सावन की दुर्गाष्टमी का पर्व हर साल बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है. यह दिन मां दुर्गा को समर्पित होता है. इस दिन मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा और व्रत किया जाता है. इस व्रत में लोगों को जरूरी बातों का ध्यान रखना होता है, ताकि व्रत का पूर्ण फल प्राप्त हो सके. मान्यता है कि इस शुभ तिथि पर सच्चे मन से मां दुर्गा की पूजा और व्रत करने से भक्तों को जीवन में शुभ फल की प्राप्ति होती है और मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
पंचांग के अनुसार, सावन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 12 अगस्त को सुबह 07 बजकर 56 मिनट पर शुरू हो गई है. अष्टमी तिथि का समापन 13 अगस्त को सुबह 09 बजकर 31 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, मासिक दुर्गाष्टमी का पर्व 13 अगस्त को मनाया जाएगा. इस साल की सावन दुर्गा अष्टमी पर सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग बन रहा है. उस दिन सुबह 06:26 बजे से सर्वार्थ सिद्धि योग है, जो शाम 06:44 बजे तक है. इस योग में किए गए कार्य सफल सिद्ध होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं. दुर्गाष्टमी के दिन देवी दुर्गा के अष्टम रूप, महागौरी की पूजा की जाती है. यह दिन शक्ति और साहस का प्रतीक है.
दुर्गाष्टमी पर क्या करें
- दुर्गाष्टमी के दिन माता महागौरी की विधि-विधान से पूजा करें और उन्हें फूल, फल, मिठाई और धूपबत्ती अर्पित करें.
- दुर्गाष्टमी के मौके पर कन्याओं के पैर छूकर आशीर्वाद लें और उन्हें भोजन कराएं.
- अष्टमी पूजा का विधि-विधान से पालन करें और व्रत रखने के साथ माता रानी के भजन-कीर्तन करें.
- दुर्गाष्टमी के शुभ अवसर पर घर में अखंड दीपक जलाएं. यदि घर में शस्त्र है तो उसकी भी पूजा करें.
दुर्गाष्टमी पर क्या न करें
- दुर्गाष्टमी के दिन व्रत करने वाले लागों को अशुद्ध भोजन से परहेज करना चाहिए.
- दुर्गाष्टमी के अपने मन में किसी प्रकार का कोई नकारात्मक विचार न आने दें.
- दुर्गाष्टमी के दिन किसी से भी झगड़ा न करें. और कोई अशुभ काम न करें.
दुर्गाष्टमी पर्व का महत्व
हिन्दू धर्म में दुर्गा अष्टमी का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. मां दुर्गा के 8वें स्वरूप मां महागौरी की पूजा विधि विधान से करने पर लोगों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और जीवन में आने वाली परेशानियों से छुटकारा मिलता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने जब कठोर तप से भगवान शिव को प्रसन्न कर दिया तो भोलेनाथ ने उनको महागौर वर्ण प्रदान किया क्योंकि हजारों साल के कठोर तप से उनका शरीर काला और दुर्बल हो गया था. माता पार्वती के महागौर वर्ण वाले स्वरूप को महागौरी के नाम से जानते हैं.
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