कड़ाके की ठंड और भोपाल शहर. लोग सर्दी के इस मौसम में चैन की नींद सो रहे थे, लेकिन सोते हुए उन लोगों को क्या पता था कि उनमें से कई लोग आने वाले कल का सूरज नहीं देख पाएंगे. आज का दिन इतिहास (History) के पन्नों में दर्ज है. 2-3 दिसंबर 1984 की वो काली रात भोपाल के लिए काल बनकर आई थी. जिसे याद कर हर किसी की आंखें नम हो जाती हैं. क्योंकि इस रात भोपाल शहर के हजारों बेगुनाह लोग इस दुनिया को छोड़ के चले गए.
पूरी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) की आज 3 दिसंबर 2024 को 40वीं बरसी है. भोपाल गैस त्रासदी पर कवि चौ.मदन मोहन समर लिखते हैं-
कितने आंसू दे गया,चौरासी का साल. बीते चालीस साल कब, भूला है भोपाल. गलियां लाशों से भरीं, मुर्दों से मैदान. कीट पतंगों सा मरा, बेबस हो इंसान. लाशों ऊपर लाश थी, जित देखो तित लाश. किस्मत में भोपाल की, केवल सत्यानाश. भुगत रही है जिन्दगी, एक रात का दंश. जहर भरी उस सांस का, जहरीला है वंश. एंडरसन हंसता रहा, रही सिसकती झील. तीन दिसम्बर डालता, नमक घाव को छील. नारों के नेता हुए, भाषण के भगवान. बेबस सब बेहाल हैं, उनके घर पकवान. कितनों का धंधा हुआ, कितनों का जंजाल. गिनते गिनते रो रहा, बेचारा भोपाल.
भोपाल में गैस लीक होने की भयावह घटना के आज 40 साल पूरे गए. 2-3 दिसंबर, 1984 की दरम्यानी रात अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड के भोपाल स्थित फैक्ट्री में मिथाइल आइसोसाइनेट नाम की गैस लीक होने से हजारों लोग काल के गाल में समा गए थे. सरकारी आंकड़ों की मानें तो इस भीषण त्रासदी में 5,295 लोगों की मौत हुई थी. जबकि, गैस पीड़ित संगठनों का दावा है कि इस त्रासदी में 22 हजार से ज्यादा लोगों की मृत्यु हुई है. वहीं इस जहरीली गैस से 5 लाख 74 हजार से ज्यादा लोग गंभीर रूप से प्रभावित हुए थे.
हर तरफ लाश ही लाश
गैस त्रासदी के पीड़ित बताते हैं कि 3 दिसंबर की सुबह जब गैस का असर कम हुआ था तब सड़कों पर चारों तरफ लाशें ही लाशें नजर आ रही थीं. इंसान ही नहीं, बल्कि जानवरों को भी इस घातक गैस की वजह से जान गंवानी पड़ी थी. अस्पतालों में लोगों को जगह नहीं मिल रही थी. हर तरफ भगदड़ का माहौल था. उस रात, जब लोग गहरी नींद में थे, शहर में मौत ने अपने पैर पसार दिए. यह भयावह मंजर हजारों जिंदगियों को लील गया और लाखों को घायल कर गया.
आज भी दिखता है असल
गैस पीड़ित संगठन की रचना ढिंगरा बताती हैं कि हादसे के 40 साल बाद भी मिथाइल आइसोसाइनेट गैस लोगों की जिंदगियों को बर्बाद कर रही है. गैस पीड़ितों पर आज भी इसका असर दिखता है. गैस पीड़ितों की दूसरी और तीसरी पीढ़ी में भी जन्मजात विकृतियां देखने को मिल रही हैं. यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे की वजह से यहां प्रदूषण हो रहा है, जिसकी वजह से 42 बस्तियों का पानी ऐसे रसायनों से प्रभावित है, जो जन्मजात विकृतियां पैदा करते हैं. ये रसायन कैंसर, गुर्दे और दिमागी बिमारियों के कारण बनते हैं.
न्याय की आस आज भी
इस दर्दनाक हादसे को 40 साल बीत गए. लेकिन लोगों को आज भी न्याय की आस है. मामला कोर्ट में लंबित है. जबकि आधे से ज्यादा आरोपियों की मृत्यु हो चुकी है. इस हादसे का मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन था, जिसे 6 दिसंबर 1984 को भोपाल में गिरफ्तार किया गया था. लेकिन अगले ही दिन 7 दिसंबर को उसे सरकारी विमान से दिल्ली भेजा दिया गया, जहां से वह अमेरिका चला गया. इसके बाद फिर कभी वह भारत लौटकर नहीं आया. कोर्ट ने उसे फरार घोषित कर दिया था. इसके बाद अमेरिका के फ्लोरिडा में एंडरसन की 29 सितंबर 2014 को 93 साल की उम्र में मृत्यु हो गई.
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.