ट से पीथमपुर के विकास में नई गति मिलने की उम्मीद है।
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.