वक्फ बिल के खिलाफ सड़क पर उतरेंगे मुसलमान, CAA-NRC की तरह बना पाएंगे दबाव?

संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण सोमवार से शुरू हो गया है, जो 4 अप्रैल तक चलेगा. मोदी सरकार वक्फ संशोधन बिल को संसद में पेश कर, उसे पास कराने की तैयारी में है. वक्फ बिल के खिलाफ मुस्लिम तंजीमें सड़क पर उतरने जा रही हैं. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से लेकर जमियत उलेमा-ए-हिंद सहित तमाम मुस्लिम संगठनों 13 मार्च को दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन करेंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि सीएए-एनआरसी की तरह आंदोलन खड़ा कर मुस्लिम तंजीमें क्या मोदी सरकार पर दबाव बनाने में कामयाब हो पाएंगी?

मोदी सरकार वक्फ बिल को हरहाल में पास करने की तैयारी की है. नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू और चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी जैसे सहयोगी दल संसद की संयुक्त समिति (जॉइंट कमेटी) की ओर से मंजूर किए गए संशोधनों के साथ वक्फ संशोधन बिल का समर्थन करेंगे. मोदी कैबिनेट ने भी संशोधनों को मंजूरी दे दी है. ये तय माना जा रहा है कि सरकार इसी सत्र में वक्फ बिल को पास कराएगी. इस तरह ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस मुद्दे पर मोदी सरकार से आर पार का ऐलान कर दिया है.

होली से एक दिन पहले मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहित अन्य मुस्लिम तंजीमों ने वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ दिल्ली के जंतर मंतर पर वक्फ बिल के खिलाफ एक बड़े आंदोलन को कॉल दी है. AIMPLB के अध्यक्ष खालिद सैफुल्लाह रहमानी का एक रिकॉर्डेड मैसेज व्हाट्सएप, फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया के जरिए सर्कुलेट किया जा रहा है. सैफुल्लाह रहमानी ने दीन का हवाला देते हुए मुस्लिमों से कह रहे हैं कि जाग जाओ, घरों से निकलो, अगर वक्फ बिल पास हो गया, तो कहीं के नहीं रहोगे, तुम्हारी संपत्तियों पर सरकार कब्जा कर लेगी. अगर ये सब रोकना है तो एकजुट हो जाओ, 13 मार्च को दिल्ली पहुंचो और सरकार को अपनी ताकत दिखाओ.

‘धार्मिक अधिकारों के लिए प्रदर्शन जरूरी’

जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने लिखित बयान जारी कर कहा कि मुसलमानों को अपने अधिकारों की बहाली के लिए सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर किया जा रहा है. पिछले बारह वर्षों से मुसलमान धैर्य और संयम का परिचय दे रहे हैं, लेकिन अब जब वक्फ संपत्तियों के संबंध में मुसलमानों की चिंताओं और आपत्तियों को नजरअंदाज कर जबरन असंवैधानिक कानून लाया जा रहा है, तो फिर विरोध प्रदर्शन के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता. खासकर अपने धार्मिक अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन करना देश के हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है.

अरशद मदनी ने कहा कि हम ऐसा कोई कानून स्वीकार नहीं करेंगे जो शरीयत के खिलाफ हो. मुसलमान हर चीज से समझौता कर सकता है, लेकिन अपनी शरीयत से नहीं. यह मुसलमानों के अस्तित्व का नहीं बल्कि उनके अधिकारों का सवाल है. मौलाना मदनी के सुर में सुर मिलाते हुए AIMPLB के उपाध्यक्ष उबैदुल्ला खान आजमी ने मुसलमानों को शाहबानो केस की याद दिलाई. उन्होंने याद दिलाया कि सारे मुसलमानों ने एक होकर शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन किया तो उस वक्त राजीव गांधी सरकार को झुकना पड़ा था, अब हालात उससे भी ज्यादा खतरनाक है.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य और शिया मौलाना कल्बे जव्वाद की अगुवाई में प्रदर्शन हो चुका है. रमजान के पहले जुमे की नमाज के बाद वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ एक बड़ा प्रदर्शन हुआ है. बड़ा इमामबाड़ा स्थित आसिफी मस्जिद में शिया मौलाना कल्बे जव्वाद ने नमाज के बाद अपने समर्थकों के साथ विरोध जताया. मौलाना ने इस कानून को मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए कहा कि वक्फ बिल में जो शर्तें लगाई गई हैं, वे सिर्फ मस्जिदों के लिए हैं, जबकि ऐसे नियम मंदिरों पर लागू नहीं होते.

सरकार छीनना चाहती है संपत्ति- इलियास

मौलाना सैफुल्लाह रहमानी, अरशद मदनी से लेकर उबैदुल्ला आजमी, मौलाना कल्बे जव्वाद और असदुद्दीन ओवैसी मुसलमानों को ये बात समझाने की कोशिश में हैं कि वक्फ संशोधन बिल अगर पास हो जाता है, तो उनकी प्रॉपर्टी छिन जाएगी, मदरसों और कब्रिस्तानों की जमीन सरकार ले लेगी. ऐसे में वक्फ संपत्तियों को बचाने के लिए मुसलमानों को सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करने का ऐलान किया है.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से लेकर जमियत उलेमा-ए-हिंद सहित मुस्लिम तंजीमों ने 13 मार्च को दिल्ली के जंतर मंतर को विरोध प्रदर्शन के लिए चुना है. बोर्ड का पूरा केंद्रीय नेतृत्व, धार्मिक संगठनों के नेता, सामाजिक कार्यकर्ता व मुस्लिम समाज के लोग बड़ी संख्या में शामिल होंगे. माना जा रहा है कि दिल्ली-एनसीआर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और मेवात के मुसलमानों से प्रदर्शन में भारी तादाद में शामिल होने की अपील की गई है, लेकिन सिर्फ दिल्ली तक आंदोलन सीमित रहेगा या फिर सीएए-एनआरसी की तरह जन आंदोलन में भी तब्दील हो पाएगा.

AIMPLB के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने कहा कि अगर वक्फ संशोधन बिल पारित हुआ, तो मुस्लिम समाज की वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा पर गंभीर संकट आ सकता है. इसलिए यह हमारा धार्मिक कर्तव्य और राष्ट्रीय सम्मान का विषय है कि हम इसका पुरजोर विरोध करें. इसके लिए देश की सड़कों पर भी मुसलमानों को उतरना पड़ा तो पीछे नहीं हटेंगे. वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ अलग-अलग जगहों पर विरोध प्रदर्शन करेंगे, क्योंकि सरकार की नजर हमारी संपत्ति पर है और वो उसे छीनना चाहती है.

सरकार पर दबाव बनाना मुश्किल

वरिष्ठ पत्रकार यूसुफ अंसारी कहते हैं कि मोदी सरकार जो वक्फ संशोधन बिल लेकर आई है, उसका समर्थन तो नहीं किया जा सकता. सरकार की मंशा वक्फ संपत्तियों को संरक्षण करने की नहीं है बल्कि उस पर अपना कब्जा जमाने की है. मुस्लिम तंजीमों और उलेमाओं ने वक्फ संसोधन बिल को लेकर विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया है, जमियत उलेमाएं हिंद के उसमें शामिल होने के चलते पश्चिम यूपी से लेकर मेवात इलाके के लोग बड़ी संख्या में शामिल होंगे, लेकिन आंदोलन का रूप अख्तियार करेगा और सरकार पर किसी तरह का दबाव बनाने में सफल होना मुश्किल है. सीएए-एनआरसी के खिलाफ खड़े हुए आंदोलन का रूप नहीं ले पाएगा.

यूसुफ अंसारी कहते हैं कि सीएए-एनआरसी का मुद्दा सभी मुसलमानों के साथ जुड़ा हुआ था, जबकि वक्फ बिल का मामला अलग है. सीएए-एनआरसी से हर नागरिक प्रभावित हो रहा था, जिसके लिए मुस्लिम ही नहीं तमाम दूसरे धर्म के लोग विरोध प्रदर्शन में शामिल थे. वक्फ का मामला मुसलमानों के कुछ लोगों से जुड़ा हुआ है. वक्फ संपत्तियों पर सरकार या फिर रसूख मुस्लिमों और मिल्ली तंजीमों का ही कब्जा है. इसीलिए आम मुसलमान वक्फ के मामले में खुद को नहीं जोड़ पा रहा है.

वरिष्ठ पत्रकार की मानें तो मुस्लिम संगठन से जुड़े हुए लोग जरूर वक्फ बिल के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन में शामिल हो जाएं, लेकिन जन आंदोलन में उसे तब्दील करना भी मुस्लिम लग रहा है. वक्फ के मामले में आम लोग बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं हो रहे हैं. वक्फ बिल अगर पास होता है तो उसके असर मुस्लिम तंजीमों पर पड़ेगा, क्योंकि वक्फ संपत्तियों पर उनका ही कब्जा है. इसीलिए मिल्ली तंजीमों ने उसे इस्लामिक शरीयत के साथ जोड़कर मुस्लिमों का समर्थन जुटाना चाहती है. इस मामले में वो सफल भी रह सकती हैं, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से लेकर दूसरी मिल्ली तंजीमों के पास आगे की लड़ाई लड़ने का रोडमैप नहीं है. इसीलिए सिर्फ खानापूर्ति करने को जंतर-मंतर पर उतर रही हैं, उससे न ही सरकार पर दबाव बनने जा रहा है और न ही समाज पर.

‘मिल्ली तंजीम के लिए करो या मरो जैसे स्थिति’

वहीं, वक्फ वेलफेयर फोरम के चेयरमैन जावेद अहमद कहते हैं कि वक्फ बिल को लेकर मिल्ली तंजीम के लिए करो या मरो जैसे स्थिति हो गई है. वक्फ को लेकर अगर नहीं उतरते हैं तो मुस्लिम समाज के बीच किसी मुंह से जवाब देंगे और समाज पहले से ही संदेह की नजर से देख रहा है. मुस्लिम तंजीमों का पूरा आधार कौम-मिल्लत पर टिका हुआ. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड या फिर दूसरी मिल्ली तंजीमों ने जंतर-मंतर पर उतरने का ऐलान किया है, लेकिन वक्फ को बचाने को लेकर जन-आंदोलन में तब्दील करने का स्पष्ट प्लान नहीं है. इसीलिए मुझे बहुत ज्यादा असर होता नहीं दिख रहा, जन-आंदोलन के बाद ही सरकार पर दबाव बन सकता था, जिस तरह से सीएए-एनआरसी के खिलाफ सड़क पर मुस्लिम समाज उतरकर सरकार को बैकफुट पर करने में कामयाब रहा.

जावेद अहमद कहते हैं कि वक्फ बिल संसद की टेबल रखने के बाद सरकार और अपने रास्ते पर आगे बढ़ेगी, उसके बाद ही मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड या फिर मुस्लिम तंजीमों के आंदोलन की रूपरेखा सामने आ सकेगी. पर्सनल लॉ बोर्ड ने जरूर आंदोलन करने की रणनीति बनाई है, लेकिन मुस्लिम तंजीमें कितने दिनों तक एक साथ रहेंगी, ये बड़ा सवाल है. वक्फ बिल संबंधी जेपीसी के सामने मजबूती से अपनी बातें नहीं रख सकी है और अब विरोध प्रदर्शन कर सिर्फ लाइमलाइट में खुद को बनाए रखने की रणनीति है.

विरोध प्रदर्शन की टाइमिंग पर सवाल

वक्फ बिल के खिलाफ जंतर-मंतर पर होने वाले विरोध प्रदर्शन की टाइमिंग पर यूसुफ अंसारी और जावेद अहमद दोनों से सवाल खड़े किए हैं. 14 मार्च को होली है और 13 मार्च को होली दहन के दिन ही जंतर-मंतर पर वक्फ बिल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया है. रमजान का महीना है और देशभर के मुस्लिम समुदाय के लोग दिल्ली आ रहे हैं. इसके अलावा पश्चिमी यूपी और मेवात क्षेत्र के लोग भी भारी संख्या में विरोध प्रदर्शन के लिए दिल्ली आएंगे. जुमे के दिन होली पड़ने के चलते पहले से ही विवाद चल रहा है. ऐसे में अगर दिल्ली में प्रदर्शन के दौरान या फिर वापसी करते हुए किसी ने होली का रंग फेंक दिया तो उससे माहौल खराब हो सकता है. इसे लेकर मुस्लिम तंजीमों को विरोध प्रदर्शन के लिए समय का चयन करते समय ध्यान रखना चाहिए था, लेकिन इसे लेकर उनके पास कोई गंभीर प्लानिंग नहीं है.

वहीं, मोदी सरकार का दावा ये है कि ये कानून सिर्फ वक्फ प्रॉपर्टी को रेगुलेट करने के लिए लाया जा रहा है. वक्फ बोर्ड जैसे पहले थे, वैसे ही रहेंगे. बस इतना फर्क आएगा कि जिस प्रॉपर्टी पर वक्फ बोर्ड ने हाथ रख दिया, वो उसकी नहीं हो पाएगी. वक्फ बोर्ड के लोग वक्फ प्रॉपर्टी का खुद-बुर्द नहीं कर पाएंगे. वक्फ बोर्ड में महिलाओं का प्रतिनिधित्व रहेगा. वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी से कब्जा हटाने का रास्ता खुलेगा और अब तक इस मामले में वक्फ बोर्ड का जो एकाधिकार है, वो खत्म हो जाएगा. मोदी सरकार का कहना है कि जो नया कानून बनेगा, उसमें वक्फ बोर्ड के फैसले को कोर्ट में चुनौती देने का अधिकार होगा. वक्फ बिल को लेकर मोदी सरकार और मुस्लिम तंजीमों की अलग-अलग बातें सामने आ रही हैं.

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