महाकुंभ में नागा साधुओं का महत्व बहुत ज्यादा होता है. उनके बिना महाकुंभ शुरू नहीं हो पाता. परंपरा के मुताबिक, सबसे पहले नागा साधु (Naga Sadhu) ही अमृत स्नान (Amrit Snan) करते हैं. उसी के बाद बाकी के श्रद्धालु स्नान करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं, कई नागा साधु महीनों या सालों तक नहीं नहाते. इसके पीछे एक खास वजह है. नागा साधुओं का मानना है कि राख (भस्म) का लेप और ध्यान-योग से ही शुद्धि होती है. इसलिए वो सिर्फ भस्म या धुनि ही बदन पर लगाए रखते हैं. नागा साधू अपनी साधना में शरीर की बाहरी शुद्धता से अधिक आंतरिक शुद्धता पर ध्यान केंद्रित करते हैं.
वहीं, कुछ साधू नियमित अंतराल पर स्नान करते हैं, विशेषकर अगर उनकी साधना की परंपरा इसकी अनुमति देती हो. नागा साधूओं के स्नान का कोई सटीक नियम या समय निर्धारण नहीं होता है, क्योंकि यह उनकी साधना, परंपराओं और व्यक्तिगत तपस्या पर निर्भर करता है.
नागा साधुओं के बारे मे ये भी कहा जाता है की वे पूरी तरह निर्वस्त्र रह कर गुफाओं और कन्दराओं में कठोर तप करते हैं. नागा साधुओं के अनेक विशिष्ट संस्कारों में ये भी शामिल है कि इनकी कामेन्द्रियन भंग कर दी जाती हैं. इस प्रक्रिया के लिए उन्हें 24 घंटे नागा रूप में अखाड़े के ध्वज के नीचे बिना कुछ खाए-पीए खड़ा होना पड़ता है. इस दौरान उनके कंधे पर एक दंड और हाथों में मिट्टी का बर्तन होता है.
इस दौरान अखाड़े के पहरेदार उन पर नजर रखे होते हैं. इसके बाद अखाड़े के साधु द्वारा उनके लिंग को वैदिक मंत्रों के साथ झटके देकर निष्क्रिय किया जाता है. यह कार्य भी अखाड़े के ध्वज के नीचे किया जाता है. इस प्रक्रिया के बाद वह नागा साधु बन जाता है.
अगर व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करने की परीक्षा से सफलतापूर्वक गुजर जाता है, तो उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष बनाया जाता है. उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं. ये पांच गुरु पंच देव या पंच परमेश्वर (शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश) होते हैं. इन्हें भस्म, भगवा, रूद्राक्ष आदि चीजें दी जाती हैं. यह नागाओं के प्रतीक और आभूषण होते हैं.
ऐसे बनते हैं नागा अवधूत
महापुरुष के बाद नागाओं को अवधूत बनाया जाता है. इसमें सबसे पहले उसे अपने बाल कटवाने होते हैं. इसके लिए अखाड़ा परिषद की रसीद भी कटती है. अवधूत रूप में दीक्षा लेने वाले को खुद का तर्पण और पिंडदान करना होता है. ये पिंडदान अखाड़े के पुरोहित करवाते हैं. ये संसार और परिवार के लिए मृत हो जाते हैं. इनका एक ही उद्देश्य होता है सनातन और वैदिक धर्म की रक्षा.
बाल नहीं कटवाते नागा साधु
नागा साधु आमतौर पर अपने बाल नहीं कटाते. यह उनके संन्यास और साधना के एक महत्वपूर्ण प्रतीक के रूप में देखा जाता है. बाल नहीं कटाना इस बात का प्रतीक है कि उन्होंने सांसारिक बंधनों, इच्छाओं और भौतिक सुख-सुविधाओं को त्याग दिया है. यह उनकी साधना और तपस्या का हिस्सा है.
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, बालों को बढ़ने देना और जटाएं बनाना आध्यात्मिक ऊर्जा को संरक्षित करने में सहायक होता है. इसे ध्यान और योग में लाभकारी माना जाता है. बाल और दाढ़ी को बढ़ने देना उनके प्रकृति से जुड़ाव और जीवन की सरलता का प्रतीक है. नागा साधु अपने बालों को जटाओं (मैले और उलझे हुए बालों) में रखते हैं. यह शिव के प्रति उनकी भक्ति और साधना का संकेत है, क्योंकि भगवान शिव को “जटाधारी” (जटाएं धारण करने वाला) कहा जाता है.
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.