संकष्टी चतुर्थी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा का विधान है. हिंदू धर्म में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. हिंदू धर्म में भगवान गणेश सबसे पूज्य देवी देवताओं में से एक हैं. भगवान गणेश को बुद्धि का देवता कहा जाता है. हिंदू धर्म में ढेरों व्रत हैं जो देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए किए जाते हैं, लेकिन भगवान गणेश के लिए रखा जाने वाला संकष्टी चतुर्थी के व्रत की हिंदू धर्म में बड़ी मान्यता है.
इसलिए कही जाती है अखुरथ संकष्टी चतुर्थी
ये संकष्टी चतुर्थी पौष माह के कृष्ण पक्ष में पड़ती है. इसलिए इसे अखुरथ संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है. इस दिन जो भी बप्पा का पूजन और व्रत करता है उसके जीवन की सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं. साथ ही बप्पा उस पर अपनी कृपा करते हैं. इस दिन बप्पा के पूजन और व्रत के साथ ही चंद्रदेव को अर्घ्य भी दिया जाता है. कहते हैं ऐसा करना भक्त के लिए विशेष फलदायी होता है. हिंदू धर्म में इस दिन चंद्रदेव को अर्घ्य देने की विधि बताई गई है. आइए जानते हैं वो विधि क्या है.
कब है अखुरथ संकष्टी चतुर्थी
हिंदू पंचांग के अनुसार, 18 दिसंबर को सुबह 10 बजकर 43 मिनट से अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का आरंभ होगा. ये तिथि 19 दिसंबर को सुबह 10 बजकर 2 मिनट पर समाप्त हो जाएगी. इस तरह अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत 18 दिसंबर को रखा जाएगा.
- ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5 बजकर 19 मिनट पर शुरू होगा और 6 बजकर 4 मिनट तक रहेगा.
- विजय मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 1 मिनट पर शुरू होगा और 2 बजकर 42 मिनट तक रहेगा.
- गोधूलि मुहूर्त शाम 5 बजकर 25 मिनट पर शुरू होगा और 5 बजकर 52 मिनट तक रहेगा.
- अमृत काल सुबह 6 बजकर 30 मिनट से शुरु होगा और 8 बजकर 7 मिनट तक रहेगा.
चंद्रमा को अर्घ्य देने की विधि
- इस दिन चांदी के गिलास या लोटे में चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए जल लेना चाहिए.
- उस चांदी के गिलास या लोटे में गाय का कच्चा दूध, अक्षत्, और कुछ सफेद फूल डालने चाहिए.
- चंद्रमा को अर्घ्य देते वक्त चंद्र देव का स्मरण जरूर करना चाहिए.
- चंद्रमा को अर्घ्य देते देते हुए जल के छींटे पैरों में न पड़ें, इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए.
- चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही ये व्रत पूर्ण होता है.
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