मोहन भागवत के बिहार दौरे के सियासी मायने, लोकसभा चुनाव के बाद BJP को RSS से कैसे मिलता रहा बूस्टर?

बिहार में विधानसभा चुनाव की सियासी बिसात अभी से बिछाई जाने लगी है. चुनावी सरगर्मी के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत आज यानी बुधवार शाम को पांच दिनों के दौरे पर बिहार पहुंच रहे हैं. भागवत तीन दिन मुजफ्फरपुर में रहेंगे, तो दो दिन बिहार के अलग-अलग क्षेत्र में रहेंगे. इस दौरान संघ प्रमुख आरएसएस के कार्यकर्ताओं से मुलाकात करेंगे और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करेंगे. 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले मोहन भागवत के बिहार आने के सियासी मायने तलाशे जाने लगे हैं.

मोहन भागवत गुरुवार को सुपौल के वीरपुर में एक विद्यालय का उद्घाटन करेंगे. इसके बाद स्वयंसेवकों के साथ एक बैठक करेंगे. संघ प्रमुख अपने पांच दिनों के दौरे पर विभिन्न संगठनों के पदाधिकारियों, स्वयंसेवकों और आम लोगों से मुलाकात करेंगे. समाज और राष्ट्र निर्माण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करेंगे. भागवत बिहार दौर पर हिंदुत्व, शिक्षा और सामाजिक एकता जैसे विषयों पर चर्चा करने के साथ-साथ सियासी धार देते नजर आएंगे. संघ प्रमुख के कार्यक्रम के जरिए विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच संवाद और तालमेल बढ़ाने की कवायद मानी जा रही है.

भागवत के बिहार दौरे के मायने

संघ प्रमुख मोहन मोहन भागवत का बिहार दौरा कई मायने में खास है. यह पहला मौका होगा जब भागवत भारत-नेपाल बॉर्डर पर किसी कार्यक्रम को संबोधित करेंगे. 2020 के बाद सुपौल में संघ प्रमुख का यह पहला बड़ा कार्यक्रम है, जिसमें वो इतने दिनों तक बिहार में समय देंगे और संगठन के कार्य और तैयारी का जायजा लेंगे. मुजफ्फरपुर जिले में अलग-अलग जगहों पर जाएंगे और संघ के स्वयंसेवक से बात करेंगे.

बिहार में सात महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं, बीजेपी के लिए काफी अहम माना जा रहा है. इसीलिए संघ प्रमुख का दौरा राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान हाल ही में बिहार का दौरा कर चुके हैं, जिससे चुनावी माहौल और गर्म हो गया है. बीजेपी इस बार बिहार को लेकर पूरी तरह से चुनावी मोड में उतर चुकी है और उसकी नजर सत्ता के सिंहासन पर है. ऐसे में संघ बीजेपी के सियासी मकसद में काफी मददगार साबित हो सकता है. इसीलिए संघ प्रमुख के दौरे को सियासी नजरिए से देखा जा रहा है.

महाराष्ट्र-दिल्ली-हरियाणा में संघ आया काम

2024 के लोकसभा चुनाव में कहा गया कि आरएसएस एक्टिव नहीं रहा. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी एक सवाल के जवाब में कहा था कि बीजेपी अब चुनाव लड़ने और जीतने में सक्षम है, आरएसएस के बिना भी लड़ सकती है. चुनाव नतीजे आए तो बीजेपी अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा हासिल नहीं कर सकी और पीएम मोदी को तीसरी बार सरकार बनाने के लिए सहयोगी दलों का सहारा लेना पड़ा. लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में संघ ने जबरदस्त मदद कर बीजेपी को जिताया ही नहीं बल्कि प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने में मदद की.

दिल्ली की 70 सीटों में से बीजेपी 48 सीटें जीतकर 27 साल बाद सत्ता में लौटी. बीजेपी 1998 के बाद पहली बार सरकार बनाने जा रही है. हरियाणा में बीजेपी सत्ता की हैट्रिक लगाने में कामयाब रही, तो महाराष्ट्र में प्रचंड जीत के लिए इतिहास रचा. लोकसभा चुनाव के बाद लग रहा था महाराष्ट्र और हरियाणा जीतना बीजेपी के लिए मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि एनडीए के घटक दलों की सीटें बहुत घट गई थीं.

लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने जिस तरह से हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में बंपर जीत दर्ज की है, उसमें संघ की अहम भूमिका रही. संघ अपनी कार्यशैली के अनुरूप, बिना लाइमलाइट में आए वोटर्स के बीच बीजेपी के पक्ष में माहौल मजबूत किया. संघ से जुड़े हुए लोगों ने साइलेंट रहते हुए वोटरों में जागरूकता अभियान चलाया. हजारों ड्राइंग रूम बैठकों के जरिए माहौल बनाकर बीजेपी के पक्ष में चुनाव को कर दिया.

बिहार में बीजेपी के लिए बनाएगा माहौल

आरएसएस भले ही कहता रहे कि वो किसी भी विशेष राजनीतिक पार्टी के समर्थन में वोट देने के लिए नहीं कहता है, लेकिन ऐसे मुद्दों पर बात करते हैं जो लोगों को प्रभावित करते हैं और बीजेपी के जीत का आधार बनते हैं. आरएसएस अपने सभी सहयोगी संस्थाओं के साथ मिलकर छोटे-छोटे स्वयंसेवकों की टोलियां बनाकर काम करती है. आरएसएस के स्वयंसेवकों ने मोहल्ले और गांव में बैठक कर राष्ट्रीय मुद्दे, हिंदुत्व, सुशासन, विकास, जनकल्याण और स्थानीय मुद्दों पर चर्चा करचुनावी बाजी बीजेपी के पक्ष में कर दी थी. संघ इस रणनीति को बिहार के चुनाव में भी आजमाएगी कि नहीं, यह देखना होगा, लेकिन संघ प्रमुख के दौरे से सियासी माहौल गरमा गया है.

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