कांवड़ यात्रा में रेहड़ी और दुकानों पर नाम लगाने को लेकर मुजफ्फरनगर में प्रशासनिक विवाद अभी थमा भी नहीं था कि योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इस फैसले को पूरे उत्तर प्रदेश में लागू कर दिया. फैसले में कहा गया है कि कांवड़ यात्रा के दौरान रेहड़ी और सभी दुकानदारों को ठेले और दुकानों पर अपना नाम लिखना होगा, जिससे श्रद्धालुओं की आस्था बनी रहे. योगी सरकार के इस फैसले का विपक्ष के साथ-साथ एनडीए के सहयोगी दलों ने भी विरोध शुरू कर दिया है.
विरोध और विवाद में फंसी योगी सरकार के इस फैसले के लागू करने के पीछे 2 आंकड़े और एक कहानी को वजह बताया जा रहा है. क्या है वो 2 आंकड़ा और एक कहानी, इसे विस्तार से पढ़ते हैं…
पहले 2 आंकड़ों के बारे में जानिए-
1. सर्वे एजेंसी सीएसडीएस के मुताबिक हालिया लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में धार्मिक ध्रुवीकरण का मुद्दा नहीं चल पाया है. इसका असर बीजेपी की सीटों पर देखने को मिला. बीजेपी यूपी में 62 सीटों से 33 पर पहुंच गई है. बीजेपी गठबंधन को 80 में से 36 सीटों पर जीत मिली है.
CSDS के मुताबिक ओबीसी, दलित और मुस्लिम के वोट इस बार विपक्ष को मिला है. इंडिया गठबंधन को सबसे ज्यादा 92 प्रतिशत मुसलमान और 82 प्रतिशत यादव का वोट मिला है. इसके अलावा 34 प्रतिशत कोइरी-कुर्मी, 34 प्रतिशत अन्य ओबीसी, 25 प्रतिशत जाटव, 56 प्रतिशत नॉन-जाटव दलितों ने इंडिया के पक्ष में मतदान किया है.
पश्चिमी यूपी में भी मुसलमान, जाट और दलित एकसाथ नजर आए. इसका प्रभाव परिणाम पर भी दिखा. पश्चिमी यूपी की 24 में से 12 सीटों पर इस बार इंडिया गठबंधन ने जीत हासिल की है.
2. यूपी में कांवड़ मार्ग में नोएडा, गाजियाबाद, बुलंदशहर, मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बरेली, संभल, शामली, बागपत, बाराबंकी, प्रयागराज, अमरोहा और वाराणसी जैसे जिले आते हैं. हालिया लोकसभा चुनाव में इन 14 में से 7 जिलों में ही बीजेपी का परफॉर्मेंस बढ़िया था. बाकी जिलों में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. मेरठ में तो जीत का मार्जिन काफी कम था.
इन 14 जिलों में विधानसभा की करीब 70 सीटें हैं. जो कुल विधानसभा सीटों का करीब 17 प्रतिशत है. इतना ही नहीं, आगामी दिनों में जिन 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें से 3 विधानसभा सीट इन्हीं इलाकों के अधीन है. योगी आदित्यनाथ के लिए यह विधानसभा उपचुनाव काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
अब यूपी सियासत की एक कहानी
लोकसभा चुनाव में बीजेपी की निराशजनक प्रदर्शन के बाद से ही उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार कई नेताओं के निशाने पर है. खुद डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य संगठन को सरकार से बड़ा बता चुके हैं. इतना ही नहीं, विधायक फतेह बहादुर, विधायक सुशील सिंह और विधायक रमेश चंद्र मिश्र प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल उठा चुके हैं.
यूपी की सियासत में यह चर्चा भी जोरों पर है कि योगी आदित्यनाथ के मुकाबले केशव प्रसाद मौर्य को मजबूत किया जा सकता है. मौर्य जिस तरह से हाल में मुखर थे और फिर अचानक से शांत हो गए, उससे भी इन चर्चाओं को बल मिला है.
कहा यह भी जा रहा है कि राज्य की सरकार और संगठन में अब जो भी बदलाव होंगे, वो विधानसभा उपचुनाव के बाद ही होंगे. यानी 10 सीटों पर होने वाला उपचुनाव योगी आदित्यनाथ के लिए एक बड़ी परीक्षा मानी जा रही है.
सरकार के फैसले से सहयोगी नाराज
रेहड़ी और दुकानों पर नाम लिखने को लेकर योगी सरकार के आदेश से बीजेपी के सहयोगी दल ही नाराज हैं. राष्ट्रीय लोकदल, जनता दल यूनाइटेड और लोजपा (आर) ने तो बयान भी जारी किया है. जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता केसी त्यागी का कहना है कि इस तरह के फैसले की कोई जरूरत नहीं थी. चिराग ने भी योगी सरकार के फैसले को गलत बताया है.
राष्ट्रीय लोकदल का कहना है कि इस फैसले से भाईचारा प्रभावित होगा. पार्टी का कहना है कि चौधरी चरण सिंह के वक्त भी कांवड़ यात्रा निकलती थी और सब मिल-जुलकर रहते थे.
यूपी की 10 सीटों पर उपचुनाव प्रस्तावित
विधायकों के इस्तीफे की वजह से उत्तर प्रदेश विधानसभा की 10 सीटें रिक्त हो गई हैं. इनमें अंबेडकरनगर की कटेहरी, फैजाबाद की मिल्कीपुर, गाजियाबाद की शहर सीट, कानपुर की शिशामऊ, प्रयागराज की फूलपुर, मैनपुरी की करहल, मोरादाबाद की कुंदरकी, मुजफ्फरनगर की मीरापुर, मिर्जापुर की मझवा और अलीगढ़ की खैर सीट शामिल हैं.
इन 10 में से 5 सीटों पर सपा का कब्जा था, जबकि एक पर आरएलडी, एक पर अपना दल और 3 पर बीजेपी को 2022 में जीत मिली थी.
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