सनातन धर्म में माता लक्ष्मी को धन, वैभव और सुख समृद्धि की देवी कहा गया है। मान्यता है कि इनकी इच्छा के बिना किसी जातक को भौतिक सुखों की प्राप्ति नहीं होती है,ऐसे में हर कोई महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के तरीके खोजता रहता है जिससे उन्हें धन सुख और समृद्धि आदि का सुख प्राप्त हो।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवी लक्ष्मी को भगवान विष्णु की पत्नी कहा गया है। ऐसे में अधिकतर लोगों के मन में ये प्रश्न उठता है कि देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से ही विवाह क्यों किया, अगर आप भी इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए उत्सुक है तो आज का हमारा ये लेख आपको पूरा पढ़ना होगा।
धार्मिक कथा के अनुसार जब समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी प्रकट हुई तब सारी सृष्टि बिजली की तरह जगमगा ने लगी। देवी लक्ष्मी के सौंदर्य, यौवन, रूप रंग और महिमा ने हर किसी का मन मोह लिया। ऐसे में हर कोई चाहे वह मनुष्य हो, असुर हो या देवता हो सभी देवी लक्ष्मी को प्राप्त करना चाहते थें सभी ने देवी का आदर सत्कार किया। जिसके बाद माता लक्ष्मी अपने हाथों में कमल पुष्पों की एक माला लिए अच्छे और सुयोग्य वर से विवाह के लिए आगे बढ़ी। लेकिन तलाश करने के बाद भी उन्हें सुयोग्य वर की प्राप्ति नहीं हुई।
देवी लक्ष्मी ने गन्धर्व, सिद्ध, यक्ष, असुर और देवताओं में कुछ न कुछ कमी देखी जिस कारण उन्होंने इनमें से किसी को भी नहीं चुना। इसके बाद देवी लक्ष्मी ने काफी विचार करके भगवान श्री विष्णु का वरण किया, क्योंकि श्री हरि सभी सद्गुणों से परिपूर्ण है। ऐसे में देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु के गले में कमल के पुष्पों का हार डाला और विष्णु को प्राप्त कर उनकी धर्म पत्नि कहलाई।
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