देश में मोदी सरकार 3.O का गठन हो चुका है. नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद लोकसभा के स्पीकर का भी चुनाव हो गया है. ओम बिरला ध्वनिमत से स्पीकर चुने गए हैं. इस बार की मोदी सरकार बीजेपी के दम पर नहीं बल्कि एनडीए के सहयोगियों के सहारे बनी है. इसके चलते ही माना जा रहा था कि गठबंधन की मजबूरी में अटल फॉर्मूले पर चली है, लेकिन मंत्रिमंडल गठन से लेकर लोकसभा के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर पद पर मोदी मॉडल की छाप दिख रही है. ऐसे में ये बात साफ है कि भले ही सरकार गठबंधन के दम पर बनी हो, लेकिन चलेगी मोदी मॉडल पर ही.
मोदी सरकार 3.O टीडीपी और जेडीयू के सहयोग से बनी है. बीजेपी को इस बार के चुनाव में 240 लोकसभा सीटें ही हासिल हुई, जो बहुमत के 272 के आंकड़े से पीछे है. 1998 और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी सरकार में भी यही स्थिति थी. उस समय भी बीजेपी को बहुमत नहीं था और एनडीए गठबंधन के सहयोगी दलों के सहारे सरकार बनी थी. वाजपेयी सरकार के दौरान मंत्रिमंडल में सहयोगी दलों का पूरी तरह से दबदबा था और स्पीकर की कुर्सी पर भी सहयोगी के पास थी, लेकिन मोदी सरकार में पूरी तरह से वर्चस्व बीजेपी का है.
स्पीकर की कुर्सी बीजेपी ने अपने पास रखी
2024 के लोकसभा चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है. बीजेपी भले ही सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी हो, लेकिन मोदी सरकार सहयोगी दलों के सहारे बनी है. ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक अनुमान लगा रहे थे कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान जिस तरह से स्पीकर का पद टीडीपी और शिवसेना को मिला था, उसी तर्ज पर मोदी सरकार में भी लोकसभा अध्यक्ष का पद किसी सहयोगी दलों को दिया जा सकता है. अटल बिहारी वाजपेयी के सत्ता में रहने के दौरान 1998 में स्पीकर टीडीपी के नेता जीएमसी बालयोगी बने थे. इसके बाद 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में दोबारा से सरकार बनी तो फिर से स्पीकर का पद टीडीपी को मिला और बालयोगी बने थे. हालांकि, एक दुर्घटना में बालयोगी के निधन के बाद शिवसेना के नेता मनोहर जोशी स्पीकर बने थे.
अटल की सरकार में स्पीकर का पद सहयोगी दलों के पास रहा, लेकिन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की सरकार बनने के बाद से लोकसभा के स्पीकर की कुर्सी पर बीजेपी नेता ही विराजमान हो रहे हैं. 2014 में सुमित्रा महाजन लोकसभा अध्यक्ष बनी थीं और 5 साल तक अपने पद रहीं. इसके बाद 2019 में मोदी सरकार दोबारा से सत्ता लौटी से लोकसभा स्पीकर के पद पर बीजेपी नेता ओम बिरला विराजमान हुए. 2014 और 2019 में बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत था, लेकिन 2024 में अपने दम पर बहुमत का नंबर न जुटाने के बावजूद बीजेपी ने स्पीकर का पद किसी सहयोगी दल को देने के बजाय अपने पास रखा. एक बार फिर से ओम बिरला ध्वनिमत के साथ लोकसभा स्पीकर चुन लिए गए हैं.
डिप्टी स्पीकर के लिए मोदी मॉडल
आम तौर पर सत्तापक्ष लोकसभा अध्यक्ष का पद अपने पास रखती है जबकि उपसभापति का पद विपक्षी दल को दिया जाता है. इसी आधार पर लोकसभा उपाध्यक्ष का पद की मांग विपक्षी इंडिया गठबंधन कर रहा था, जिसे न मिलने पर ही कांग्रेस ने लोकसभा स्पीकर के पद पर के सुरेश को मैदान में उतारा था. मोदी सरकार ने चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गई, लेकिन विपक्ष को डिप्टी स्पीकर का पद नहीं देने के लिए रजामंद हुई. 16वीं लोकसभा 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी तो बीजेपी ने अपनी नेता सुमित्रा महाजन को स्पीकर बनाया था और लोकसभा उपाध्यक्ष का पद अपने सहयोगी दल एआईएडीएमके को दिया था. एम थम्बी दुरई इस लोकसभा के उपाध्यक्ष थे.
2019 में बीजेपी के ओम बिरला 17वीं लोकसभा के अध्यक्ष बने थे, लेकिन लोकसभा में उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं हुआ और पूरे कार्यकाल तक यह पद खाली रहा. इस बार विपक्षी इंडिया गठबंधन लोकसभा उपाध्यक्ष के पद के लिए अड़ा हुआ था, लेकिन मोदी सरकार तैयार नहीं हुआ है. मोदी सरकार के लोगों का कहना है कि विपक्ष को उपाध्यक्ष पद देने का कोई नियम नहीं है. यह परंपरा है, जिसको तोड़ने की शुरुआत कांग्रेस ने की है. दूसरी लोकसभा में ही पंडित जवाहर लाल नेहरू सरकार के दौरान कांग्रेस के ही हुकुम सिंह को यह जिम्मेदारी दी गई थी. गठबंधन सरकार के दौरान कई बार सरकार की अगुवाई करने वाले पार्टियों ने अध्यक्ष पद सहयोगी को देते हुए उपाध्यक्ष पद अपने पास रखा है. इसी के तहत माना जा रहा है कि स्पीकर के पद बीजेपी ने अपने नेता ओम बिरला को सौंपा है और उपाध्यक्ष का पद अपने सहयोगी टीडीपी को को सौंप सकती है. पीएम मोदी ने 2014 में भी ऐसा ही किया था.
मंत्रिमंडल गठन में अटल बनाम मोदी
मोदी सरकार 3.O भले ही एनडीए के सहयोगी दलों के सहारे बनी हो लेकिन मंत्रिमंडल में दबदबा बीजेपी का है. राष्ट्रीय हित व सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर अहम फैसले लेने वाली सुरक्षा मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीएस) से जुड़े मंत्रालयों को बीजेपी ने अपने पास रखा है. रक्षा, विदेश, गृह और वित्त जैसे सभी हाई प्रोफाइल मंत्रालय अपने पास रखे हैं. इसके अलावा स्वास्थ्य, परिवहन, शिक्षा, कपड़ा, ऊर्जा, शहरी विकास, कृषि, वाणिज्य, ऊर्जा, जहाजरानी एवं जलमार्ग, उपभोक्ता और अक्षय ऊर्जा, दूरसंचार, पर्यावरण, पर्यटन, महिला एवं बाल विकास, श्रम-रोजगार, खेल, कोयला और खनन और जलशक्ति मंत्रालय बीजेपी ने अपने नेताओं को दिए हैं.
वहीं, अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में जब पहली बार देश में एनडीए की पहली सरकार बनी थी, तो सीसीएस से जुड़े मंत्रालयों को गठबंधन के सहयोगी दलों को सौंप था. 1999 में वाजपेयी सरकार में भी सीसीएस से जुड़े कई मंत्रालय सहयोगी दलों के हिस्से में चले गए थे, लेकिन 2014 से 2019 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार के दोनों कार्यकाल में चारों मंत्रालय बीजेपी के पास रहे, क्योंकि पार्टी के पास पूर्ण बहुमत था. हालांकि, इस बार नतीजों के बाद से कयास लगाए जा रहे थे कि इन मंत्रालयों में से एक-आध मंत्रालय गठबंधन के सबसे बड़े साथी टीडीपी और जनता जेडीयू के खाते में जा सकते हैं, लेकिन पीएम मोदी ने इन चारों मंत्रालयों में बिना कोई बदलाव किए अपने पास रखा है और पुराने नेताओं को इनकी कमान सौंपी है. इसके जरिए यह साफ संदेश दिया है कि गठबंधन सरकार के बावजूद उनके तीसरे कार्यकाल में भी पहले दो कार्यकाल की तरह तेजी से फैसले लिए जाएंगे.
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