यूपी उपचुनाव में ओवैसी ने बढ़ाई सपा-बसपा की टेंशन, विपक्ष की मुस्लिम बनाम मुस्लिम लड़ाई से BJP को होगा फायदा?

उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव में सपा और बीजेपी के बीच मुकाबले में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM की भी एंट्री हो गई है. ओवैसी ने उपचुनाव की 9 सीटों में से मुस्लिम बहुल दो सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं. AIMIM ने कुंदरकी विधानसभा सीट से मोहम्मद वारिस और मीरापुर विधानसभा सीट से अरशद राणा को उम्मीदवार बनाया है. पश्चिमी यूपी की दोनों मुस्लिम बहुल सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारकर असदुद्दीन ओवैसी ने सपा और बसपा की टेंशन बढ़ा दी है. ऐसे में मुकाबला रोचक हो गया है?

यूपी उपचुनाव में ओवैसी ने पीडीएम (पिछड़ा, दलित, मुस्लिम) फार्मूले पर चुनावी मैदान में उतरे हैं, जिसके तहत मुस्लिम बहुल सीटों पर AIMIM चुनाव लड़ रही है तो ओबीसी बहुल सीटों पर ओबीसी आधारित पार्टियों के खाते में गई है. इसके तहत ही कुंदरकी और मीरापुर सीट पर ओवैसी ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारा तो मझवां सीट पर प्रगतिशील मानव समाज पार्टी चुनाव लड़ रही है. प्रगतिशील मानव समाज पार्टी ने मझवां सीट से स्वयंबर पाल को कैंडिडेट घोषित किया है. ओवैसी ने जिन दो सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं, उनमें सपा और बसपा ने भी मुस्लिम उम्मीदवार पर ही दांव खेल रखा है.

मीरापुर सीट पर मुस्लिम बनाम मुस्लिम

मीरापुर विधानसभा सीट से 2022 में सपा के समर्थन से आरएलडी के चंदन चौहान विधायक चुने गए थे, लेकिन 2024 में बिजनौर से सांसद बन गए हैं. आरएलडी ने अब बीजेपी के साथ गठबंधन कर रखा है, जिसके तहत मीरापुर सीट जयंत चौधरी की आरएलडी के खाते में गई है. आरएलडी ने अभी अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है. सपा ने पूर्व सांसद कादिर राणा की बहू सुम्बुल राणा को प्रत्याशी बनाया है तो बसपा ने शाहनजर पर दांव लगाया है. चंद्रशेखर आजाद की आसपा ने जाहिद हुसैन को उम्मीदवार बनाया है और अब ओवैसी ने भी आरशद राणा को उतार दिया है.

मीरापुर सीट पर चार दलों से मुस्लिम कैंडिडेट मैदान में है, जिसके चलते मुकाबला काफी रोचक हो गया है. बसपा, सपा, आसपा और AIMIM की ओर से मुस्लिम प्रत्याशी उतारने की घोषणा के बाद आरएलडी ने अपनी रणनीति में परिवर्तन कर रहा है. अब आरएलजी गुर्जर या फिर जाट समाज के किसी चेहरे को उतार सकता है. बीजेपी के साथ गठबंधन होने के चलते आरएलडी हिंदू प्रत्याशी मीरापुर में उतारती है तो मुकाबला रोचक हो सकता है.

कुंदरकी सीट पर मुस्लिम बनाम मुस्लिम

कुंदरकी विधानसभा सीट से 2022 में सपा के जियाउर्रहान विधायक चुने गए थे, लेकिन 2024 में संभल सीट से सांसद बन गए हैं. कुंदरकी सीट पर सपा ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं यानी टिकट घोषित नहीं किए हैं. सपा से पूर्व विधायक हाजी रिजवान के चुनाव लड़ने की प्रबल उम्मीद है. बसपा ने रफतउल्ला उर्फ छिद्दा को प्रत्याशी बनाया है तो ओवैसी की AIMIM से मोहम्मद वारिस को उतारा है. चंद्रशेखर आजाद ने आसपा से हाजी चांद बाबू को प्रत्याशी बनाया है. इस तरह चार विपक्षी दलों से मुस्लिम कैंडिडेट मैदान में है, जिसके चलते मुकाबला मुस्लिम बनाम मुस्लिम कुंदरकी सीट पर हो गया है. बीजेपी ने अभी टिकट घोषित नहीं किए हैं.

मुस्लिम वोटों में क्या होगा बिखराव

मीरापुर और कुंदरकी जैसे मुस्लिम बहुल सीटों पर सभी विपक्षी पार्टियों ने मुस्लिम प्रत्याशी पर दांव खेला है, जिसके चलते मुस्लिम वोटों के बिखराव की संभावना बन गई है. मीरापुर सीट पर करीब 35 फीसदी के करीब मुस्लिम वोटर हैं तो कुंदरकी में 50 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं. इस तरह से दोनों ही सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक हैं, लेकिन जिस तरह सभी विपक्षी दलों ने मुस्लिम उम्मीदवार को उतारा है, उसके चलते बीजेपी और आरएलडी की बांछे खिल गई है.

हालांकि, यह स्थिति यूपी के 2022 विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर देखने को मिली थी, लेकिन मुस्लिम समुदाय ने एकजुट होकर बीजेपी के खिलाफ वोटिंग किया था. बसपा और दूसरी पार्टियों के मुस्लिम कैंडिडेट को नजर अंदाज कर दिया था, लेकिन उपचुनाव में मुस्लिमों का वोटिंग पैटर्न अलग रहा है. आजमगढ़ की लोकसभा सीट पर बसपा ने शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को प्रत्याशी बनाया तो सपा का गेम गड़बड़ा गया था. अब कुंदरकी और मीरापुर सीट पर जिस तरह मुस्लिम बनाम मुस्लिम की लड़ाई बन गई है, उसके चलते सपा और बसपा की टेंशन बढ़ गई हैं.

ओवैसी उपचुनाव में बिगाड़ ने दें सपा-बसपा का गेम

असदुद्दीन ओवैसी ने मीरापुर सीट पर कांग्रेस से आए नेता को प्रत्याशी बनाया है तो कुंदरकी में प्रभावी चेहरे पर दांव खेला है. कुंदरकी सीट पर ओवैसी की पार्टी का अपना सियासी आधार रहा है. इन दोनों ही सीटों पर सपा का सियासी आधार पूरी तरह से मुस्लिम वोटबैंक पर टिका हुआ है, क्योंकि दोनों ही सीटों पर यादव वोटर एकदम नहीं है. ओवैसी ने जिस तरह से मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं और बसपा से लेकर चंद्रशेखर आजाद तक के मुस्लिम कैंडिडेट हैं. आसपा और बसपा दलित और मुस्लिम वोट के सहारे सियासी नैया पार लगाना चाहती है.

ओवैसी से लेकर सपा, बसपा और चंद्रशेखर आजाद तक मुस्लिम वोटों को ही साधने में लगे हैं तो बीजेपी और आरएलडी की नजर बहुसंख्यक समाज के वोटबैंक पर है. सीएम योगी से लेकर बीजेपी के कई नेता खुलकर ‘बटोगे तो कटोगे’ का नैरेटिव सेट कर रहे हैं. इसके जरिए हिंदू वोटों को सियासी संदेश दिया जा रहा. यूपी के उपचुनाव में भी बीजेपी ‘बटोगे तो कटोगे’ का दांव चल सकती है. ऐसे में मुस्लिम वोटों के बिखराव की संभावना ने सपा-बसपा का चुनावी गेम को बिगाड़ सकता है तो बीजेपी के लिए उम्मीद किरण जगा सकता है?

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