जम्मू कश्मीर में इंडिया गठबंधन की सरकार बनने के बावजूद कांग्रेस उमर अब्दुल्ला की सरकार में शामिल नहीं हुई है. कांग्रेस की तरफ से अब्दुल्ला कैबिनेट में कोई भी मंत्री नहीं बना है. वो भी तब, जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी खुद श्रीनगर जाकर सरकार के शपथग्रहण में शामिल हुए हैं.
कांग्रेस के इस फैसले की अब चर्चा हो रही है कि आखिर पार्टी ने उमर कैबिनेट में अपने कोटे से मंत्री क्यों नहीं दिए? कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक इसकी 4 बड़ी वजहें हैं-
1. जम्मू कश्मीर के चुनावी इतिहास में पहली बार कांग्रेस का प्रदर्शन काफी खराब है. पार्टी 6 सीटों पर सिमट गई है. ऐसे में कहा जा रहा है कि कांग्रेस हाईकमान ने पार्टी के किसी विधायक को कैबिनेट में न शामिल कर स्थानीय नेताओं को जमीन पर मेहनत करने का संदेश दिया है.
2. जम्मू कश्मीर में कांग्रेस कोटे से एक भी हिंदू विधायक नहीं जीता है. ऐसे में पार्टी के सियासी समीकरण सध नहीं रहे थे. कश्मीर का मुस्लिम वोटबैंक पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के पक्ष में रहा है.
3. उमर अब्दुल्लाह और उनकी पार्टी 370 को वापस लाने के पक्ष में है. कांग्रेस स्टेटहूड की सिर्फ मांग कर रही है. सरकार में पार्टी अगर शामिल होती तो अन्य राज्यों में उसके लिए सियासी बैकफायर कर जाता, इसलिए भी पार्टी ने सरकार में शामिल न होने का फैसला किया है.
4. नेशनल कॉन्फ्रेंस कांग्रेस के 1-2 मंत्री पद देना चाह रही थी. कांग्रेस के दिल्ली में बैठे नेता सांकेतिक भागीदारी नहीं चाहते थे.
6 विधायक जीते, इनमें 3 दिग्गज
कांग्रेस की तरफ से इस बार जम्मू कश्मीर में 6 विधायकों ने जीत हासिल की है. इनमें पीरजादा मोहम्मद सईद, तारिक हामिद कर्रा, गुलाम अहमद मीर जैसे दिग्गज का नाम शामिल हैं. कर्रा घाटी में कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. कांग्रेस ने गुलाम अहमद मीर को कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना है.
कांग्रेस ने घाटी में 37 उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन जम्मू और चिनाब रीजन में पार्टी पूरी तरह साफ हो गई.
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