जेल में जाति आधारित भेदभाव पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया है. जेलों में कैदियों के साथ जाति आधारित भेदभाव मामले की गुरुवार को सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि जेल में जाति आधारित भेदभाव नहीं होना चाहिए. यह सुनिश्चित करना राज्यों की जिम्मेदारी है. कैदियों से जाति पूछने का कॉलम नहीं होना चाहिए. कोर्ट ने सभी राज्यों को तीन माह में जेल मैनुअल बदलने का आदेश दिया है. उसने कहा कि मौजूदा समय में संविधान के अनुच्छेद 15, 17, 23 समेत अन्य का उल्लंघन हो रहा है.
सीजेआई ने कहा कि हम उन वकीलों की सराहना करते हैं, जिन्होंने दोनों पक्षों की ओर से बहस की. याचिका में राज्य जेल मैनुअल के प्रावधानों को चुनौती दी गई क्योंकि शारीरिक श्रम के विभाजन, बैरक के विभाजन और कैदियों की पहचान के संबंध में जाति आधारित भेदभाव था. हमने कहा है कि औपनिवेशिक युग के आपराधिक कानून औपनिवेशिक काल के बाद भी प्रभाव डालते हैं, संवैधानिक समाज कानूनों को नागरिकों के बीच समानता और गरिमा को बनाए रखना चाहिए.
उन्होंने कहा कि जाति आधारित भेदभाव के खिलाफ लड़ाई रातोंरात नहीं जीती जा सकती. यह अदालत जाति आधारित भेदभाव के खिलाफ चल रहे संघर्ष में योगदान दे रही है. हमने अनुच्छेद 14 के तहत गैर-भेदभाव से निपटा है. निर्णय के विश्लेषण के आधार पर कुछ भेदभाव- विरोधी सिद्धांत सामने आते हैं. भेदभाव प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष दोनों हो सकता है, रूढ़िवादिता ऐसे भेदभाव को आगे बढ़ा सकती है, इसे रोकने के लिए राज्य का सकारात्मक दायित्व होता है.
उन्होंने आगे कहा कि अदालतों को अप्रत्यक्ष और प्रणालीगत भेदभाव के दावों पर फैसला देना होगा. हमने कहा है कि पूरे इतिहास में जातिगत भेदभाव से मानवीय गरिमा और आत्मसम्मान को नकारा गया है और अनुच्छेद 17 ने सभी नागरिकों की संवैधानिक स्थिति को मजबूत किया है. कैदियों को गरिमा प्रदान न करना औपनिवेशिक काल का अवशेष है जहां उनका अमानवीय- करण किया गया था.
सीजीआई ने क्यों कहा- अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है
चीफ जस्टिस ने आगे कहा कि संविधान कहता है कि कैदियों के साथ मानवीय व्यवहार किया जाना चाहिए और जेल प्रणाली को कैदियों की मानसिक और शारीरिक स्थिति के बारे में जागरूक होना चाहिए. सुनवाई के दौरान CJI ने कहा, हम मानते हैं कि हाशिए पर रहने वाले लोगों को सफाई और झाड़ू लगाने का काम सौंपना और ऊंची जाति को खाना पकाने का काम सौंपना अनुच्छेद 15 के उल्लंघन है. जेल मैनुअल केवल इस तरह के भेदभाव की पुष्टि कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि एससी, एसटी और जनजातियों के खिलाफ भेदभाव जारी है, अदालतों को यह सुनिश्चित करना होगा कि सुरक्षात्मक कानूनों का कार्यान्वयन हो, अदालत को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि हाशिए पर रहने वाले लोगों को परेशानी न हो. हमने माना है कि संविधान एससी-एसटी को सुरक्षात्मक भेदभाव के लिए मान्यता देता है, लेकिन जाति का उपयोग हाशिए पर रहने वाले लोगों के खिलाफ भेदभाव करने के लिए नहीं किया जा सकता है और इसे उत्पीड़ितों के खिलाफ भेदभाव को कायम नहीं रखना चाहिए.
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