उत्तर प्रदेश के जौनपुर में एसटीएफ और वहां की लोकल पुलिस को इस बात की जानकारी थी कि चवन्नी का मूवमेंट है और किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने के लिए निकलने वाला है, उसके पास एके 47 भी होगी और साथी भी. उसे इस बात की जानकारी भी कि वह बोलेरो गाड़ी से निकलेगा. एसटीएफ के डीएसपी धर्मेश शाही जौनपुर पहुंचे और उन्होंने घेराबंदी शुरू की. इसकी बोलेरो गाड़ी को एसटीएफ के जवानों ने रोकने का प्रयास किया, लेकिन इसने पुलिसवालों पर ही गोलियों की बौछार कर दी. पुलिस ने जवाबी कार्रवाई की और करीब 20 मिनटों तक दोनों ओर से गोलियां चलती रही, जब गोलीबारी खत्म हुई तो यह शातिर सुपारी किलर सुमित सिंह उर्फ मोनू उर्फ चवन्नी मारा गया. इसकी लाश के पास से एक एके 47 और एक 9 एमएम की पिस्तौल बरामद की गई.
उत्तर प्रदेश के मऊ का रहने वाला मोनू ऊर्फ चवन्नी ने अपराध की शुरुआत मुख्तार अंसारी के संपर्क में आकर की. मुख्तार अंसारी ने बाद में शहाबुद्दीन को इसे ट्रांसफर कर दिया और फिर यह शहाबुद्दीन का शार्प सूटर कहलाने लगा. सीवान जेल में एक अपराधी बहुत ही खतरनाक अपराधी हरीश पासवान हुआ करता था, जो 2021 में यूपी पुलिस के हाथों मारा गया. उत्तर प्रदेश का ही रहने वाला हरीश पासवान यह जेल से जल्दी निकलता नहीं था और इसने जेल में ऐसी व्यवस्था कर रखी थी कि वहां इसकी अलग रसोई चलती थी. इसके साथ ही जेल में जो नए-नए बदमाश आते थे, जिसका जेल के भीतर कोई नहीं होता था, उसका हरिश पासवान हुआ करता था. यह नए अपराधियों का जन्मदाता था या यूं कहे कि अपराधियों को बनाने वाली फैक्ट्री का मालिक था. हरीश पासवान ने चवन्नी को ज्यादा खतरनाक बनाया.
कितना खतरनाक था चवन्नी?
2009 में शहाबुद्दीन जेल में थे और उसकी पत्नी हीना साहब ने आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन वहां निर्दलीय ओम प्रकाश यादव ने हीना साहब को चुनाव हरा दिया था. ओम प्रकाश यादव एक ऐसे नेता थे, जिन्हें शहाबुद्दीन ने थप्पड़ मारा था और उसी थप्पड़ का प्रतिकार करते-करते, शहाबुद्दीन के आतंक को चुनौती देते-देते ओम प्रकाश यादव जब चुनाव प्रचार को निकलते थे तो सिर पर कफन बांधे रहते थे. उनकी पत्नी कहती थी कि मैंने अपने को विधवा मान लिया है, क्योंकि शहाबुद्दीन के खिलाफ लड़ना है तो ऐसे लड़ाई थोड़ी होगी. ओम प्रकाश यादव ने खटिया छाप के चुनाव चिन्ह पर हीना साहब को चुनाव हरा दिया था.
शहाबुद्दीन का प्रभाव, राजनैतिक वजूद सिवान में खतरे में पड़ गया था, फिर 2014 में ओम प्रकाश यादव बीजेपी के उम्मीदवार हो गए थे और चुनाव जीत भी गए, फिर से हीना साहब चुनाव हारी थी. शहाबुद्दीन जेल के भीतर थे और 2014 में अप्रैल-मई में चुनाव हुए थे. इसके बाद नवंबर में एक बड़ी घटना घटी, ओम प्रकाश यादव के प्रवक्मता श्रीकांत भारती ने 2010 का विधानसभा चुनाव भी कांग्रेस के टिकट पर लड़ था. श्रीकांत भारती की हत्या 23 नवंबर 2014 को कर दी गई. पूरे शिवान शहर में बवाल हो गया. सांसद के प्रतिनिधि श्रीकांत भारती को गोलियों से भून दिया गया. जब इस कांड की जांच शुरू हुई तो शक शहाबुद्दीन पर गया और जब खुलासे होने लगे तो यह बात सामने आई कि शहाबुद्दीन के खास उपेंद्र सिंह ने हत्या को प्लान कराया.
शहाबुद्दीन का खास था चवन्नी
श्रीकांत भारती किसी शादी से लौट रहे थे और घर के पास पहुंच ही रहे थे कि तभी उन्हें रास्ते में गोली मारी गई. उपेंद्र सिंह एक चिमनी के मालिक भी थे और श्रीकांत हत्याकांड में खुलासा हुआ कि यह सुपारी किलर का काम है. सबसे पहले गोरखपुर से दो सुपारी किलर शैलेंद्र यादव और विकास की गिरफ्तारी हुई. इन दोनों की गिरफ्तारी इसका राज खुला था कि असली कातिल जिसने गोलियों की बौछार की थी, वह तो सुमित सिंह उर्फ मोनू उर्फ चवन्नी है. यह भी पता चला कि हत्यारे उपेंद्र सिंह की चिमनी पर ही हत्या के पहले ठहरे हुए थे और फिर वही से उनको गाड़ी दिलाई गई थी, जिसका इस्तेमाल हत्या में हुआ.
अगस्त 2015 में हत्या के करीब 9-10 महीने बाद यह उत्तर प्रदेश के लखनऊ से गिरफ्तार हुआ. इस गिरफ्तारी में बिहार की पुलिस का इनपुट भी था और जानकारी यह दी गई कि यह हथियार प्राप्त करने जा रहा था और इसे एक-दूसरे हत्याकांड में किसी गवाह की हत्या करनी थी. इसके लिए यह लखनऊ पहुंचा हुआ था तो गिरफ्तारी हुई, तब कोई मुठभेड़ नहीं हुई. जेल में रहते हुए भी यह बाहरी दुनिया में अपना आतंक कायम किए हुए था. 13 मई 2016 को सीवान फिर से सिहर गया, जब हिंदुस्तान अखबार के पत्रकार राजदेव रंजन की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है. वह रात को कार्यालय से घर जा रहे थे, रास्ते में अपराधियों ने उन्हें मार डाला. राजदेव रंजन की हत्या दोनों आंखों के बीच गोली मारकर की की गई थी, नाक पर भी गोली मारी गई थी.
जब छपीतस्वीर पर बढ़ा विवाद
राजदेव रंजन की हत्या हुई तो देश के पत्रकार आंदोलित हो गए थे. राजदेव रंजन की हत्या किसने कराई, इसका सवाल का जवाब तलाशा जा रहा था. शक की सूई शहाबुद्दीन पर जा रही थी. शहाबुद्दीन इस हत्याकांड में शामिल किस रूप में थे, इसे पहचानने का प्रयास किया जा रहा था, लेकिन एक जानकारी यह सामने आई कि शहाबुद्दीन की ओर से एक हिट लिस्ट जारी हुई थी और इस हिट लिस्ट में राजदेव रंजन पत्रकार का नाम सातवें नंबर पर था. शहाबुद्दीन से राजदेव रंजन की नहीं बनती थी, यह बात भी सही है. इस मर्डर केस के पहले राजदेव रंजन ने एक तस्वीर छापी थी, कहा जाता है उस तस्वीर के कारण शहाबुद्दीन का गुस्सा सातवें आसमान पर था. तस्वीर में शहाबुद्दीन जेल के भीतर बिहार सरकार के मंत्री अब्दुल गफूर के साथ भोजन कर रहे थे. यह तस्वीर राजदेव रंजन ने प्राप्त कर ली थी, यह तस्वीर छपी और इसके बाद विवाद बढ़ा.
उस समय जो जानकारियां सामने आई, उसमें एक लड्डन मियां का नाम भी आया. लड्डन मिया शहाबुद्दीन का आदमी था और कहा गया कि इसी लड्डन मिया ने राजदेव रंजन की हत्या को प्लान किया. इस मामले में भी चवन्नी का नाम आया. 13 मई 2016 को राजदेव रंजन की हत्या हुई, उससे ठीक तीन दिन पहले इसे सिवान जेल में लाया गया था. राजदेव रंजन इस चवन्नी के बारे में खबरें लगातार लिख रहे थे. वह रोजाना इसपर अपडेट लेख लिख रहा था कि अब चवन्नी सिवान जेल लाया गया है, पुलिस उसे रिमांड पर लेगी और भाजपा नेता श्रीकांत भारती की हत्या में बड़े खुलासे होंगे. उसका इशारा शहाबुद्दीन की तरफ था.
अभी भी शहाबुद्दीन के लोगों का था करीबी
चवन्नी जेल में बहुत दिनों तक कैद नहीं रहता था, क्योंकि इसके पैरोकार बहुत लोग थे, बड़े-बड़े वकील थे और यह जमानत पर छूट जाने के बाद कांटेक्ट किलिंग को अंजाम देने लगता. जब शहाबुद्दीन नहीं रहा तब भी उसके लोगों के साथ इसकी मिलीभगत बनी रही. कहा जाता है कि जो एके 47 के पास था, वह भी सिवान का ही एक 47 था. अप्रैल 2022 पहला हफ्ता सिवान में रईस खान और अयूब खान दोनों शहाबुद्दीन के विरोधी रहे हैं. शहाबुद्दीन के गुजर जाने के बाद रईस खान शहाबुद्दीन के प्रभुत्व को चुनौती दे रहा था. वह निर्दलीय उम्मीदवार बनकर चुनाव मैदान में था तो चुनाव के दिन ही रईस खान के काफिले पर पीछे से अंधाधुंद फायरिंग होती है. गोलियों की बरसात एके 47 से की जाती है. रईस खान बच जाता है, उसके साथ रहे दो लोग घायल होते हैं, लेकिन एक बाइक सवार जो उस रास्ते से गुजर रहा होता है, उसकी मौत हो जाती है.
जब इस घटना का पर्दाफाश होता है तो मालूम होता है कि रईस खान के काफिले पर अंजाम देने वाला अपराधी उत्तर प्रदेश के मऊ का सुमित सिंह उर्फ मोनू उर्फ चवन्नी ही था. रईस खान पर यह आरोप लग रहा था कि वह जमीन के मामलों में पुलिस के साथ मिलकर कुछ कर रहा है. एक जमीन पर रईस खान की नजर थी तो चवन्नी ने रईस खान को धमकाया भी था कि उधर नजर डाली तो नजर निकाल लेंगे. दिसंबर 2022 में जब आरएस भट्टी बिहार के डीजीपी बने और ऐसा लगने लगा कि बिहार के मोस्टवांटेड अपराधी अपराधियों की सूची तैयार की गई और उनके खिलाफ एसटीएफ को लगाया गया. पुलिस ने सुमित उर्फ मोनू उर्फ चवन्नी को दिसंबर 20222 में गिरफ्तार किया गया, लेकिन फिर से कुछ महीनों के बाद यह जेल से छूट जाता था.
अब शहाबुद्दीन और मुख्तार अंसारी नहीं रहे तो कई दूसरे गिरोहों से इसकी गठजोड़ थी, यह पैसे लेकर मर्डर करता था. यह कहता था कि मैं यमदूत हूं, मैं जहां जाता हूं, वहां गोलियों की बरसात होती है और जो मेरे टारगेट पर होता है, वह जिंदा नहीं बचता है. लेकिन आज वह यूपी एसटीएफ की टारगेट पर था और खुद जिंदा नहीं बचा.
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