बिना चुनाव लड़े जमात-ए-इस्लामी ने कैसे शेख हसीना को सत्ता से बेदखल कर दिया?

बांग्लादेश आरक्षण की आग में झुलस रहा है…शेख हसीना प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर देश छोड़ चुकी हैं, हजारों की संख्या में आम जनता सड़क पर है और अब देश की बागडोर आर्मी के हाथों में है. बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ करीब एक महीने से छात्रों को विरोध प्रदर्शन जारी है.

21 जुलाई को जब बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण कोटे को अवैध करार दिया तो उम्मीद जताई जा रही थी कि शायद अब ये गतिरोध थम जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. प्रदर्शनकारी शेख हसीना सरकार के खिलाफ अड़ गए और इस्तीफे की मांग करने लगे.

जमात-ए-इस्लामी को बैन करना पड़ा भारी?

इस बीच शेख हसीना सरकार ने एक ऐसा फैसला लिया जिसे शायद पैर में कुल्हाड़ी मारने जैसा माना जा सकता है. 1 अगस्त को बांग्लादेश सरकार ने देश में जमात-ए-इस्लामी और उसके छात्र संगठन पर बैन लगाने की अधिसूचना जारी कर दी. माना जा रहा है कि यही शेख हसीना के लिए बड़ी भूल साबित हुई. सरकार ने जमात-ए-इस्लामी पर विरोध प्रदर्शन भड़काने का आरोप लगाया था. जमात-ए-इस्लामी पर बैन के बाद बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शन और तेज़ हो गए. प्रदर्शनकारियों ने हिंसा और सैकड़ों मौतों के लिए हसीना सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए शेख हसीना के इस्तीफे की मांग शुरू कर दी.

हिंदू विरोधी हिंसा के आरोप

जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामिक राजनीतिक पार्टी है, पार्टी का छात्र संगठन बांग्लादेश इस्लामी छात्र शिविर काफी प्रभावशाली संगठन है, हालांकि इस पर अक्सर हिंसा और चरमपंथ को बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं. खासकर बांग्लादेश में हिंदुओं पर होने वाले ज्यादातर हमलों में जमात-ए-इस्लामी के छात्र संगठन का ही नाम आता रहा है. यही नहीं भारत में अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद जमात-ए-इस्लामी के नेताओं और छात्र संगठन पर बांग्लादेश में हिन्दू विरोधी दंगे भड़काने का भी आरोप है.

दोबारा हिंसक प्रदर्शन के पीछे हाथ?

माना जा रहा है कि बांग्लादेश में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद हिंसक प्रदर्शन और शेख हसीना के विरोध के पीछे इसी संगठन का हाथ है. जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश में आम चुनाव में हिस्सा ले चुकी है वहीं खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की सरकार में भी शामिल रही है, लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल रहने के बावजूद बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी पर चरमपंथी होने का आरोप लगता रहा है. बांग्लादेश हाई कोर्ट ने 1 अगस्त 2013 को एक ऐतिहासिक फैसले में चुनाव आयोग के साथ जमात के रजिस्ट्रेशन को अवैध घोषित कर दिया था. इसके बाद जमात ने अपीलीय डिविजन में अपील की लेकिन 2018 में बांग्लादेश के चुनाव आयोग ने जमात-ए-इस्लामी का रजिस्ट्रेश रद्द कर दिया गया था, जिससे यह चुनाव लड़ने से अयोग्य हो गई थी.

कैसे बना जमात-ए-इस्लामी?

जमात-ए-इस्लामी की स्थापना भारत की आजादी से पहले साल 1941 में इस्लामी धर्मशास्त्री मौलाना अबुल अला मौदूदी ने की थी, यह एक इस्लामिक-राजनीतिक संगठन था. मिस्त्र में बने मुस्लिम ब्रदरहुड की तरह जमात-ए-इस्लामी अपनी तरह का पहला संगठन था जिसने इस्लाम की आधुनिक संकल्पना के आधार पर एक विचारधारा को तैयार किया. हालांकि आजादी के बाद जमात-ए-इस्लामी कई धड़ों में बंट गया, जिसमें जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान और जमात-ए-इस्लामी हिंद प्रमुख थे.

वहीं पाकिस्तान में जमात-ए-इस्लामी के पूर्वी धड़े से बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी का जन्म हुआ, जिसे बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी के नाम से जाना जाता है. 1971 में जब बांग्लादेश अलग देश बना था तब इस संगठन ने बांग्लादेश से पाकिस्तान के अलग होने का भी विरोध किया था.

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