महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ ये कैसा संयोग? अकेले चुनाव लड़ने में फायदा, गठबंधन में कम हो जाती हैं सीटें

महाराष्ट्र की सियासत में बीजेपी सबसे बड़े दल के तौर पर खुद को स्थापित करने में भले ही सफल हो गई हो, लेकिन ‘आत्मनिर्भर’ अभी तक नहीं बन सकी है. बीजेपी को सरकार बनाने के लिए किसी न किसी दल के बैसाखी की जरूरत पड़ती है. इसी सियासी मजबूरी में बीजेपी को गठबंधन के राह पर चलना पड़ रहा है नहीं तो अकेले चुनावी मैदान में उतरकर ज्यादा सीटें हासिल करने की वह ताकत रखती है. इस बार बीजेपी को एक नहीं दो सहयोगियों को एडजस्ट करना होगा, उसके लिए सीटों के साथ भी समझौता करना पड़ सकता है.

2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने शिवसेना के साथ मिलकर मैदान में उतरी थी जबकि 2014 में अकेले मैदान में उतरी थी. इस बार राज्य में पार्टी के सहयोगी दल की संख्या में इजाफा हो गया है. महाराष्ट्र में सीएम एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी के साथ मिलकर बीजेपी सत्ता पर काबिज है. विधानसभा चुनाव में तीनों दलों के एक साथ लड़ने की प्लानिंग है. इस तरह बीजेपी को एक नहीं दो सहयोगी के साथ सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय करना होगा. इन दोनों सहयोगियों के अलावा कुछ छोटे दलों को भी एडजस्ट करने की चुनौती है.

बीजेपी का चुनावी प्रदर्शन कैसा रहा?

महाराष्ट्र में कुल 288 विधानसभा सीटें हैं. 2019 में बीजेपी ने शिवसेना के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ी थी जबकि 2014 के विधानसभा चुनाव में अकेले किस्मत आजमाया था. 2019 में शिवसेना के साथ गठबंधन में रहते हुई बीजेपी ने 164 सीट पर उम्मीदवार उतारे थे जबकि शिवसेना 124 सीट पर चुनाव लड़ी थी. बीजेपी ने अपने कोटे की 164 सीटों में से 105 सीटें जीतने में कामयाब रही थी जबकि 55 सीटों पर दूसरे नंबर और 4 सीट पर तीसरे नंबर पर रही.

वहीं, 2014 के विधानसभा चुनाव नतीजों को देखें, जब बीजेपी ने किसी भी दल से गठबंधन नहीं किया था. बीजेपी ने 260 सीट पर उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से 122 सीट पर जीतने में कामयाब रही थी. इसके अलावा 60 सीट पर बीजेपी दूसरे नंबर पर रही थी तो 56 सीट पर तीसरे नंबर पर रही. राज्य में बीजेपी सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी थी और पहली बार राज्य में अपना मुख्यमंत्री बनाने में कामयाब रही थी.

बीजेपी के लिए क्या है सियासी मुफीद?

महाराष्ट्र की राजनीति में एक बात साफ है कि बीजेपी को अकेले चुनाव लड़ना सियासी मुफीद रहा है, लेकिन गठबंधन के साथ लड़ने पर फायदा नहीं मिल पाया है. इस बात को 2014 और 2019 के चुनावी नतीजों से समझा जा सकता है. महाराष्ट्र में बीजेपी लंबे समय तक शिवसेना के साथ गठबंधन में रहते हुए चुनाव लड़ती रही है, लेकिन पहली बार 2014 के विधानसभा चुनाव में दोनों अकेले-अकेले लड़ी थी. बीजेपी को इस चुनाव नतीजे के बाद ही राज्य में अपनी सियासी ताकत का एहसास हुआ, जब सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी और पहली बार अपना मुख्यमंत्री बनाने में सफल रही.

बीजेपी का सियासी आधार महाराष्ट्र की 240 सीटों पर अच्छा-खासा है. शिवसेना के साथ गठबंधन होने के चलते पूरे महाराष्ट्र में अपना सियासी आधार नहीं खड़ी कर सकी थी, लेकिन जब 2014 में अकेले लड़ने के बाद सबसे बड़ी पार्टी बनी. इसी का नतीजा है कि 2019 में शिवसेना के साथ गठबंधन कर चुनाव में उतर तो 164 सीट पर चुनाव लड़ा. इससे पहले शिवसेना के साथ रहते हुए बीजेपी छोटे भाई की भूमिका में रहती थी और शिवसेना बड़े भाई के रोल में थी.

फिलहाल दो दलों के बीच है गठबंधन

2024 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी के साथ सीट बंटवारा करना है. एनडीए गठबंधन में बीजेपी को सीट शेयरिंग में शिवसेना और एनसीपी के साथ कुछ छोटे दलों को एडजस्ट करना होगा. एकनाथ शिंदे और अजीत पवार दोनों ही खेमा अपने-अपने लिए अच्छी खासी सीटें मांग रहे हैं. ऐसे में बीजेपी 2019 में अपने कोटे वाली 164 से कम सीटों पर उसे चुनाव लड़ना पड़ सकता है. बीजेपी अगर ऐसा करती है तो सीटें कम हो सकती है.

बीजेपी विधानसभा चुनाव में 164 सीटों से जितनी सीटें कम पर लड़ेगी, उसे उतनी ही मुश्किल बढ़ेगी. सीट शेयरिंग में बीजेपी के जिन नेताओं को टिकट नहीं मिलेगा, या उनकी सीटें शिवसेना या एनसीपी के कोटे में जाती हैं. ऐसे में उनके सामने दो ही विकल्प होंगे या एनडीए के कैंडिडेट को स्वीकार करें या फिर किसी और पार्टी से चुनाव लड़े. उसके रुझान अभी से आने शुरू हो गई है, अजीत पवार के पाले में जाने वाली सीटों से बीजेपी नेताओं ने पार्टी छोड़नी शुरू कर दी है.

समरजीत सिंह घाटगे छोड़ चुके हैं पार्टी

समरजीत सिंह घाटगे पिछले दिनों बीजेपी छोड़कर शरद पवार की एनसीपी (एस) में शामिल हो गए हैं. शरद पवार ने उन्हें अजित पवार के करीबी और महाराष्ट्र के ग्राम विकास मंत्री हसन मुश्रिफ की कोल्हापुर के कागल सीट से विधानसभा चुनाव लड़ाने का ऐलान भी कर दिया है. घाटगे अकेले ऐसे मराठा नेता नहीं हैं, जिन्हें अपना राजनीतिक भविष्य बीजेपी के बजाय शरद पवार की पार्टी के साथ सुरक्षित नजर आ रहा है, बल्कि बीजेपी नेताओं की लंबी फेहरिस्त है.

इंदापुर से चुनाव लड़ने वाले बीजेपी नेता हर्षवर्धन पाटील शामिल हैं. रंजीत सिंह निंबालकर और जयकुमार गोरे सोलापुर और सतारा की लोकल राजनीति में कंफर्टेबल नहीं हैं. सोलापुर के बीजेपी नेता उत्तमराव जानकर और प्रशांत परिचारक भी जिले के बदलते समीकरण को देखते हुए पार्टी से मोहभंग होता दिख रहा. महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ एनसीपी के सियासी समीकरण बनने के चलते कई नेताओं की विधानसभा सीट का गणित गड़बड़ा गया है. बीजेपी और एनसीपी कार्यकर्ता लंबे समय तक चुनावी राजनीति में एक-दूसरे के खिलाफ लड़ते रहे हैं, लेकिन अब एक साथ आने से बीजेपी नेताओं को चुनाव लड़ने पर संकट गहरा गया है, खासकर उन सीटों पर जहां पर अजीत पवार खेमे के विधायक हैं.

बीजेपी के सबसे बड़ी चुनौती सीट शेयरिंग

महाराष्ट्र भर में करीब दो दर्जन विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जिन पर बीजेपी के नेता अजित गुट के उम्मीदवार के खिलाफ टिकट की रेस में है, क्योंकि 2019 में उन्होंने मजबूती से टक्कर दी थी.अजित पवार के सियासी पाला बदलने के चलते एनसीपी विधायकों वाली सीट पर बीजेपी नेताओं को टिकट मिलने का भरोसा नहीं है. समरजीत सिंह घाटगे की तरह कई बीजेपी नेता हैं, जिनकी सीट उनके खाते से जाती हुई नजर आ रही है. ऐसे में उन्होंने अपने सियासी ठिकाने के लिए पाला बदलना शुरू कर दिया है. बीजेपी के लिए सीट शेयरिंग से पहले ही चुनौती बनती जा रही है. देखना है कि बीजेपी इस बार कितनी सीटों पर चुनावी मैदान में किस्मत आजमाती है और सीट शेयरिंग के चलते कितनी सीटों पर सियासी प्रभाव पड़ता है?

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