धरती पर डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप माना जाता है. हर कोई अपने जीवन में कभी न कभी डॉक्टर के पास जरूर गया है. भगवान का रूप माने जाने वाले डॉक्टर भी अपनी मेहनत के दम पर पहचान बनाते हैं. ऐसी ही एक पहचान बिहार की राजधानी पटना के डॉक्टर अजीत प्रधान ने बनाई है. अपने जीवन में अजीत प्रधान ने हजारों ऑपरेशन किए हैं, लेकिन सारे ऑपरेशन में एक समानता है, जो देश के दूसरे डॉक्टरों से बिलकुल अलग है.
बिहार के जाने माने हार्ट स्पेशलिस्ट और सर्जन के रूप में फेमस डॉक्टर अजीत प्रधान ने अपने जीवन में दस हजार से भी ज्यादा ऑपरेशन किए हैं. सबसे खास बात यह कि इनके ऑपरेशन करने का तरीका सबसे अलग है. अजीत प्रधान जब भी ऑपरेशन करने जाते हैं, इनके ऑपरेशन थियेटर में मधुर स्वर में शास्त्रीय संगीत जरूर बजता है.अजीत बताते है कि इससे उनको सुकून मिलता है और वह पूरी एकाग्रता से ऑपरेशन को सफल तरीके से करते हैं.
क्या है डॉक्टर की कहानी?
इतना ही नहीं डॉक्टर अजीत प्रधान के डॉक्टर बनने की कहानी भी बहुत दिलचस्प है. डॉक्टर अजीत प्रधान बताते हैं, वह पढ़ने में बहुत कमजोर थे, जहां दूसरे बच्चे अपनी क्लास और होमवर्क को एक से डेढ़ घंटे में पूरे कर लेते थे. वहीं, मुझे इसे पूरा करने में चार से पांच घंटे का समय लगता था. मेरे भाई बहन पढ़ने में बहुत तेज थे. वह अपनी क्लास के टॉपर्स थे. जबकि, मेरे साथ बिल्कुल अलग था. 42 बच्चों के बैच में मेरा नंबर 41वां आता था.
मेरे पिताजी इसमें भी पॉजिटिव सोचते थे. वह यह कहते थे कि शुक्र करो कि तुम एक से भी बेहतर हो. मैं खोया खोया सा रहता था. एक दिन मेरे टीचर ने मुझसे कहा मैंने तुम्हें कभी भी हंसते खेलते हुए नहीं देखा. बाकी सब बच्चे पांच मिनट देरी से आते हैं जबकि तुम पांच मिनट पहले ही चले आते हो, लेकिन तुम हमेशा शांत रहते हो. टीचर ने कहा कि तुम बच्चों के बीच में खेलो. मैनें टीचर की बात मानी और वही दिन था, जब मेरा वक्त अब करवट लेने के लिए तैयार था.
रैंक में हुआ था सुधार
अजीत प्रधान बताते हैं, उस साल मेरे रैंक में सुधार हुआ और मैं 41वें स्थान से 28वें स्थान पर आ गया था. मेरे अंदर हिम्मत आई. इस दौरान सबसे बड़े हार्ट सर्जन माने जाने वाले क्रिश्चियन बर्नार्ड ने हार्ट ट्रांसप्लांट किया था. मैंने उनकी खबर पढ़ी. तब पहली बार मेरे अंदर यह उम्मीद बनी कि मैं एक हार्ट सर्जन बनूं. मेरे पिताजी बहुत ईमानदार ऑफिसर थे. हम लोग बस से साइंस कॉलेज जाते थे.
डॉक्टर अजीत प्रधान कहते हैं, स्कूल कॉलेज से निकलने के बाद मेरा नामांकन मेडिकल कॉलेज में हुआ. वहां से डॉक्टर भी बन गया. मैं जब एमएस की स्टडी कर रहा था, इस वक्त मेरे दिमाग में फिर एक अजब विचार आया और मैं सन्यासी बनने की राह पर चल पड़ा. मैं अल्मोड़ा चला गया. अल्मोड़ा में मुझे किसी ने कहा कि यहां से 17 किलोमीटर दूर एक बाबा रहते हैं. आप वहां जाइए. मैं सुबह उठा और 17 किलोमीटर दूर चला गया. वहां एक बाबा मां की मूर्ति के सामने बैठकर पूजा कर रहे थे.
बाबा ने दिया था खाना
मैं एक खाट पर बैठ गया और वहां मुझे कब नींद आई मुझे पता भी नहीं चला. जब मैं सो के उठा, तो देखा कि वह बाबा मेरे पास बैठे हुए थे. वो खाना बना रहे थे. उन्होंने मुझे खाना दिया. वह बहुत स्वादिष्ट भोजन था. उन्होंने मुझसे कहा कि तुम यहां क्या कर रहे हो? तुम्हारा यह वक्त नहीं है. तुम चले जाओ. तुम्हें समाज के लिए अभी बहुत कुछ करना है. तब मोबाइल नहीं हुआ करते थे. मैंने टेलीफोन से मां से बात की.
मां बोली घर चले आओ. इसके बाद मेरे वक्त ने फिर करवट लिया और मैं विदेश में पढ़ाई करने के लिए चला गया. 15 साल बाद फिर विदेश से वापस लौटा. डॉ अजीत प्रधान ने फिलिपींस, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई की है. डॉक्टर प्रधान बताते हैं, दरअसल संगीत के प्रति उनका जो भी लगाव है. यह उनके नाना के द्वारा दिया गया है. उनके नाना बृज कुमार सहाय शास्त्रीय संगीत के बहुत बड़े रसिक थे.
ननिहाल से विरासत में मिला संगीत
उनकी मां रमारानी प्रधान को भी शास्त्रीय संगीत से लगाव था. बचपन से ही उनको संगीत का शौक था. मां शास्त्रीय संगीत की गायिका थी, नाना संगीतकार थे. स्कूल से आने के बाद आम बच्चे जहां खेलते थे. वहीं हम लोगों को रामायण और गीता की चौपाई अलग-अलग रागों में पढनी पडती थी. रामायण की एक चौपाई को अगर राग नंद में गाना पड़ता था, तो दूसरी चौपाई को राज जजवंती में गाना पड़ता था.
महीने में एक बार हमारे यहां संगीत को लेकर बैठक हुआ करती थी. उनके जीवन का पहला चैती उनकी मां ने ही सिखाई थी. इसके अलावा उन्होंने राग मालकुंजी भी सिखाया था. डॉक्टर प्रधान कहते हैं, बचपन से रागों के बीच में रहा तो कोई और म्यूजिक अच्छा लगा ही नहीं. ऑपरेशन थिएटर में अगर शास्त्रीय संगीत नहीं बजता है, तो मेरा काम ही नहीं हो पता है. मैं अगर ऑपरेशन थिएटर में हूं और एकाग्र रहना है, तो बिना शास्त्रीय संगीत के मैं एकाग्र नहीं हो सकता हूं.
ऑपरेशन थिएटर में लगा रखा साउंड सिस्टम
डॉ अजीत प्रधान ने अपने ऑपरेशन थिएटर में शास्त्रीय संगीतों के बजाने के लिए पूरा साउंड सिस्टम भी लगा रखा है. डॉ अजीत प्रधान अपने ऑपरेशन की शुरुआत राग भीमपलासी में ओम नमो भगवते वासुदेवाय से शुरू करते है, जो कि पंडित जसराज की आवाज में है. उनके ऑपरेशन थिएटर में राग बागेश्वरी, राग हमीर, राग गौर सारंग, राग जय जयंती, राज नंद राज, राग यमन, राग दरबारी, राग हमीर, राग सिंधुरा, राज चंद्रकौश, राग मारवाह, राग पूर्वी बजते रहते हैं.
फुल इंजॉय करते संगीत
वह बताते हैं कि ऑपरेशन थिएटर में जितने डॉक्टर होते हैं, वह सभी इन रागों को फुल इंजॉय करते हैं. हालांकि, बीच-बीच में ऑपरेशन थिएटर में गजल भी लगा दी जाती है. इसके अलावा हनुमान चालीसा भी बजते रहता है. डॉ अजीत प्रधान कहते हैं कि पहले अस्पताल में भी पंडित भीमसेन जोशी की आवाज में राग बजते रहते थे. इसके बाद हमने इंस्ट्रूमेंट बजाना शुरू किया, लेकिन अभी फिलहाल कुछ दिनों से इस पर रोक है.
न केवल ऑपरेशन थिएटर बल्कि डॉक्टर अजीत प्रधान अपने जिस कंसल्टेशन चेंबर में बैठते हैं. वहां पर भी धीमे-धीमे स्वरों में राग बजते रहते हैं. वह इन बजती हुई रागों के बीच में ही अपने मरीज से भी बात करते हैं. डॉक्टर अजीत प्रधान न केवल हृदय रोगों के विशेषज्ञ हैं. बल्कि वह संगीत के मर्म को भी बखूबी समझते हैं. उन्होंने अपने स्तर से नवरस स्कूल ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट की स्थापना की है.
शास्त्रीय संगीत को बढावा
इसके माध्यम से वह देश के ख्याति शास्त्रीय संगीत की गायकों को बुलाते रहते हैं. उन्होंने 2009 में नवरस स्कूल का परफॉर्मिंग आर्ट की स्थापना की थी. इसके तहत किये गये आयोजनों में सबसे पहले डॉक्टर अजीत प्रधान ने मशहूर शास्त्रीय गायक कुमार गंधर्व की बेटी कलापनी कोमकली को आमंत्रित किया था. अब तक वह विनय सहस्त्रबुद्धे, अश्विनी भिड़े, पंडित राजन मिश्रा साजन मिश्र, विनायक तोरवी, पंडित छन्नूलाल मिश्रा, उस्ताद तारी खान, रोनू मजूमदार को भी आमंत्रित कर चुके हैं. वह कहते हैं, जब तक सांस है, तब तक डॉक्टरी और संगीत दोनों चलते रहेंगे. मरते दम तक संगीत चलता रहेगा.
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