राष्ट्र चंडिका न्यूज सिवनी,आज की स्टोरी बताने से पहले हम वक़्त का पहिया उल्टा घूमकर आपको थोड़ा पीछे लिए चलते हैं, ज़रा सोचिए जिस स्कूल में आप पढ़ते थे वहां अगर आप अकेले स्टूडेंट होते तो, मैं क्लास की बात नहीं कर रहा हूँ, पूरे स्कूल में आप ही अकेले स्टूडेंट होते तो कैसा होता, आज आपको लेकर चल रहे हैं एक ऐसे ही स्कूल में जहां पढ़ता है सिर्फ़ एक ही बच्चा और पढ़ाने के लिए टीचर भी एक ही हैं।
ये है सिवनी ज़िले के केवलारी ब्लॉक का चावरवारा गांव और यहाँ का प्राइमरी स्कूल, स्कूल में सिर्फ़ एक ही बच्ची पढ़ती है और वो चौथी क्लास में है और उसे पढ़ाने के लिए चमरू रजक नाम के शिक्षक भी मौजूद हैं। दो महीने पहले तक यहां एक बच्ची को पढ़ाने के लिए दो शिक्षक हुआ करते थे लेकिन 30 जून को एक शिक्षक के सेवानिवृत्त हो जाने से अब एक ही शिक्षक यहां पर हैं। चमरू रजक बताते हैं कि शिक्षा के अधिकार क़ानून के तहत निजी स्कूलों में बच्चों की फ़ीस नहीं लगती इसीलिए गांव के दूसरे बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ाई करने जाते हैं।
इसके बाद हमने रुख़ किया कंडीपार गांव के प्राइमरी स्कूल का जिसमें पढ़ते हैं सिर्फ़ दो बच्चे और पढ़ाने के लिए शिक्षक भी दो-दो ही हैं, यानी कि एक बच्चे को पढ़ाने के लिए एक शिक्षक, स्कूल के अंदर हम दाखिल हुए तो ऑफिस में ताला लगा हुआ था और दो क्लासरूम भी बंद थे, एक क्लासरूम के अंदर जाकर देखने पर लगा ही नहीं कि यहां पढ़ाई भी होती है, हालांकि दूसरे रूम का दरवाज़ा खोलने पर ज़मीन पर बैठने के लिए फट्टी नज़र आई और एक टेबल जो शिक्षक के बैठने के लिए होगी। शासकीय प्राथमिक शाला कंडीपार में ना बच्चे मिले और ना ही टीचर। बरामदे की दीवार पर लिखे दोनों नंबर पर कॉल किया तो प्रधान पाठक अशोक ठाकुर नंबर लगातार व्यस्त बताता रहा वहीं दूसरे शिक्षक सावनलाल बघेल ने फ़ोन पर बताया कि “मैं जनशिक्षा केंद्र आया हूं, ठाकुर सर वहीं कहीं होंगे, स्कूल में दो ही बच्चे हैं, जो कभी आते हैं कभी नहीं आते”।
इसके बाद हम निकल पड़े रोशान गांव जाने के लिए, जहां 4 बच्चों को पढ़ाने के लिए दो शिक्षक हैं। स्कूल पहुंचने पर हमें शिक्षक मिथिलेश तिवारी मिलें, उन्होंने बताया कि गांव में आदिवासी दिवस के कार्यक्रम हैं इसीलिए बच्चे नहीं आए। दूसरे शिक्षक की गैरमौजूदगी पर तिवारी ने बताया कि उनका आज ही प्रमोशन हुआ और इसी के साथ दूसरे स्कूल में ट्रांसफ़र हो गया है। स्कूल में सिर्फ़ चार बच्चों के होने पर शिक्षक बोले कि ज़्यादा बच्चे होते तो पढ़ाई भी अच्छे से होती और बच्चों को देखकर बच्चे सीखते।
अक्सर सरकारी स्कूलों से इस तरह की खबरें आती हैं कि कहीं बच्चों के लिए कमरे नहीं हैं तो कहीं टीचर्स नहीं हैं लेकिन यहां के स्कूल्स की तस्वीरें थोड़ा सुकून देती हैं और इसीलिए तारीफ़ होनी चाहिए सरकार की और शिक्षा महकमे की क्योंकि उन्होंने ऐसी नीति बनाई है जिससे एक बच्चा भी पढ़ाई से महरूम ना रह पाए, लेकिन एक सवाल भी उठता है कि आख़िर क्यों इन गांव में रहने वाले दूसरे बच्चे सरकारी स्कूलों से मुंह मोड़कर प्राइवेट स्कूलों में जा रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक़ सिवनी ज़िले में ऐसे 100 से ज़्यादा स्कूल हैं जहां बच्चों की संख्या 10 से कम है।