सिंहस्थ से पहले बिल्वामृतेश्वर मंदिर का होगा जीर्णोद्धार, नर्मदा के टापू पर मौजूद है ये खूबसूरत स्थान, जहां रुके थे पांडव

धार: वर्ष 2028 में उज्जैन में आयोजित होने वाले सिंहस्थ को लेकर उज्जैन सहित समूचे मालवा-निमाड़ में अलग-अलग तैयारियां शुरू हो रही हैं। इसी कड़ी में धार जिला स्थित प्राचीन व ऐतिहासिक नगरी धरमपुरी में नर्मदा नदी के बीच बेंट टापू पर स्थित बिल्वामृतेश्वर महादेव मंदिर को संवारा जाएगा। इसे धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा।

पांच करोड़ रुपए की लागत से होने वाले विकास कार्यों में यहां श्रद्धालुओं की सुगम आवाजाही के लिए मार्ग बनाने सहित अन्य व्यवस्थाएं की जाएंगी। इसके लिए मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग ने कार्ययोजना तैयार की है। योजना के तहत धार जिला मुख्यालय से करीब 70 किमी दूर धरमपुरी में नर्मदा नदी के बीचोबीच बने बेंट टापू का विकास किया जाएगा। श्रद्धालुओं की आवाजाही के लिए नर्मदा नदी पर पुल निर्माण भी किया जाएगा। असुरों के संहार के लिए अपनी हड्डियां तक दान कर देने वाले महर्षि दधीचि की प्रतिमा स्थापना की भी योजना है।

मुख्यमंत्री ने दिखाई रुचि

धरमपुरी विधायक कालू सिंह ठाकुर ने मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव से सरकार बनने के बाद मुलाकात करके बेंट संस्थान के विकास को लेकर चर्चा की थी। इस मामले में मुख्यमंत्री ने तत्परता दिखाते हुए संबंधित विभाग को इस दिशा में योजना बनाने के निर्देश दिए थे। इस पर पर्यटन विकास निगम ने प्रशासन की पहल के साथ योजना तैयार की है। संस्थान द्वारा मंदिर परिसर में सुंदरीकरण का कार्य किया जाएगा। साथ ही यहां धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने व श्रद्धालुओं की सुविधा के भी कई कार्य होंगे।

तीर्थ विकास के लिए पांच करोड़ की योजना तैयार

पर्यटन विकास निगम के कार्यपालन यंत्री दीपक राज ने बताया कि मुख्यमंत्री और विभागीय उच्च अधिकारी के निर्देश के बाद धरमपुरी बेंट संस्थान के लिए योजना बनाकर पिछले सप्ताह जिला पुरातत्व, पर्यटन एवं संस्कृति परिषद के माध्यम से जिला प्रशासन को सौंप दी है।

जिले से अनुमोदित होकर पर्यटन विकास निगम के प्रबंध संचालक को पत्र जारी होगा। उसके बाद विभागीय निर्देशों के अनुरूप इस दिशा में आगे बढ़ेंगे। विस्तृत कार्य योजना बनाई है। पूरी योजना कुल पांच करोड़ रुपए की है।

स्कंद पुराण में है उल्लेख

त्रेतायुग में भगवान राम के पूर्वज राजा रंतिदेव ने इस टापू पर मनोरथ सिद्धि के लिए राजसूय यज्ञ किया था। राजा भगवान शिव के परम भक्त थे। उन्होंने भगवान शिव का आह्वान किया, तब भगवान यहां प्रकट हुए और दर्शन दिए। इसके पश्चात राजा की इच्छानुसार भगवान यहां लिंग रूप में स्थापित हो गए। स्वयंभू रूप से प्रकट शिवलिंग का स्कंद पुराण के रेवाखंड व रेवा माहात्म्य में उल्लेख है।

ऐसा है बेंट बिल्वामृतेश्वर महादेव मंदिर लोक

जीवन में मान्यता है कि महर्षि दधीचि जिन महादेव की पूजा करते थे, वह बिल्वामृतेश्वर कहलाए। 30 हजार वर्गफीट में बना बिल्वामृतेश्वर महादेव मंदिर रामायण कालीन है। यह नर्मदा की दो धाराओं के बीच तीन किमी लंबे टापू पर स्थित है। इस टापू को बेंट के नाम से पहचाना जाता है। मंदिर के पास ही महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी की समाधि स्थित है।

टापू के दक्षिण भाग में मंदिर में भगवान दत्तात्रेय एवं नर्मदा देवी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। लोक-जीवन में ऐसी मान्यता है कि दधीचि ऋषि ने इस टापू पर विश्व कल्याण के लिए वज्र बनाने के लिए अपनी अस्थियों का दान किया था। यद्यपि ऐसा ही दावा उत्तरप्रदेश के नैमिषारण्य क्षेत्र में भी किया जाता है।

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