शिवपुराण में कथा आती है कि भगवान शिव माता पार्वती का गौना कराकर काशी लौटे तो समस्त देवी, देवता, मनुष्य, यक्ष, गन्धर्व और किन्नरों ने खूब जश्न मनाया और होली खेली. चूंकि यह जश्न सभ्य लोगों ने आयोजित किया था, इसलिए भगवान शिव की प्रेरणा से उनके सबसे प्रिय भूत, प्रेत, पिशाच व तमाम दृश्य तथा अदृश्य शक्तियां इस जश्न में शामिल नहीं हो सकी थी. ऐसे में बाबा विश्वनाथ ने अपने अघोरेश्वर स्वरुप में मसाने की होली खेली थी.
तमाम बंदिशों के बावजूद भी बाबा अघोरेश्वर के भक्तों ने इस बार भी परंपरा के मुताबिक जलती चिताओं के पास गर्म गर्म राख से होली खेली. इस होली में बड़ी संख्या में नागा साधू और संन्यासी भी पहुंचे थे. इन संतों ने भी अपने अखाड़ों की परंपरा के मुताबिक होली खेली.
नजर आया भयावह दृष्य
दुनिया में महा श्मशान के रूप में विख्याति मणिकर्णिका पर एक तरफ चिता धधक रही थी, वहीं पास में ही बाबा अघोरेश्वर के भक्त जलती चिता में से राख उठाकर एक दूसरे के ऊपर उड़ा रहे थे. इस दौरान हाथों में डमरू बजाते कई भक्तों ने गले में नरमुंडों की माला भी पहन रखी थी. इस दुर्लभ दृश्य को देखने के लिए हजारों की संख्या में देशी विदेशी भक्त घाट पर उमड़े थे.
हालांकि इस बार सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस और प्रशासन काफी एक्टिव नजर आया. पहले ही मसाने की होली में डीजे पर रोक लगा दी गई थी और ड्रोन उड़ाने की भी अनुमति नहीं दी गई. कहा जाता है कि दुनिया भर में कहीं भी मौत होती है तो लोग दुखी हो जाते हैं, लेकिन काशी में ठीक उल्टा होता है.
मौत पर जश्न का नजारा
यहां मौत पर भी जश्न मनाया जाता है. मंगलवार को मसाने की होली में आए लोगों ने इस बात को चरितार्थ भी किया. चूंकि पुलिस ने डीजे नहीं बजाने दिया, ऐसे में बाबा के भक्तों ने डमरुओं की गड़गड़ाहट के बीच मसाने की होली खेली. इसके लिए विश्वनाथ मंदिर में दोपहर की आरती के बाद विधि विधान से बाबा मसान नाथ की पूजा हुई और फिर बाबा से मसाने की होली की अनुमति लेकर तीन घंटे तक चिता भस्म के साथ होली खेली गई.
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