कार्तिका पूर्णिमा पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तिगरी गढ़ गंगा के किनारे हर साल लगने वाले ऐतिहासिक अर्धकुंभ मेले में इस बार भी तंबुओ का शहर बसना शुरु हों गया है. गंगा की रैती पर जिधर देखों उधर बस तंबू ही तंबू नजर आ रहे हैं. इसी दौरान अब तक मेला स्थल पर 15 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने अपना डेरा डाल लिया है, यही नहीं मेले में मनोरजन के संसाधनों के साथ-साथ मनमोहक रंगा रंग कार्यक्रमों की प्रस्तुति की जा रही है. जिस दौरान सुंदर झांकियां आकर्षण का केंद्र बनी है. इसी के साथ गंगा में स्नान के दौरान क्या महिला क्या पुरष क्या बच्चे सब तरह-तरह की अठखेलियां करते नजर आ रहे हैं.
पतित पावनी मां गंगा की रेत पर लगने वाले मेले में मीना बाजार भी श्रद्धालुओं के लिए प्रमुख आकर्षण का केंद्र होता है. इसी मीना बाजार में बड़े-बड़े झूले, सर्कस, मौत का कुआं, जैसे मनोरंजन के संसाधन लगे होते हैं. इसी बाजार में अलग-अलग सामानों की दुकानें भी लगती हैं. मैले में पहुंचने वाले श्रद्धालु इस बाजार में जमकर खरीदारी करते हैं. इसी बाजार में खाने-पीने से संबंधित रेस्टोरेंट, जूस कॉर्नर जैसी खाने-पीने की दुकानें भी होती हैं.
श्रवण कुमार से जुड़ी है आस्था
कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाले इस मेले का आयोजन त्रेतायुग के श्रवण कुमार की माता-पिता की सेवा और महाभारत काल में पांडवों के दीपदान के उपलक्ष्य में किया जाता है. मेले में काली दाल की खिचड़ी का भी बहुत महत्व है. पंडित बताते हैं कि जब त्रेता युग में श्रवण कुमार गंगा किनारे रुके थे. उस वक्त उनके सेवा भाव को देखने के लिए यहां लोगों की भीड़ लगी थी. जो श्रद्धालु श्रवण कुमार को देखने आए थे उन्होंने श्रवण कुमार और उनके बूढ़े माता-पिता को देवउठनी एकादशी पर नई फसल के रूप में काली दाल की खिचड़ी का ही भोग लगाया था.
श्रवण कुमार से जुड़ी इस कथा के बाद से ही तिगरी मेले में काली दाल की खिचड़ी का भोग लगाने का और प्रसाद रूप में खाने का बहुत महत्व है. लोग यहां पहुंचकर काली दाल की खिचड़ी का भोग प्रसाद के रूप में लेते हैं और उसे ही खाते हैं.
सुरक्षा चाक-चौबंद
श्रद्धालुओं की सुरक्षा कों भारी मात्रा में पुलिस बल भी लगाया गया है. जहां पर सुरक्षा के लिहाज से ढाई हजार पुलिस कर्मियों की तैनाती की गई है. इसके अलावा अतिरिक्त सुरक्षा की दृष्टि से कमांडो, डॉग स्क्वायड, बम निरोधक दस्ता, पीएससी के जवान ओर गोताखोर भी तैनात किए गए हैं.
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