हिन्दू धर्म में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में हैं जिसमें केदारनाथ धाम भी शामिल है. केदारनाथ को भगवान शिव का 11वां ज्योतिर्लिंग माना जाता है. यहां दर्शन करने से भक्तों की मन की सभी इच्छाएं पूरी हो जाती है. ऐसी मान्यता है कि केदारनाथ धाम के कण-कण में शिव की मौजूदगी की अनुभूति होती है. यहां महादेव शिवलिंग रूप में विराजमान हैं. केदारनाथ धाम में भगवान और भक्तों का मिलन होता है. हर साल बड़ी संख्या में भक्त जोखिम उठाकर भोलेनाथ के दर्शन के लिए केदारनाथ पहुंचते हैं.
देश के 5 पीठों में शिव का केदारनाथ धाम सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. जो भी भक्त अपनी मनोकामना लेकर केदारनाथ धाम के दर्शन के जाता है. बाबा उसे जरूर पूरी करते हैं. खासकर बाबा केदारनाथ यहां दर्शन के लिए पहुंचने वाले भक्तों को सभी पापों से मुक्ति देते हैं. भगवान शिव ने पांडवों को भी वंश और गुरु हत्या के पाप से मुक्त किया था. मान्यता है कि जो भी भक्त बाबा के दर्शन के लिए केदारनाथ धाम पहुंचते हैं बाबा उनको सभी पापों से मुक्त कर देते हैं.
शिवपुराण के मुताबिक, केदारनाथ धाम के दर्शन मात्र से ही लोगों को मोक्ष मिल जाता है. सांसारिक सुखों को भोगने के बाद वह सीधा स्वर्ग की प्राप्ति करता है. वहीं लिंग पुराण के मुताबिक जो भी मनुष्य सन्यास के बाद केदारकुंड में रहता है वह भी शिव के समान ही हो जाता है.
क्यों अधूरे हैं केदारनाथ के दर्शन
उत्तराखंड के केदारनाथ का नेपाल के पशुपतिनाथ से खास कनेक्शन माना जाता है. पशुपतिनाथ के बिना केदारनाथ के दर्शन को अधूरा माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि केदारनाथ में भगवान शिव की देह और पशुपतिनाथ में शिव का मुंह मौजूद है. मान्यता ये भी है कि पशुपतिनाथ मंदिर के दर्शन केदारनाथ के दर्शन के बिना अधूरे माने जाते हैं. पशुपतिनाथ के दर्शन का पुण्यफल पाने के लिए बाबा केदारनाथ के दर्शन करना जरूरी माना गया है. केदारनाथ में भैंसे की पूंछ और पशुपतिनाथ में भैंसे के मुंख के रूप में भगवान शिव को पूजा की जाती है.
केदारनाथ और पशुपतिनाथ का कनेक्शन
पौराणिक कथा के मुताबिक, महाभारत के युद्ध में अपनों का खून बहाते देख भगवान शिव पांडवों से बहुत ही क्रोधित हो गए थे. जिसके बाद माफी मांगने के लिए पांडव शिव से मिलने काशी पहुंच गए. लेकिन शिव वहां से विलुप्त होकर केदारनाथ धाम चले गए थे. जब पांडव शिव का पीछा करते हुए केदारनाथ धाम पहुंचे तो भगवान के भैंसे का रूप धारण कर लिया.
जब पांडवों ने शिव को पहचान लिया तो वह धरती में समाने लगे, इसी बीच गदाधारी भीम ने भैंसे रूपी शिव को पकड़ लिया इस दौरान उनका मुंह दूसरी जगह पहुंच चुका था और केदारनाथ में सिर्फ उनकी देह रह गई थी. तभी से केदारनाथ में शिव के देह वाले हिस्से की पूजा होने लगी और जिस जगह भैंसे रूपी शिव का मुंह पहुंचा वह जगह पशुपतिनाथ के नाम से प्रसिद्ध हो गई. जोकि नेपाल में है.
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