प्रेम लक्ष्य करके नहीं किया जाता. प्रेम लक्ष्य भी नहीं होता. बस होता है. और होता जाता है. जो ये कहते हैं कि उन्होंने कभी प्रेम नहीं किया, झूठ बोलते हैं. उन्होंने भी प्रेम किया, बस स्वीकार नहीं किया या कर नहीं पाए या अपने मन को स्वीकारने नहीं दिया. यदि प्रेम सच्चा है, आकर्षण नहीं है, तो एक ही व्यक्ति के साथ हर दिन इसके अलग स्वरूप की अनुभूति होती है. ऐसी अनुभूति, जिसकी व्याख्या उसका मज़ा खराब कर देती है.
ऐसी ही एक फिल्म आई है, नाम है Kill. इसे भारत की सबसे हिंसक फिल्म बताया गया. देखने के बाद ये बात साबित भी होती है कि ये वाकई भारत की सबसे हिंसक फिल्म है. पर इसमें हिंसा की व्याख्या है, प्रेम की नहीं, क्योंकि मज़ा खराब नहीं होना चाहिए.
ये फिल्म 90 प्रतिशत ट्रेन में शूट हुई है. एक बार मारकाट शुरू होती है, तो अंत तक खत्म ही नहीं होती. ऐसी हिंसा जो इससे पहले देखी नहीं गई. हर हत्या का अपना यूनीक स्टाइल. हर हत्या पिछली से ज्यादा वीभत्स. पिछली से ज़्यादा डरावनी. ऐसी खून से सनी फिल्म में प्रेम की कुछ झीनी दरारे हैं. मोस्ट वॉयलेंट फिल्म ऑफ इंडिया से नेह का चुनाव भी एक नज़रिया है.
किल प्रेम से शुरू होती और प्रेम पर ही खत्म. बीच में खूब सारी मारधाड़. पर इस पूरी मारधाड़ के मंजर के बीच प्यार के फूल बिखरे पड़े हैं. बस उन्हें चुनने की बात है. ये अमृत(लक्ष्य लालवानी) और तुलिका(तान्या मानिकलाता) के प्रीति में पगी पिक्चर है. अमृत एक ओर डकैतों को मौत के घाट उतार रहा होता है. दूसरी ओर प्रेम को जीवन दे रहा होता है. वो बता रहा होता है कि प्रेमिका को नहीं बचा सका, लेकिन प्रेम को ज़रूर बचाऊंगा.
एक लड़का है जो ट्रेन के टॉयलेट में अपनी गर्लफ्रेंड के सामने शादी का प्रस्ताव रखता है. वो उस प्रस्ताव को स्वीकार करती है. दोनों शादी करने का वादा करके अलग होते हैं. NSG कमांडो अमृत अपने दोस्त के पास जाता है. और तुलिका अपने उन पिता के पास, जिन्होंने उसकी सगाई पहले ही कर दी है, जो अमृत और तुलिका की नजदीकी को जानने के बाद पूछते हैं, तुमने इसके बारे में मुझे पहले क्यों नहीं बताया? तुलिका कहती है, बताकर भी क्या होता! इस बात का उसके पिता के पास कोई जवाब नहीं होता.
भारतीय मां-बाप को अपने बच्चों की भावनाओं को, आज़ादी को समझना चाहिए. कम से कम इतना तो हो कि वो अपनी बात रख सकें: वो किसी से प्रेम करते हैं. बहरहाल, इतनी जल्दी मां-बाप बदलने से रहे. जब आज की पीढ़ी पेरेंट्स बने, तो ज़रूर अपने बच्चों को सिर्फ कहने की नहीं, कह पाने की आज़ादी दे.
ख़ैर, फिल्म में प्रेम का सिर्फ एक ही स्वरूप नहीं, कई हैं. एक मां, जिसके बेटे को मार दिया गया. वो अपने बेटे का बदला लेती है. एक बेटा, जिसके पिता को मारा गया, वो उसका बदला लेना चाहता है. एक पिता, जिसके बेटे को बेरहमी से कत्ल किया गया, वो अपना बदला लेना चाहता है. पर सबके बदले पूरे नहीं होते. सत्य के ज़रूर होते हैं. और यहां सत्य अमृत के साथ था और अपना बेटा खोने वाली उस मां के साथ.
Kill में हिंसा ज़रूर है. पर उसे एनिमल सरीखा जस्टीफाई नहीं किया गया है. इस हिंसा के पीछे एक मज़बूत मकसद है. फ़र्ज़ करिए जिसके साथ कुछ मिनट पहले पूरा जीवन बिताने का वादा किया हो, उसे आपकी आंखों के सामने चाकू घोंपकर मार दिया जाए, कैसा महसूस होगा? ठीक वैसा ही अमृत को महसूस हुआ होगा.
उसने प्रेम के लिए राघव जुयाल के कैरेक्टर समेत 46 लोगों की हत्या की. उसने प्रेम को पाप से, पुण्य से, पृथ्वी से, और सबसे, बड़ा साबित करने के लिए इतने लोगों को मारा. अपनी प्रेमिका की अंतिम इच्छा के लिए डकैतों का संहार किया. इसके परिणामस्वरूप उसने अंत में अपना प्रेम पाया. जब सबको मारकर स्टेशन की बेंच पर अमृत बैठता है. उसके बगल में तुलिका होती है. कल्पना में ही सही, पर उसकी प्रेमिका उसके साथ है. जो मरकर भी कहती है, अमृत मुझे तुम्हारे साथ जीना है.
किल देश की सबसे ज़्यादा हिंसक फिल्म होने के बावजूद भी प्रेम को जिताती है. प्रेम को सबसे ऊपर रखती है. जीवन से भी ऊपर.
अंत में: अहिंसा ही परम धर्म है, और प्रेम ही परम सत्य.
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