झारखंड में एक बड़े सियासी उलटफेर में मुख्यमंत्री रहे चंपई सोरेन राज्य कैबिनेट का हिस्सा हो गए हैं. चंपई के इस डिमोशन की काफी चर्चा है. हालांकि, भारतीय राजनीति में यह पहली बार नहीं है, जब कोई मुख्यमंत्री डिमोशन होकर मंत्री बना हो. चंपई सोरेन के प्रकरण को छोड़ दिया जाए तो अब तक देश की राजनीति में 5 ऐसे मौके आ चुके हैं, जिसमें मुख्यमंत्री पद पर आसीन व्यक्ति उलटफेर के बाद मंत्री बन गया हो.
ऐसा करने वाले नेताओं में तमिलनाडु के पनीरसेल्वम सबसे आगे हैं. पनीरसेल्वम 3 बार मुख्यमंत्री बनने के बाद मंत्री राज्य सरकार में बने. 3 बार सीएम से मंत्री बनने की वजह से पनीरसेल्वम को फिलर की उपाधि भी मिली थी. इस स्टोरी में ऐसे ही 3 फिलर की कहानी जानते हैं…
1. बाबूलाल गौर बने थे सीएम से मंत्री
मध्य प्रदेश में 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई तो उमा भारती को मुख्यमंत्री बनाया गया. भारती 259 दिन तक ही राज्य की मुख्यमंत्री रह पाईं. कर्नाटक की एक अदालत से वारंट निकलने की वजह से उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा.
भारती के बदले बाबूलाल गौर राज्य के मुख्यमंत्री चुने गए, लेकिन जल्द ही उनकी कुर्सी भी ले ली गई. पार्टी ने चुनाव को देखते हुए 2005 में शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री घोषित किया.
दिलचस्प बात है कि सीएम की कुर्सी छोड़ने वाले बाबूलाल गौर को शिवराज कैबिनेट में शामिल कराया गया. गौर इसके बाद लंबे वक्त तक शिवराज कैबिनेट में मंत्री रहे.
आरएसएस की शाखा से राजनीति में एंट्री करने वाले बाबूलाल गौर 1974 में पहली बार विधायक चुने गए थे. 1990 में वे पहली बार मध्य प्रदेश कैबिनेट में सुंदरलाल पटवा की सरकार में मंत्री बनाए गए. गौर उमा भारती की कैबिनेट में भी मंत्री थे.
2. पनीरसेल्वम 3 बार सीएम से मंत्री बने
ओ पनीरसेल्वम तमिलनाडु के 3 बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, लेकिन दिलचस्प बात है कि दोनों बार कुर्सी छोड़ने के बाद वे फिर से मंत्री बनाए गए. पहला वाकया साल 2001 की है. तमिलनाडु में जे.जयललिता मुख्यमंत्री थीं, लेकिन एक मामले में जेल जाने की वजह से उन्होंने अपनी कुर्सी ओ पनीरसेल्वम को सौंप दी. पनीरसेल्वम 162 दिनों तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे.
जयललिता जैसे ही जेल से बाहर आईं, पनीरसेल्वम ने अपनी कुर्सी उन्हें दे दी. पनीरसेल्वम इसके बाद फिर से जयललिता कैबिनेट में शामिल हो गए.
दूसरा वाकया साल 2014 की है. आय से अधिक संपत्ति मामले में जयललिता दोषी ठहराई गईं, जिसके बाद उन्होंने फिर से अपनी कुर्सी पनीरसेल्वम को सौंप दी. पनीरसेल्वम इस बार 237 दिनों तक मुख्यमंत्री रहे और पहले की तरह ही जब जयललिता वापस आईं तो उन्होंने अपनी कुर्सी उन्हें सौंप दी.
जयललिता जब मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने पनीरसेल्वम को अपने कैबिनेट में शामिल किया. पनीरसेल्वम तीसरी बार दिसंबर 2016 में मुख्यमंत्री बने. इस बार वे जयललिता के निधन के बाद सीएम बने, लेकिन इस कार्यकाल में भी उन्हें जल्द ही पद छोड़ना पड़ गया.
एआईएडीएमके की आंतरिक राजनीति में बड़ा उलटफेर हुए और ई पलानीस्वामी मुख्यमंत्री बनाए गए. पनीरसेल्वम को पलानीस्वामी की सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाया गया. वे डिप्टी सीएम पद पर भी ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाए.
3. अब चंपई सोरेन ने दोहराया इतिहास
इसी साल जनवरी में प्रवर्तन निदेशालय ने जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया, तब जेएमएम और कांग्रेस ने कोल्हान टाइगर नाम से मशहूर चंपई सोरेन को सत्ता की कमान सौंपी. चंपई 5 महीने तक इस पद रहे. हेमंत के जेल से निकलने के बाद चंपई ने सीएम की कुर्सी छोड़ दी.
हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनने के बाद यह चर्चा तेज थी कि वे कैबिनेट में शामिल नहीं होंगे, लेकिन आखिर वक्त में हेमंत ने चंपई को अपने कैबिनेट में शामिल किया. चंपई को जल संशाधन और शिक्षा जैसे बड़े विभाग सौंपे गए हैं.
4. देवेंद्र फडणवीस भी सीएम से डिप्टी बने
साल 2022 में एकनाथ शिंदे की जब सरकार बनी तो मुख्यमंत्री रहे देवेंद्र फडणवीस को उनके कैबिनेट में शामिल कराया गया. सरकार में उन्हें डिप्टी सीएम की कुर्सी सौंपी गई. फडणवीस महाराष्ट्र के 2 बार मुख्यमंत्री रहे चुके हैं.
हालांकि, कैबिनेट स्तर पर फडणवीस का डिमोशन 3 साल के लंबे अंतराल पर हुआ. दरअसल, 2019 में फडणवीस जब बहुमत नहीं साबित कर पाए तो विपक्षी कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी ने सरकार बना ली. 3 साल बाद शिवसेना में टूट हो गई, जिसके बाद बीजेपी और शिवसेना (शिंदे) की राज्य में सरकार बनी.
क्या कोई मुख्यमंत्री मंत्री बन सकता है?
संविधान में इस तरह का न तो कोई प्रावधान है और न ही बैरियर. आमतौर पर नैतिकता के आधार पर मुख्यमंत्री कुर्सी पर बैठ चुके नेता राज्य कैबिनेट में शामिल नहीं होते हैं. भारत के संविधान में मुख्यमंत्री को राज्य कार्यपालिका का प्रमुख माना जाता है. मुख्यमंत्री के सलाह पर ही राज्यपाल मंत्रियों को नियुक्त करते हैं. ऐसे में सीएम पद पर रहने वाले नेता मंत्री नहीं बनना चाहते हैं.
अब तक जो 3 मुख्यमंत्री बाद में मंत्री बने हैं, उनमें 2 क्षेत्रीय पार्टी से ही है. सिर्फ एक बाबूलाल गौर बीजेपी से रहे हैं.
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