जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के तीसरे और आखिरी चरण की 40 सीटों पर मंगलवार को वोटिंग है. इन 40 सीटों पर 415 उम्मीदवार की किस्मत का फैसला 39 लाख से ज्यादा मतदाता करेंगे. पाकिस्तान बॉर्डर के आसपास के इलाकों वाली सीटों और बूथों पर सुरक्षा के ज्यादा कड़े इंतजाम किए गए हैं. इस फेज में जम्मू क्षेत्र की 24 सीटें हैं तो 16 सीटें कश्मीर इलाके की हैं. इस तरह जम्मू-कश्मीर की सत्ता का फैसला करने वाला यह चरण माना जा रहा है.
जम्मू वाले इलाके में बीजेपी और कांग्रेस की अग्निपरीक्षा है तो उत्तर कश्मीर वाले इलाके में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी को इंजीनियर राशिद और सज्जाद लोन की पार्टी सियासी चुनौती बन गई है. इतना ही नहीं इस चरण की सियासी बाजी जीतने वाली दल के हाथ ही राज्य की सत्ता की चाबी लग सकती है. इसलिए सभी दलों की साख दांव पर लगी है.
जम्मू-कश्मीर के तीसरे चरण की 40 सीटें
जम्मू-कश्मीर के अंतिम चरण में जम्मू रीजन में जम्मू, सांबा, कठुआ और उधमपुर की 24 सीटों और कश्मीर संभाग के बारामुला, बडगाम और कुपवाड़ा की 16 सीटों वोटिंग है. जम्मू क्षेत्र की 24 सीटें, उसमें उधमपुर पश्चिम, उधमपुर पूर्व, चेनानी, रमनगर (एससी), बानी, बिलावर, बसोहली, जसरोटा, कठुआ (एससी), हीरानगर, रामगढ़ (एससी), सांबा, विजयपुर, बिश्नाह (एससी), सुचेतगढ़ (एससी), आरएस पुराजम्मू साउथ, बाहू, जम्मू ईस्ट, नगरोटा, जम्मू वेस्ट, जम्मू नॉर्थ, मरह (एससी), अखनूर (एससी)और छंब सीट है.
वहीं, कश्मीर रीजन की 16 सीटें- करनाह, त्रेगम, कुपवाड़ा, लोलब, हंदवाड़ा, लंगेट, सोपोर, रफियाबाद, उरी, बारामुला, गुलमर्ग, वागोरा-क्रीरी, पट्टन, सोनवारी, बांदीपोरा और गुरेज (एसटी) सीट शामिल हैं. कश्मीर की यह सीटें उत्तर कश्मीर वाले इलाकी हैं, जिसमें बारामुला और कुपवाड़ा जैसे इलाके भी है. कुपवाड़ा का इलाका सज्जाद लोन का तो बारामुला को इंजीनियर राशिद अपने सियासी गढ़ के रूप में स्थापित कर रहे हैं.
तीसरे चरण में इन दिग्गजों की साख दांव
विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण में जिन दिग्गज नेताओं की साख दांव पर लगी है, उसमें कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री तारा चंद और निर्दलीय चुनाव लड़ रहे मुजफ्फर बेग हैं. पूर्व मंत्री सुरजीत सिंह सलाथिया, राजीव जसरोटिया, शामलाल शर्मा, रमण भल्ला, पवन गुप्ता, डॉ. देवेंद्र मन्याल, चंद्र प्रकाश गंगा, हर्षदेव सिंह, चौधरी लाल सिंह, अजय सडोत्रा, योगेश साहनी, मूला राम, मनोहर लाल, यशपाल कुंडल और सज्जाद गनी लोन समेत दर्जन भर नेताओं भाग्य का फैसला होगा. इसके अलावा सांसद इंजीनियर रशीद के भाई अरशद और अफजल गुरु के भाई एजाज गुरु का भी इम्तिहान इसी फेज में है.
जम्मू-कश्मीर में सत्ता के फैसले का चरण
जम्मू-कश्मीर के तीसरे चरण में जम्मू क्षेत्र की 24 तो कश्मीर रीजन की 16 सीटें है. इस तरह से कश्मीर रीजन से ज्यादा जम्मू क्षेत्र की सीटों पर मंगलवार को वोटिंग है. उत्तर कश्मीर की सियासत में मुस्लिम वोटर अहम हैं तो जम्मू में हिंदू मतदाताओं की मुख्य भूमिका है. जम्मू रीजन में बीजेपी और कांग्रेस के सियासी भविष्य का फैसला हिंदू मतदाता करेंगे. तीसरी चरण की जिन 24 सीटों पर चुनाव है, उसमें से 17 सीटें पर बीजेपी ने 2014 में जीतने में सफल रही थी, ये सभी सीटें जम्मू रीजन की थी. कश्मीररीजन में बीजेपी का कोई प्रभाव नहीं है, जिसके चलते पार्टी का पूरा दारोमदार जम्मू रीजन और हिंदू वोटर्स पर टिका हुआ है.
जम्मू, सांबा, कठुआ, उधमपुर की सीटों पर मुख्य चुनावी मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है. इस तरह बीजेपी और कांग्रेस, दोनों का सियासी आधार जम्मू क्षेत्र पर टिका हुआ है. नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ कांग्रेस गठबंधन कर चुनाव में उतरी है. कांग्रेस को जम्मू में अपनी ताकत दिखानी है जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस को कश्मीर घाटी में अपना दमखम दिखाना होगा. 2014 में बीजेपी जम्मू-कश्मीर की सियासत में किंगमेकर बनकर उभरी थी तो उसमें जम्मू रीजन की सीटों का अहम रोल था.
जम्मू क्षेत्र की 19 सीटों पर बीजेपी का कांग्रेस से मुकाबला
जम्मू वाले क्षेत्र की 24 सीटों पर बीजेपी ने अपने उम्मीदवार उतार रखे हैं, जिनमें से 19 सीट पर उसे कांग्रेस से मुकाबला करना पड़ रहा है और पांच सीटों पर नेशनल कांग्रेस से दो-दो हाथ करना होगा. जम्मू वाले इलाके में पीडीपी और कश्मीर की दूसरी अन्य पार्टियों का कोई खास सियासी आधार नहीं है. कांग्रेस के लिए जम्मू में पार्टी को फिर से पुनर्जीवित करना इतना आसान भी नहीं है. बीजेपी की जीत पूरी तरह से जम्मू पर निर्भर है. सीटें तो उनको जम्मू से ही मिलनी हैं. बीजेपी इस बार जम्मू-कश्मीर में अपनी सरकार बनाने का दावा कर रही है लेकिन उसके लिए भी जम्मू में अपना दबदबा बरकरार रखना होगा, जो आसान नहीं है.
हालांकि, बीजेपी नेताओं ने प्रचार के दौरान जम्मू के मतदाताओं को इस बात का यकीन दिलाने की कोशिश की है कि जम्मू क्षेत्र में पार्टी की कामयाबी का मतलब है कि सरकार बनाने के सारे रास्ते जम्मू से ही खुल सकते हैं और इसका फायदा जम्मू के लोगों को मिल सकता है. जम्मू के सियासी दलों और लोगों में हमेशा इस बात की शिकायत रही है कि जम्मू-कश्मीर की सियासी ताकत का केंद्र कश्मीर रहा है.
जम्मू रीजन वाली सीट पर बीजेपी जहां आज खड़ी नजर आ रही है, कभी उस जमीन पर कांग्रेस का दबदबा था. कश्मीर को छोड़कर अगर कांग्रेस अपनी बुनियाद बना पाएगी तो सिर्फ जम्मू वाले इलाके वाली सीटों पर. नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ अगर सरकार बनाना है तो कांग्रेस के लिए जम्मू इलाके वाली सीटों पर बेहतर प्रदर्शन करना होगा. जम्मू में कांग्रेस के प्रदर्शन पर ही नेशनल कॉन्फ्रेंस के सरकार का रास्ता तय होगा. बीजेपी को भी सरकार बनानी है तो जम्मू क्षेत्र की सीटों पर 2014 की तरह जीत बरकरार रखनी होगी. जम्मू क्षेत्र में ना एनसी है ना पीडीपी है. इस तरह जम्मू की लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी के बीच है.
उत्तरी कश्मीर की 16 सीटों पर मुकाबला
नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी का सियासी गढ़ कश्मीर है, जहां दोनों पार्टियों का अपने-अपने गढ़ है. दक्षिण कश्मीर और सेंट्रल कश्मीर इलाके की सीटों पर चुनाव हो चुके हैं और अब बारी उत्तर कश्मीर की 16 सीटों का है. पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसी मुख्यधारा वाले सियासी दलों के साथ-साथ अलगाववाद से राजनीतिक पिच पर उतरे इंजीनियर राशिद और सज्जाद लोन का भी अपना आधार है. सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और इंजीनियर राशिद की एआईपी दोनों की शुरुआत कुपवाड़ा जिले से हुई. इस बार चुनाव में जिस तरह इंजीनियर राशिद और सज्जाद लोन ही नहीं बल्कि जमात-ए-इस्लामी और निर्दलीय भी चुनावी मैदान में उतरे हैं, उसके चलते नार्थ कश्मीर के इलाके का चुनाव काफी दिलचस्प हो गया है.
उत्तर कश्मीर में इंजीनियर राशिद की आवामी इत्तिहाद पार्टी (एआईपी) एक अहम फैक्टर है. इंजीनियर राशिद की पार्टी 34 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. उनकी पार्टी ने जमात-ए-इस्लामी के साथ चुनावी गठबंधन किया है. तीसरे चरण की 15 सीटों पर एआईपी के उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं. उत्तर कश्मीर का इलाका एक समय नेशनल कॉन्फ्रेंस का गढ़ माना जाता था, लेकिन पीडीपी के उभार के बाद उसका राजनीतिक आधार खिसकता चला गया. 2008 चुनाव में एनसी ने 7 सीटों और पीडीपी छह सीटें जीतने में सफल रही.
2014 के चुनाव में पीडीपी सात सीटें जीतने में सफल रही
2014 के चुनाव में उत्तर कश्मीर के क्षेत्र में पीडीपी सात सीटें जीतने में सफल रही जबकि एनसी घटकर सिर्फ तीन सीटों पर सिमट गई थी. सज्जाद लोन की पार्टी दो सीटें जीती थी जबकि बाकी सीटें अन्य के खाते में गई थी. सज्जाद लोन 2014 में और हंदवाड़ा सीट से विधायक बने और उनके पार्टी सहयोगी बशीर अहमद डार ने कुपवाड़ा सीट से जीत दर्ज की थी. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इंजीनियर राशिद सिर्फ लंगेट विधानसभा क्षेत्र से बाहर कोई अस्तित्व नहीं था. लोकसभा चुनाव में राशिद की जीत के बाद सारे समीकरण बदल गए हैं.
बारामुला लोकसभा सीट के 18 विधानसभा क्षेत्रों में से 15 क्षेत्रों में इंजीनियर राशिद को बढ़त मिली थी. लोकसभा सांसद बनने के बाद राशिद अपनी पार्टी के आधार को मजबूत करने की उम्मीद कर रहे हैं. तीसरे चरण में उत्तरी कश्मीर के 15 सीटों पर उम्मीदवार उतार रखे हैं तो सज्जाद लोन की साख भी दांव पर लगी है. 2024 का लोकसभा चुनाव हारने के चलते सज्जाद लोन ने हंदवाड़ा और कुपवाड़ा दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं . ऐसे में इंजीनियर राशिद की पार्टी उनकी राह में एक बड़ी सियासी बाधा बन गई है. सज्जाद लोन और इंजीनियर राशिद की पार्टी के चलते पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस की टेंशन बढ़ा दी है.
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