लोकसभा चुनाव 2024 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश में लगा है. इसी उत्तर प्रदेश में बीजेपी 10 साल पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड 71 सीटें और 2017 के विधानसभा चुनाव में 312 सीटें जीतने में सफल रही थी, लेकिन 2024 में वह महज 33 सीटों पर सिमट गई. इसके चलते ही बीजेपी केंद्र में अकेले अपने दम पर बहुमत से दूर रह गई. बीजेपी नरेंद्र मोदी के नाम पर 2014 में यूपी से सियासी वनवास खत्म करने में कामयाब रही थी. इसके बाद से बीजेपी का सियासी ग्राफ लगातार घट रहा है और यही पैटर्न जारी रहा तो बीजेपी के लिए 2027 का विधानसभा चुनाव टेंशन बढ़ा सकता है.
उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव नतीजों ने पीएम मोदी को ही बहुमत से दूर ही नहीं किया बल्कि बीजेपी की नींद भी उड़ा दी है. इसीलिए बीजेपी ने हार के कारणों को तलाशने के लिए समीक्षा भी शुरू कर दी है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और प्रदेश संगठन मंत्री धर्मपाल सिंह सैनी ने प्रदेश के 60 नेताओं को बुलाया है, जिन्हें यूपी के लोकसभा क्षेत्रों में भेजकर हार की वजह पता करेगी.
BJP से आगे निकल गई SP
इस बार बीजेपी को उत्तर प्रदेश की 80 में से 33 सीटों पर जीत मिली और उसकी सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) ने दो और अपना दल (एस) ने एक सीट जीती है. वहीं, इंडिया गठबंधन उत्तर प्रदेश में 43 सीटें जीतने में कामयाब रहा, जिसमें 37 सीटें समाजवादी पार्टी और छह सीटें कांग्रेस ने जीती है. इसके अलावा एक सीट बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चंद्रशेखर आजाद ने जीती है.
साल 2024 में आए यूपी के नतीजों को अगर विधानसभा के स्तर से देखते हैं तो बीजेपी का दबदबा काफी घटता दिख रहा है. 2017 के चुनाव में 312 विधानसभा सीटें जीतने वाली बीजेपी ने 15 साल के बाद सूबे की सत्ता में वापसी की थी और प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब रही. साल 1984 के बाद इतनी सीटें यूपी में किसी भी दल को नहीं मिली थी, लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में मिली 33 सीटों को विधानसभा सीट के लिहाज से देखें तो उसे 162 सीट पर ही बढ़त मिल सकी है. इसी परिणाम ने बीजेपी के लिए नई टेंशन खड़ी कर दी है.
दूसरी ओर, सपा और कांग्रेस को आपस में हाथ मिलाकर चुनाव लड़ने का सियासी फायदा उत्तर प्रदेश में मिला है. इंडिया गठबंधन यूपी से 43 लोकसभा सीटें जीतने में सफल रहा है, जिसमें 37 सीट सपा और 6 सीट कांग्रेस के खाते में गई है. इंडिया गठबंधन को मिली लोकसभा सीट के लिहाज से देखें तो सपा को 183 सीटों पर बढ़त मिली जबकि कांग्रेस 40 विधानसभा सीटों पर आगे रही थी. इस तरह इंडिया गठबंधन ने यूपी की 403 विधानसभा सीटों में से 223 सीटों पर बढ़त बनाने में सफल रही.
BJP का लगातार सिकुड़ रहा दायरा
बीजेपी साल 2014 के लोकसभा चुनाव में 80 में से 71 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, जो अपने आपमें एक रिकॉर्ड है. पांच साल के बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें 71 से घटकर 62 पर आ गई थीं. इस तरह बीजेपी को 9 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था. इसके बाद अब 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 62 से घटकर 33 सीटों पर पहुंच गई. बीजेपी को इस बार 29 सीटों का घाटा हुआ है. इसी तरह 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी सूबे की कुल 403 विधानसभा सीटों में से 312 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, लेकिन पांच साल के बाद 2022 के चुनाव में घटकर वह 255 पर आ गई. तब बीजेपी को 57 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था.
2022 के विधानसभा चुनाव नतीजों ने बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है, क्योंकि सपा गठबंधन को मिली 123 सीटों का लोकसभा सीट के लिहाज से देखने पर उसे 26 लोकसभा सीट पर बीजेपी से ज्यादा वोट मिले थे. एक तरह से बीजेपी ये 26 लोकसभा सीटें हारती दिख रही थी, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक विधानसभा और लोकसभा की अलग-अलग वोटिंग पैटर्न बताकर बीजेपी का हौंसला बनाए रखा था. लेकिन, 2024 के चुनाव ने बीजेपी को तगड़ा झटका दे दिया. बीजेपी ने अपनी 29 सीटें गंवा दी.
कांग्रेस-SP का गठबंधन नई चुनौती
दो साल पहले 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी राज्य में फिर सरकार बनाने में तो कामयाब रही, लेकिन उसकी सीटों और घट गई. बीजेपी इस चुनाव में सिर्फ 255 सीटें ही हासिल कर सकी. सपा 47 सीटों से बढ़कर 110 पर पहुंच गई. सपा को यहीं से बीजेपी को हराने का मूल मंत्र मिल गया. सपा प्रमुख अखिलेश यादव का बीजेपी के सियासी आधार वाली जातियों पर लोकसभा चुनाव में दांव खेलना कामयाब रहा. बीजेपी सपा पर यादव परस्ती होने का आरोप लगाकर गैर-यादव ओबीसी बिरादरी को जोड़ने में कामयाब रही थी, लेकिन इस बार अखिलेश यादव गैर-यादव ओबीसी की कुर्मी, मौर्य और मल्लाह समुदाय पर दांव खेलकर बीजेपी को मात दे देने में सफल रहे.
सपा-कांग्रेस ने अब पीडीए फॉर्मूले पर ही आगे बढ़ने का फैसला किया है. माना जा रहा है कि इसी पीडीए फॉर्मूले पर दोनों 2027 में विधानसभा चुनाव भी लड़ सकते हैं. कांग्रेस और सपा का साथ आना बीजेपी के लिए किसी तरह के बड़े सियासी खतरे के संकेत नहीं माना जा रहा था, लेकिन अब लोकसभा चुनाव के नतीजों और गठबंधन के पीडीए फॉर्मूले के साथ उतरने का फैसला 2027 में बीजेपी के लिए नई चुनौती खड़ी कर सकता है.
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.