महाकुंभ का पहला अमृत स्नान कल, क्या है मकर संक्रांति पर संगम में डुबकी लगाने का महत्व?

वैसे तो इस बार के महाकुंभ में तीन अमृत (जिसे पहले शाही नाम से जाना जाता था) स्नान हैं. इसमें सबसे पहला अमृत स्नान मकर संक्रांति यानि 14 जनवरी को है. इसके अतिरिक्त मौनी अमावस्या, वसंत पंचमी, माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के दिन भी अमृत स्नान होना है. हर अमृत स्नान की अपनी एक अलग खासियत है. अयोध्या के सुग्रीव किला के पीठाधीश्वर विश्वेष प्रपन्नाचार्य जी ने TV9 भारतवर्ष से खास बातचीत में बताया कि आखिर क्यों मकर संक्रांति का अमृत स्नान इतना महत्वपूर्ण है?

विश्वेष प्रपन्नाचार्य जी ने बताया कि इस मकर संक्रांति के अमृत स्नान में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण सूर्य की उपासना है. उन्होंने बताया कि सूर्य उपासना से इच्छित मनोकामना की प्राप्ति होती है. उन्होंने कहा कि कुंभ में जो कोई भी आकर सूर्य का तप करता है, उसे जरूर कोई न कोई पुण्य की प्राप्ति होती है.

विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अहम

विश्वेष प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने बताया कि पुरानी के कथा के मुताबिक, भीष्म पितामह ने शरीर त्यागने से ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ की रचना की थी और उन्होंने मकर संक्रांति के दिन ही विष्णु सहस्त्रनाम के पूरा किया था. ऐसे में यह बताया जाता है कि जो कोई भी मकर संक्रांति के दिन विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ को करता है, वह बहुत ही लाभकारी सिद्ध होता है.

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