दुष्कर्म सहित अन्य गंभीर अपराधों में भी बेटियों और महिलाओं को न्याय नहीं मिल पा रहा है। स्थिति यह है कि लगभग 75 प्रतिशत मामलों में आरोपित बच निकलते हैं। इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि दबाव में पीड़िताएं अपना बयान बदल लेती हैं।
इसके अतिरिक्त साक्ष्य संकलन की कमजोरियां और विवेचना में देरी के चलते भी पीड़िताओं को न्याय नहीं मिल पा रहा है। गृह विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में गंभीर महिला अपराधों के संबंध में 7048 मामलों पर जिला एवं सत्र न्यायालयों में निर्णय हुआ।
21 प्रतिशत मामलों में ही सजा हुई
इनमें 5571 में आरोपित बरी हो गए। मात्र 1477 मामलों में ही सजा हो पाई। इस तरह कुल 21 प्रतिशत मामलों में ही सजा हुई। इसी तरह से वर्ष 2024 में जनवरी से सितंबर के बीच 4357 प्रकरणों में निर्णय हुआ। इसमें 835 में ही सजा हुई।
3522 मामलों में आरोपित बच गए यानी 19 प्रतिशत में ही दंड मिला। इनमें दुष्कर्म, सामूहिक दुष्कर्म, दुष्कर्म के बाद हत्या, हत्या, हत्या के प्रयास, एसिड अटैक, दहेज हत्या आदि मामले शामिल हैं। साक्ष्य संकलन में बड़ी कमजोरी फोरेंसिक टीम की कमी है। बड़े अपराधों में ही फोरेंसिक टीम मौके पर पहुंच पा रही है।
चार हजार से अधिक डीएनए सैंपलों की जांच अटकी, न्याय में देरी
महिला अपराधों में सजा की दर कम होने के साथ ही सरकारी प्रक्रिया में ढिलाई के चलते न्याय मिलने में भी देरी हो रही है।
हाल यह है कि प्रदेश की विभिन्न लैब में चार हजार से अधिक डीएनए सैंपलों की जांच अटकी है। अभियोजन प्रक्रिया में विलंब होने पर कोर्ट को सैंपल की जांच रिपोर्ट मांगने के लिए पत्र लिखना पड़ा रहा है।
विवेचना अधिकारियों की कमी
प्रदेश पुलिस में लगभग 25 हजार विवेचना अधिकारी हैं, जबकि प्रदेश में लगभग पांच लाख अपराध प्रतिवर्ष कायम हो रहे हैं। इनमें 30 हजार से अधिक अपराध महिलाओं के विरुद्ध होते हैं।
प्रदेश में पुलिस का स्वीकृत बल एक लाख 26 हजार का है, जबकि पदस्थ मात्र एक लाख ही हैं। विवेचना का अधिकार प्रधान आरक्षक या ऊपर के पुलिसकर्मी को रहता है।
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