इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में नहीं होगी SIT जांच, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका

इलेक्टोरल बॉन्ड मामले सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी (SIT) जांच की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि इस मामले में SIT जांच नहीं होगी. कोर्ट ने कहा कि मौजूदा नियम के मुताबिक याचिका स्वीकार करना उचित नहीं है. याचिकाकर्ता हाई कोर्ट जा सकते हैं. याचिका में चंदे के बदले कपनियों को लाभ का आरोप था. इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को रद्द कर दिया था, क्योंकि इसमें राजनीतिक चंदे को पूरी तरह से अज्ञात कर दिया गया था.

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि यह मामला हवाला कांड, कोयला घोटाला की तरह है. इन मामलों में न केवल राजनीतिक दल बल्कि प्रमुख जांच एजेंसियां ​​भी शामिल हैं. यह देश के इतिहास में सबसे खराब वित्तीय घोटालों में से एक है.

सीजेआई ने कहा कि सामान्य प्रक्रिया का पालन करें. हमने खुलासा करने का आदेश दिया है. हम एक निश्चित बिंदु तक पहुंच गए हैं, जहां हमने योजना को रद्द कर दिया है. भूषण ने कहा कि इसमें सरकारें शामिल हैं, सत्तारूढ़ दल शामिल हैं, शीर्ष कॉर्पोरेट घराने शामिल हैं. प्रशांत भूषण ने दलील देते हुए कहा कि कुछ मामलों में सीबीआई अधिकारी भी शामिल हैं, उनकी भूमिका की जांच होनी चाहिए.

ECI ने SC को दी बॉन्ड से जुड़ी जानकारी

सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग से इस डेटा के बारे में सवाल किया था. इसके बाद चुनाव आयोग ने बताया कि उसके पास डेटा की जानकारी नहीं है. इसके बाद चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री से डेटा को वापस लौटाने का निर्देश दिया था. चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को 2019 और 2023 में सिलबंद लिफाफे में जानकारी उपलब्ध कराई गई थी. शीर्ष अदालत ने 14 मार्च को चुनाव आयोग ने चुनावी बॉन्ड से जुड़ी एक और जानकारी अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक की थी.

इसमें 763 पेज की दो लिस्ट थी, जिसमें एक में बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी थी जबकि दूसरी में बॉन्ड को भुनाने वालों की जानकारी थी. 2022-23 में बीजेपी को छोड़कर सभी बड़े दलों को कम चंदा मिला.

क्या होता है इलेक्टोरल बॉन्ड्स?

इलेक्टोरल बॉन्ड्स के माध्यम से कोई संस्थान या कंपनी या व्यक्ति किसी राजनीतिक दल को पैसे चंदे के रूप में दे सकता है. कई कीमत के इलेक्टोरल बॉन्ड्स उपलब्ध हैं. इसके खरीदने वालों की पहचान गुप्त रखी जाती है. कोई भी राजनीतिक पार्टी बॉन्ड्स मिलने के 15 दिनों के अंदर इसे भुना सकती है. यह बॉन्ड्स सिर्फ पंजीकृत राजनीतिक पार्टियों को ही दिया जा सकता है.

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.