हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी सत्ता की हैट्रिक लगाने में कामयाब रही और कांग्रेस की दस साल बाद सत्ता की वापसी की उम्मीदों पर पूरी तरह से पानी फिर गया. प्रदेश की 90 सीटों में बीजेपी 48 सीटें जीतती हुई नजर आ रही है जबकि कांग्रेस 36 सीटों पर संतोष करना पड़ा है. बीजेपी गैर-जाट और ओबीसी वोटरों को अपने साथ बांधे रखने में कामयाब रही है तो कांग्रेस की पहलवान, किसान और नौजवान के साथ बनाई जाट-दलित सोशल इंजीनियरिंग नहीं चल सकी.
कांग्रेस हरियाणा में जाटलैंड और मेवात के इलाके की सीटों पर ही अच्छा प्रदर्शन कर सकी है, जबकि दक्षिण हरियाणा और जीटी रोड बेल्ट के इलाके में बीजेपी अपना दबदबा बनाए रखने में कामयाब रही. बीजेपी को उन्हीं इलाके में जीत मिली हैं, जहां पर गैर-जाट जातियां अहम भूमिका में है. हरियाणा चुनाव के नतीजों से यह सवाल उठने लगे हैं कि 36 बिरादरी बनाम एक यानी जाट बनाम गैर जाट की पॉलिटिक्स का दांव बीजेपी के लिए सियासी मुफीद साबित हुआ तो कांग्रेस के हार का कारण बना है.
कांग्रेस के दांव पर बीजेपी की रणनीति रही हावी
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने हरियाणा की दस में से पांच सीटें जीती थीं, जिसके बाद कांग्रेस के हौसले बुलंद थे और दस साल बाद सत्ता की वापसी की उम्मीदें दिख रही थीं. कांग्रेस किसान, पहलवान और नौजवान के साथ दलित-जाट समीकरण बनाकर सत्ता में आने का दांव चला था. जाट समुदाय से आने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा के इर्द-गिर्द कांग्रेस का चुनाव अभियान सिमटा हुआ था. बीजेपी ने गैर-जाटों, मुख्यरूप से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को एकजुट करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए नायब सिंह सैनी को आगे कर रखा था. यह दांव बीजेपी के लिए हिट रहा जबकि कांग्रेस का समीकरण पूरी तरह फेल होग.
नेताओं की नाराजगी का परिणाम पर दिखा असर
हरियाणा में टिकट बंटवारे का क्लेश काफी लंबा चला. बीजेपी ने अपने असंतोष को संभाल लिया, लेकिन कांग्रेस नहीं संभाल सकी. कुमारी सैलजा की नाराजगी को बीजेपी ने दलित अस्मिता का मुद्दा बनाकर हरियाणा चुनाव को जाट बनाम गैर-जाट का नैरेटिव सेट कर दिया. भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कांग्रेस सिर्फ जाट बिरादरी को ही अहमियत देती रही. बीजेपी ने कुमारी सैलजा को बीजेपी में आने का न्योता देकर संदेश देने की कोशिश की गैर जाट समुदाय के लिए सबसे बेहतर ठिकाना बीजेपी है.
हुड्डा ने की अखिलेश और तेजस्वी वाली गलती
भूपेंद्र सिंह हुड्डा के अगुवाई करने के चलते हरियाणा चुनाव ने जाट बनाम गैर जाट का रंग ले लिया. इसके चलते कांग्रेस के हाथों से हरियाणा की जीती बाजी निकल गई. हरियाणा में कांग्रेस के साथ उसी तरह का खेल हुआ, जैसे यूपी में अखिलेश यादव और बिहार में तेजस्वी यादव के साथ हुआ. यहां यादव वोटों के साथ खड़े होने के चलते गैर-यादव ओबीसी जातियां खिसक गईं. यूपी और बिहार में यादव ओबीसी की सबसे बड़ी जाति है. यूपी में सपा और बिहार में आरजेडी के सत्ता में रहते हुए यादवों की सियासी बोलती थी. इसके चलते ही बीजेपी ने गैर यादव ओबीसी जातियों को साधकर यूपी में अखिलेश यादव से सत्ता छीन ली और नीतीश कुमार ने बिहार में आरजेडी को सत्ता से बाहर कर दिया.
जाट नेताओं को टिकट देना कांग्रेस को पड़ा भारी
हरियाणा में जाट समुदाय की आबादी करीब 25 से 27 फीसदी के बीच है, जिनका लंबे समय तक सियासी दबदबा रहा है. भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मुख्यमंत्री रहते हुए 2005 से 2015 तक हरियाणा में जाट समुदाय की सियासी तूती बोलती थी. इसके चलते ही बीजेपी ने गैर-जाट जातियों पर फोकस कर सियासी आधार तैयार किया. कांग्रेस ने इस बार के चुनाव में सबसे ज्यादा जाट समुदाय के प्रत्याशी उतारे थे और भूपेंद्र हुड्डा से लेकर रणदीप सुरजेवाला और चौ. बीरेंद्र सिंह जैसे जाट नेता ही नजर आ रहे थे. इसके चलते ही गैर-जाट जातियां पूरी तरह से बीजेपी के पक्ष में खड़ी नजर आईं.
टिकट बंटारे का सबका अपना फॉर्मूला
कांग्रेस ने 35 जाट, 20 ओबीसी, 17 दलित, 4 ब्राह्मण, 5 मुस्लिम, 6 पंजाबी, दो वैश्य और एक राजपूत समुदाय से प्रत्याशी उतारा था. ऐसे ही बीजेपी ने 16 जाट समुदाय को टिकट दिया था तो 24 ओबीसी, 11 ब्राह्मण, दो मुस्लिम, 10 पंजाबी, 6 वैश्य और तीन राजपूत चेहरों को उतारा था. कांग्रेस और बीजेपी ने अपनी-अपनी सियासी बिसात बिछायी थी. बीजेपी गैर-जाट वाली सोशल इंजीनियरिंग के जरिए लगातार दो बार हरियाणा की जंग फतह कर चुकी है और अब हैट्रिक लगाकर साबित कर दिया है कि उसका फॉर्मूला हिट रहा. बीजेपी का ओबीसी, ब्राह्मण और पंजाबी का भरोसा बनाए रखा.
दलित वोटर भी कांग्रेस से छिटक गया
लोकसभा चुनाव में दलित और जाट समीकरण के सहारे 5 संसदीय सीटें जीतने वाली कांग्रेस 40 सीटें पार नहीं कर सकीं. इसके पीछे का कारण रहा कि गैर-जाट जातियां पूरी तरह बीजेपी के पक्ष में एक जुट हो गई. लोकसभा चुनाव में साथ आया दलित समुदाय विधानसभा चुनाव में साथ नहीं खड़ा रह सका. बीजेपी ने अपने परंपरागत सवर्ण वोटों के साथ गैर जाट जातियों को साथ जोड़े रखा. हरियाणा में ओबीसी की आबादी करीब 35 फीसदी है. सीएम नायब सिंह सैनी ओबीसी है. इसके अलावा दलित समुदाय तक पहुंचने की कोशिश की, जिसका सीधा फायदा पहुंचा और सत्ता की हैट्रिक लगाने में कामयाब रही.
किसान, पहलवान और जवान का नहीं मिला साथ
कांग्रेस और भूपेंद्र सिंह हुड्डा किसानों की नाराजगी , महिला पहलवानों के आंदोलन और अग्नीवीर के चलते जवानों की नाराजगी का नैरेटिव गढ़कर सत्ता में वापसी का तानाबाना बुनी थी, लेकिन यह दांव भी कांग्रेस के खिलाफ हो गया. किसानी हो या पहलवानी, ज्यादातर जाट समुदाय से हैं. इसी तरह से जवान में ज्यादातर जाट समुदाय के लोग ही भर्ती होते हैं. बीजेपी कुमारी सैलजा की नाराजगी के साथ-साथ अपने नायब सिंह सैनी के जरिए गैर-जाटों को सियासी संदेश देती रही. बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से पहले मनोहर लाल खट्टर को हटाकर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया था. इस कदम के दस साल के सरकार की एंटी इन्कंबेसी को खत्म करने का दांव कामयाब रहा. गैर जाट और ओबीसी को बीजेपी साधने में सफल रही.
हरियाणा की सियायत में यही उसकी ताकत बनी और कुर्सी तक पहुंचाया था. बीजेपी के लिए कांग्रेस का परिवारवाद का मुद्दा कारगर रहा. पार्टी ने कांग्रेस के परिवारवाद के साथ ही कांग्रेस राज भ्रष्टाचार के मुद्दे को भी प्रमुखता से उठाया था और हुड्डा परिवार पर जमकर हमले किए थे. इसके चलते ही कांग्रेस हरियाणा में जीती बाजी हार गई.
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