जिनके घाव देखकर स्वजन छोड़कर भाग गए… 20 वर्षों से उनकी देखभाल कर रहा एक शख्‍स

जबलपुर। गैंगरीन। एक ऐसा रोग जिसमें शरीर का कोई अंग मर जाता है। इसे मेडिकल इमरजेंसी माना जाता है। पीड़ितों को अलग वार्ड में भर्ती करके उपचार किया जाता है। गैंगरीन वार्ड में भर्ती मरीजों के घाव की स्थिति देखकर और दर्द की पीड़ा सुनकर सामान्य व्यक्ति की रुह कांप जाती है। घाव गंभीर हो जाने पर स्वजन तक पीड़ित के पास जाने से कतराते है। कई बार उन्हें वार्ड में छोड़कर भाग जाते है।

ऐसे में विक्टोरिया जिला अस्पताल के स्वास्थ्य कर्मी सुरेश यादव पीड़ितों के लिए बड़ी उम्मीद हैं। अस्पताल के जिस वार्ड में उनका कोई साथी कर्मचारी काम करने के लिए तैयार था, वहां सुरेश ने अपनी नौकरी का लंबा समय निकाल दिया। अकेले ही वर्षों तक दर्द से तड़पते मरीजों की सेवा करते रहे।

जिंदगी के दर्द पर भी मरहम

इस दौरान पीड़ितों के घाव की ड्रेसिंग करते-करते सुरेश उनकी जिंदगी के दर्द पर भी मरहम लगाने लगे। ऐसा रिश्ता बना कि आज जब हाथ बंटाने के लिए भी नए साथी मिले तो सुरेश ने गैंगरीन वार्ड से नाता नहीं तोड़ा। वह आज भी पीड़ितों की पुकार पर प्रतिदिन वार्ड में जाते हैं। उनकी ड्रेसिंग करते हैं। यह सिलसिला लगभग 10 वर्ष से चल रहा है। वह मानते है कि यह उनका सौभाग्य है कि ईश्वर ने उन्हें पीड़ित मानवता की सेवा के लिए इस योग्य बनाया है।

15 वर्ष तक अकेले दायित्व निभाया

  • लालमाटी में रहने वाले सुरेश यादव (56) विक्टोरिया जिला अस्पताल में स्वास्थ्य कर्मी हैं।
  • सुरेश यादव विक्टोरिया जिला अस्पताल में मरीजों की मलहम-पट्टी का कार्य करते हैं।
  • जब नौकरी आरंभ की तो उन्हें गैंगरीन वार्ड में मरीजों की ड्रेसिंग का दायित्व दिया गया।
  • उन्होंने अपनी सेवाकाल के आरंभिक 15 वर्ष तक गैंगरीन वार्ड में निरंतर सेवा दी।
  • तब वह विक्टोरिया जिला अस्पताल के वार्ड में ड्रेसिंग करने वाले अकेले कर्मचारी थे।
  • उनके जज्बे को विक्टोरिया जिला अस्पताल के स्वास्थ्य अधिकारी भी सलाम करते हैं।

आज भी पीड़ितों से बनाए रखा नाता

अस्पताल में नए स्वास्थ्य कर्मचारियों की भर्ती हुई तो उन्हें गैंगरीन वार्ड में सहयोग मिला, फिर सर्जिकल एवं बर्न यूनिट में पदस्थ किया गया, लेकिन वह पांच वर्ष से अन्य यूनिट में सेवा देने के बाद भी गैंगरीन वार्ड से जुड़े हुए हैं। पीड़ितों के दर्द और अकेलेपन ने सुरेश को इतना झकझोर दिया कि उन्होंने उनसे अलग नाता ही बना लिया। पांच वर्ष से अन्य यूनिट का काम संभालते हुए भी निरंतर गैंगरीन वार्ड में ड्रेसिंग का काम कर रहे है।

जिनका कोई नहीं उनके सुरेश भाई

जिला अस्पताल में कई गैंगरीन पीड़ित गंभीर स्थिति में भर्ती होते हैं। अधिकतर मरीज को कोई नहीं होता है। कुछ विक्षिप्त भी पीड़ित होते हैं। संक्रमण बढ़ने पर अहसनीय पीड़ा होती है। घाव पर नियमित मरहम और पट्टी करना होता है। लेकिन घाव में बिलबिलाते कीड़े और दुर्गंध, परेशान करती है। अपने तक दूरी बना लेते है। तब सुरेश उनके शरीर के घाव भरने के साथ ही उनका मनोबल बढ़ाते है। इसलिए तो पीड़ित उन्हें सुरेश भाई कहकर बुलाते है।

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