हिंदुओं के खिलाफ हिंसा-शेख हसीना को शरण… यूक्रेन वाली स्थिति में बांग्लादेश, नाजुक मोड़ पर भारत के साथ रिश्ते
साल 2014 में यूक्रेन की राजधानी कीव में तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच (Viktor Yanukovych) के खिलाफ बड़े प्रदर्शन हुए. विक्टर रूसी समर्थक थे और वो यूक्रेन को यूरोपीय यूनियन में शामिल होने के खिलाफ थे. प्रदर्शन के दौरान हिंसा हुई, कुछ आंदोलनकारी मारे गए और लोगों की गुस्साई भीड़ ने सरकार को उखाड़ फेंका. राष्ट्रपति विक्टर को जान बचाकर रूस में शरण लेनी पड़ी थी.
अमेरिका की विदेश उप मंत्री रहीं विक्टोरिया नूलैंड और दूसरे लोगों ने आधिकारिक तौर पर माना है कि यूक्रेन में सरकार विरोधी उन प्रदर्शनों को हर संभव अमेरिकी मदद दी गई. चुनी हुई सरकार को गिराने के साथ ही यूक्रेन में आंदोलन खत्म नहीं हुआ बल्कि क्रिमिया और डोनबास इलाके में रहने वाले और रूसी भाषा बोलने वाले लोगों को निशाना बनाया जाने लगा.
2014 में यूक्रेन से रुस के खिलाफ जो लहर शुरू हुई उसका परिणाम 2022 से रूस-यूक्रेन जंग के रूप में पूरी दुनिया देख रही है. 10 साल बाद भी यूक्रेन ना अब यूरोपीय यूनियन का सदस्य बन पाया है और ना ही नाटो का लेकिन रूस के साथ जंग में यूक्रेन तबाही का जीता जागता उदाहरण बन चुका है. रूसी प्रभाव से निकलने की बात से शुरू हुआ आंदोलन ने यूक्रेन को अमेरिका के चंगुल में ऐसे डाल दिया है जिससे शायद ही कभी वो स्वतंत्र हो सके.
बांग्लादेश से जान बचाकर भागीं हसीना, भारत में शरण
जुलाई-अगस्त 2024 में बांग्लादेश के शेख हसीना के तख्तापलट में इसकी बानगी दिखाई दे रही है. आरक्षण के खिलाफ छात्रों का विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ और फिर इसके निशाने पर शेख हसीना आ गईं. जान बचाने के लिए शेख हसीना को भी भारत आकर शरण लेनी पड़ी . बांग्लादेश में अंतरिम सरकार का गठन हो चुका हैं. बांग्लादेश में मौजूद हिंदू लोगों के खिलाफ हुई हिंसा और भारत विरोधी माहौल ने इस समस्या को बड़ा गंभीर बना दिया है. शेख हसीना के एक बयान के आधार पर यह दावा किया जा रहा है कि अमेरिका ने बांग्लादेश से सेंट मार्टिन आइलैंड मांगा था ताकि वहां अमेरिकी सैन्य बेस बनाकर चीन, भारत, म्यांमार समेत पूरे हिन्द महासागर पर अपना नियंत्रण रख सके. शेख हसीना ने यह देने से इनकार किया तो उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी. पहली नजर में यह सब कुछ यूक्रेन के यूरोमैदान प्रदर्शन मॉडल जैसा ही दिख रहा है.
भारत के साथ बांग्लादेश के रिश्ते नाजुक मोड़ पर
शेख हसीना के भारत में शरण लेने के नाम पर बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शन करने वाले छात्रों और दूसरे लोगों में भारत के प्रति नाराजगी साफ तौर पर झलकती है. आंदोलन की अगुवाई करने वाले या समर्थकों को भारत-बांग्लादेश के खास संबंधों की परवाह नहीं दिख रही है. मौके का फायदा उठा कर बांग्लादेश में भारतीय सामानों के बहिष्कार से लेकर भारतीय लोगों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं भी बढ़ रही है. हिन्दी भाषा के इस्तेमाल को लेकर बांग्लादेश में पहले भी संकोच होता था लेकिन मौजूदा समय में प्रदर्शनकारी छात्र खुलकर यह कह रहे हैं कि हिन्दी भाषा का इस्तेमाल अपमानजनक और अमानवीय है. छात्रों के द्वारा कई तरह के बेबुनियाद आरोप लगाए जा रहे हैं मसलन शेख हसीना ने नरसंहार के लिए भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ का इस्तेमाल किया है और ऐसे कई भारतीय रॉ एजेंट को बांग्लादेशी अंतरिम सरकार ने गिरफ्तार किया है. ऐसी तमाम अपवाहें जान बूझकर फैलायी जा रही है जिससे भारत के खिलाफ बांग्लादेश की नयी पीढ़ी को भड़काया जा सके. बांग्लादेश आगे किस राह पर जाएगा उससे तय होगा कि भारत और बांग्लादेश के रिश्ते कैसे रहेंगे.
शेख हसीना को लौटाने की भारत से मांग
बांग्लादेश में प्रदर्शनकारी छात्र भारत से मांग कर रहे हैं कि शेख हसीना को बांग्लादेश सरकार के हवाले किया जाए ताकि उनके खिलाफ आंदोलनकर्मियों की हत्या का मुकदमा चलाया जा सके. अपने आंदोलन में किसी विदेशी मदद को सिरे से खारिज कर रहे हैं. बांग्लादेश के विभिन्न इलाकों में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय पर हमले, लूटपाट, आगजनी की हो रही घटनाओं को ज्यादातर प्रदर्शनकारी या तो मानने से इनकार कर रहे हैं या इसे भी उनके आंदोलन को बदनाम करने की भारतीय साजिश करार देने लगते हैं. बांग्लादेश की इस नयी पीढ़ी के साथ भारत के संवाद को स्थापित करना एक चुनौती पूर्ण कार्य साबित होने वाला है. भारत और बांग्लादेश के जिस रिश्ते की अब तक दुनिया भर में दुहाई दी जाती थी उसे अब रूस-यूक्रेन जैसा होने की आशंका बढ़ती जा रही है.
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