दिल्ली उच्च न्यायालय आज प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुनाएगा, जिसमें आबकारी नीति मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत देने के निचली अदालत के आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई है. न्यायमूर्ति सुधीर कुमार जैन दोपहर 2:30 बजे फैसला सुनाएंगे. सीएम केजरीवाल को 20 जून को निचली अदालत से जमानत मिली थी. 21 जून को ईडी ने मुख्यमंत्री को जमानत दिए जाने को चुनौती देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया.
इस बीच, केंद्रीय जांच एजेंसी ने विवादित आदेश पर रोक लगाने के लिए तत्काल आवेदन दायर किया. दिल्ली उच्च न्यायालय पिछले सप्ताह अवकाश न्यायाधीश न्यायमूर्ति जैन ने शुक्रवार को ईडी की याचिका पर सुनवाई की. स्थगन आवेदन पर फैसला सुरक्षित रखते हुए न्यायालय ने आदेश दिया कि आदेश की घोषणा होने तक विवादित आदेश पर रोक रहेगी.
इसके बाद सीएम केजरीवाल ने उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए स्थगन को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया. मामले की सुनवाई सोमवार को न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली अवकाश पीठ ने की, जिसने सुनवाई 24 जून तक के लिए स्थगित कर दी.
ईडी ने जमानत याचिका का किया विरोध
हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने मौखिक रूप से कहा कि अरविंद केजरीवाल की जमानत के खिलाफ ईडी की स्थगन याचिका पर आदेश सुरक्षित रखने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय का दृष्टिकोण “थोड़ा असामान्य” था.
दिल्ली हाईकोर्ट में ईडी की ओर से 29 पृष्ठ का लिखित जवाब दाखिल किया गया. शराब घोटाले में केजरीवाल को जमानत देने का ईडी ने विरोध किया था. ईडी ने कहा कि निचली अदालत द्वारा केजरीवाल को दी गई जमानत गैर कानूनी है. हाईकोर्ट में दाखिल जवाब में ईडी ने हवाला ऑपरेटर्स, गोवा के आप कार्यकर्ता के 13 बयान सबूत के तौर पर दिए.
ईडी ने कहा कि निचली अदालत ने कोर्ट के समक्ष रखा गए सबूतों और तथ्यों को दरकिनार करते हुए फैसला दिया. ईडी को PMLA के सेक्शन 45 के मुताबिक अपना पक्ष रखने का मौका नहीं मिलना गैर कानूनी है.
केजरीवाल की ओर से दाखिल किया गया जवाब
वहीं, अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली हाईकोर्ट में जवाब दाखिल किया. ईडी के आरोपों पर अरविंद केजरीवाल ने जवाब दाखिल करते हुए कहा कि गोवा चुनाव में पैसा खर्च करने का ईडी के पास एक भी सबूत नहीं है. सीएम केजरीवाल के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय के पास एक भी सबूत नहीं है. जमानत का लॉलीपॉप देकर के गवाहों से केजरीवाल के खिलाफ साजिश के तहत बयान दिलवाए हैं.
न्यायालय ने सुनवाई स्थगित कर दी, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह उच्च न्यायालय के आदेश की प्रतीक्षा करते समय इस मुद्दे पर “पूर्व-निर्णय” नहीं करना चाहता है.
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