छिंदवाड़ा। पारंपरिक देसी आटा चक्कियां अब भले ही हमारे घरों में प्रचलन में न हों, लेकिन इनसे पीसे अन्न की बात ही निराली होती थी। एक जमाना था जब गांव हो या शहर सब जगह आटा पीसने के लिए हाथ की बनी चक्कियों का उपयोग किया जाता था। हालांकि ग्रामीण घरों में कहीं-कहीं अब भी ऐसी चक्कियां देखने को मिल जाती हैं। पर्यटन विकास के लिए जुटे स्थानीय विनोद एम. नागवंशी ने बताया कि तामिया के सावरवानी होम स्टे काटेज में आए दो विदेशी मेहमानों ने यहां के घरों में प्रचलित देसी आटा चक्की को घुमाने का रोमांच अनुभूत किया। उन्होंने अपने हाथों से चक्की चलाते हुए गेहूं पीसकर देखा और इसके बारे में जानकारी प्राप्त की। बाद में इसी देसी चक्की के आटे से मिट्टी के चूल्हे में पकी हुई रोटियों का स्वाद चखा। आपको बता दें कि ये चक्की दो सपाट, गोल पीसने वाले पत्थरों से बनी होती है, जिन्हें एक के ऊपर एक रखा जाता है। यह हमारे प्राचीन घरों में एक कोने में रखी होती थी, जिसमें गेहूं, मक्का, चना और बाजरा जैसे अनाज को हर दिन ताजा पीसा जाता था और परिवार की सभी महिलाएं इस दैनिक अनुष्ठान में भाग लेती थी, गाना गाती हुए धीमे-धीमे अनाज पीसती जाती थी और इस तरह से तैयार हुए आटे से वे शाम को मिट्टी के चूल्हे में लकड़ी जलाकर और एक मटके की खोपड़ी जिसे खपरी भी कहते है, से स्वस्थ रोटियां पकाकर परिजनों को परोसती थी। ग्रामीण इलाकों में ये आज भी देखने को मिलती हैं इन चक्कियों में चुन्नी, बेसन, दलिया, आटा और दालें बनाई जाती है। घर में प्रसंस्कृत दालें बिना पॉलिश की होती हैं हालांकि बिना पालिश की हुई दालें अब बाजार में प्रीमियम कीमत पर आसानी से उपलब्ध हैं, इन्हें केवल मशीनों द्वारा संसाधित किया जाता है, इनसे बने दलिया और चुन्नी पौष्टिक प्रदान करते हैं। घर में दादी मां प्रसव को आसान बनाने के लिए अक्सर गर्भवती महिलाओं को चक्की चलाने की सलाह देती थी। चक्की चालानासन योग का एक हिस्सा है जो रीढ़ की सेहत में सुधार करता है और पीठ दर्द को कम करता है। यह पेट की चर्बी कम करने में भी मदद करता है यह जिम जाने का एक अच्छा विकल्प है।
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