बाल विवाह से जुड़े एक मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि सिर्फ केस दर्ज करने से इस समस्या का हल नहीं निकल सकता. कोर्ट ने कहा कि अब जरूरत है कि सभी राज्यों के लिए सख्त गाइडलाइन बनाई जाए जिससे बाल विवाह पर पूरी तरह से रोक लगाई जा सके. बता दें कि कोर्ट में इस मामले में 10 जुलाई को ही बहस पूरी हो गई थी, कोर्ट में तब इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
दरअसल, बाल विवाह निषेध अधिनियम को सही तरीके से लागू न करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट याचिका दायर कर के दखल देने की मांग की गई थी . इस मामले में आज फैसला सुनाता हुए कोर्ट ने कहा कि बच्चों को मिलने वाली संवैधानिक गारंटी के मद्देनजर, हम इस कानून में कुछ कमियां देखते हैं. लेकिन हम किसी तरह के निर्देश देने की जगह केवल केंद्र को सुझाव जारी कर रहे हैं.`
पीसीएमएके तहत बाल विवाह के निषेध और पर्सनल लॉ में परेशानी को लेकर सुनवाई के दौरान कुछ भ्रम रहा है. मामले में फैसला सुरक्षित रखे जाने के बाद केंद्र ने कोर्ट में दायर अपने नोट में कहा कि सुप्रीम कोर्ट निर्देश दे सकता है कि पीसीएमएको पर्सनल लॉ पर प्राथमिकता दी जाए.
पर्सनल लॉ पर वरीयता की मांग
कोर्ट को दी गई जानकारी के मुताबिक बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक 2021 को 21 दिसंबर 2021 को संसद में पेश किया गया था. विधेयक को शिक्षा, महिला, बाल, युवा और खेल संबंधी विभाग संबंधी स्थायी समिति को जांच के लिए भेजा गया था. विधेयक में पीसीएमएमें ऐसे संशोधन करने की मांग की गई थी जिससे पर्सनल लॉ से टकराव की स्थिति में पीसीएमएको वरीयता दी जाए. यह मुद्दा संसद के समक्ष विचाराधीन है.
बच्चों के अधिकारों का हनन
कोर्ट ने आगे कहा कि पीसीएमएबाल विवाह को तो प्रतिबंधित करने की कोशिश करता है, लेकिन यह बचपन में ही शादी तय करने की प्रथा को रोकने का कोई प्रावधान नहीं करता है. पीसीएमएके तहत दंड से बचने के लिए बचपन में ही शादी तय करने का चलन भी देखा जाता है. इन तरीकों से बच्चों के अधिकारों का हनन होता है. यह उन्हें बालिग होने के बाद जीवनसाथी चुनने के विकल्प से वंचित करता है.
जागरूकता की जरुरत
कार्ट में कही कि नाबालिगों की शादी के खिलाफ सीईडीएडब्लू जैसे अंतर्राष्ट्रीय कानून मौजूद हैं. संसद बचपन में ही शादी तय करने को गैरकानूनी घोषित करने पर विचार कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल दंड से बाल विवाह को नहीं रोका जा सकता. इसकी लिए व्यापक जागरूकता कार्यक्रम और पीड़ितों के पुनर्वास पर ध्यान देने की ज़रूरत है.
सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश के अनुसार
- राज्य सरकार निगरानी के लिए ज़िला स्तर पर बाल विवाह निषेध अधिकारी नियुक्त करें
- सीएमपीओ के साथ साथ कलेक्टर और एसपी की भी जिम्मेदारी हो
- पुलिस की स्पेशल यूनिट बनाई जाए
- बाल विवाह निषेध के लिए विशेष यूनिट स्थापित हो
- मजिस्ट्रेट को स्वत संज्ञान लेकर कार्रवाई करने के लिए अधिकार दिए जाएं
- बाल विवाह मामलों के लिए स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित किए जाएं
- लापरवाह सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो
- सामुदायिक प्रयासों को बढ़ावा दिया जाए
- स्कूलों, धर्म स्थलों और पंचायत स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएं
- जिन समुदायों में बाल विवाह प्रथा है उनके लिए खास जागरूकता कार्यक्रम हो
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