नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार केंद्र में एनडीए सरकार बन गई है और दस साल बाद केंद्र में बिहार की सियासी धमक बढ़ गई है. मोदी मंत्रिमंडल में बिहार के मंत्रियों की संख्या छह से बढ़कर आठ हो गई है. मोदी सरकार 3.O में बिहार से आठ मंत्री बनाए गए हैं, जिसमें 4 कैबिनेट और चार केंद्रीय राज्यमंत्री पद की शपथ ली है. बीजेपी कोटे से 4 मंत्री बने हैं, तो 4 मंत्री पद सहयोगी दलों के हिस्से में गए हैं. जेडीयू से दो, एलजेपी (आर) से एक और हम पार्टी के इकलौते सांसद जीतनराम मांझी को मंत्री बनाया गया है. पीएम मोदी ने बिहार के जातीय समीकरण के साथ क्षेत्रीय बैलेंस बनाने की कवायद की है, लेकिन दक्षिण बिहार क्षेत्र में राजपूतों की एनडीए से बगावत महंगी पड़ी. मोदी सरकार 3.O में बिहार के राजपूतों को प्रतिनिधित्व नहीं मिला.
बिहार से केंद्र में आठ मंत्री बनाए गए हैं, जिसमें बीजेपी कोटे से चार मंत्री बने हैं. बीजेपी के दिग्गज नेता गिरिराज सिंह को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है, तो नित्यानंद राय दूसरी बार राज्य मंत्री बने हैं. मोदी सरकार 3.O में नए चेहरे के तौर पर राज भूषण चौधरी और सतीश चंद्र दुबे को शामिल किया गया है और दोनों ही बीजेपी नेता राज्यमंत्री पद की शपथ ली है. जेडीयू कोटे से राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह कैबिनेट मंत्री बने और रामनाथ ठाकुर ने राज्यमंत्री पद की शपथ ली है. एलजेपी के अध्यक्ष चिराग पासवान और हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के प्रमुख जीतनराम मांझी मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने हैं.
बिहार में साधा जातीय समीकरण
मोदी कैबिनेट में बिहार से जिन आठ नेताओं को मंत्री बनाया गया है, उसमें सवर्ण, दलित और अति पिछड़ा वर्ग को बराबर हिस्सेदारी दी जा रही है. अन्य पिछड़ा वर्ग से तीन मंत्री बनाए गए हैं, जिसमें एक ओबीसी और दो अति पिछड़ा वर्ग से हैं. दलित समाज से दो मंत्री बनाए गए हैं, जिसमें सूबे की दलित और महादलित दोनों को शामिल किया गया है. बिहार में सवर्ण वोटर बीजेपी का कोर वोट बैंक माना जाता है, जिसके लिहाज से मोदी सरकार में भूमिहार समुदाय से दो और ब्राह्मण समाज से एक मंत्री बनाया गया है.
बिहार से किसी राजपूत और किसी कुर्मी समुदाय को मोदी कैबिनेट में जगह नहीं मिली है. मोदी सरकार के पिछले दो कार्यकाल में आरके सिंह केंद्र में मंत्री रहे हैं, लेकिन इस बार आरा सीट से चुनाव हार गए. बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी किसी भी पार्टी के कोटे से एक भी राजपूत सांसद को मंत्रिमंडल में सम्मिलित नहीं किया गया. इतना ही नहीं बिहार की सियासत में अहमियत रखने वाली कुशवाहा और कुर्मी समाज को भी जगह नहीं मिल सकी.
यादव और अति पिछड़ा वर्ग पर जोर
राज्य में आरजेडी के कोर वोटबैंक यादव समुदाय में सेंधमारी के लिए बीजेपी ने यादव समाज से आने वाले नित्यानंद राय को एक बार फिर से मोदी कैबिनेट में जगह दी है. बिहार की उजियारपुर सीट से जीतने वाले नित्यानंद राय केंद्र में राज्य मंत्री बनाए गए. नित्यानंद राय मोदी सरकार के कार्यकाल में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री रह चुके हैं. बिहार में 16 फीसदी के करीब यादव समुदाय की आबादी है, जिसके चलते बीजेपी ने नित्यानंद राय को मौका देकर सियासी समीकरण साधने का दांव चला है.
बिहार में अति पिछड़ा वर्ग निर्णायक भूमिका में है, जिसकी आबादी करीब 36 फीसदी के करीब है. जेडीयू कोटे से राज्यसभा सांसद रामनाथ ठाकुर को मंत्री बनाया जा रहा है, जो पूर्व सीएम और भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर के बेटे हैं. रामनाथ ठाकुर नाई जाति से आते हैं, जो अति पिछड़ा वर्ग में है. रामनाथ समस्तीपुर के रहने वाले हैं. इसके अलावा बीजेपी कोटे से राज भूषण चौधरी को मंत्री बनाया जा रहा है, जो मल्लाह समाज से आते हैं. मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट से बीजेपी की टिकट पर पहली बार सांसद राज भूषण चौधरी को केंद्र में मंत्री बनाया जा रहा है.
राजभूषण चौधरी ने वीआईपी का दामन छोड़कर बीजेपी की दामन थामा है. राजभूषण को केंद्र में मंत्री बनाकर बीजेपी ने मल्लाह जाति को भागीदारी देकर उन्हें साधे रखने की कवायद की है. राजभूषण चौधरी को बीजेपी ने राज्य मंत्री बनाकर 26 वर्षों बाद एक बार फिर मल्लाहों का महत्व बढ़ा दिया है. बिहार में अति पिछड़ा वर्ग एनडीए का मजबूत वोट बैंक है. नीतीश कुमार का कोर वोट बैंक अति पिछड़ा वर्ग है. 2025 में बिहार विधानसभा विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में बीजेपी और जेडीयू अति पिछड़े वर्ग को साधे रखने की स्ट्रैटेजी है.
सवर्णों को साधने रखने का प्लान
बिहार में सवर्ण बीजेपी का कोर वोटबैंक माना जाता है. इसलिए बिहार में सवर्ण समुदाय से तीन मंत्री इस बार मोदी सरकार में बनाए गए हैं. भूमिहार बिहार में बड़ी अहम भूमिका रखते हैं, जिसके चलते जेडीयू कोटे से राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को मोदी कैबिनेट में मंत्री बनाया गया है, तो बीजेपी नेता गिरिराज सिंह तीसरी बार मोदी सरकार का हिस्सा बनने जा रहे हैं. दोनों ही नेता भूमिहार समुदाय से आते हैं और दोनों को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है.
मोदी कैबिनेट में बिहार से नए चेहरे के तौर पर सतीश चंद्र दुबे को शामिल किया जा रहा है. बीजेपी नेता और राज्यसभा सांसद सतीश चंद्र दुबे को भी इस बार मोदी कैबिनेट में राज्य मंत्री का पद मिला है. दरभंगा लोकसभा सीट से जीतकर आने वाले गोपाल जी ठाकुर पर सतीश दुबे को सियासी महत्व दिया गया है. ब्राह्मण चेहरा के तौर पर दुबे बिहार में बीजेपी का प्रतिनिधित्व करेंगे. बिहार में ब्राह्मण और भूमिहार समुदाय को कैबिनेट में भागीदारी मिल रही है, लेकिन ठाकुर और कायस्थ समाज को जगह नहीं मिल सकी.
दलितों को साधने की स्ट्रैटेजी
बिहार की दलित पॉलिटिक्स को देखते हुए मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में राज्य से दो दलित मंत्री बनाए गए हैं. एलजेपी (आर) के चिराग पासवान और HAM जीतनराम मांझी कैबिनेट मंत्री बने हैं. एलजेपी (आर) के अध्यक्ष और हाजीपुर से जीतकर आने वाले चिराग पासवान को पहली बार मोदी कैबिनेट में जगह मिली है और हम पार्टी के सर्वेसर्वा और गया सुरक्षित सीट से जीतकर आने वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी मोदी कैबिनेट का हिस्सा बने हैं. पासवान जाति से चिराग पासवान आते हैं, जबकि जीतनराम मांझी मुसहर समुदाय से हैं. बिहार में दलितों की दोनों बड़ी जातियों को मोदी कैबिनेट में जगह देकर एनडीए ने सियासी बैलेंस बनाने की स्ट्रैटेजी अपनाई है.
विधानसभा के साधे समीकरण
बिहार में इस बार के लोकसभा चुनाव में चुनाव जीतने वाले सांसदों में सवर्ण समुदाय से 12 सांसद हैं, जबकि दलित समाज से छह सांसद बने हैं. ये सभी सुरक्षित सीट से चुने गए हैं. दो अल्पसंख्यक समुदाय और बाकी 20 सांसद पिछड़ा और अति पिछड़ा समुदाय से चुने गए हैं. ऐसे में सबसे अधिक सात यादव जाति से सांसद बने हैं और छह सांसद राजपूत जाति से हैं. बिहार के सियासी समीकरण और अगले वर्ष राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार में बिहार को सियासी अहमियत दी गई है. बीजेपी ने अपने कोटे से मंत्रियों की संख्या चार की चार रखी है, लेकिन राजपूतों का पत्ता साफ हो गया. पिछली सरकार में पूर्व नौकरशाह व आरा से सांसद रहे आरके सिंह राजपूत कोटे से ऊर्जा मंत्री थे. हालांकि, मोदी सरकार ने भूमिहार, ब्राह्मण, ओबीसी और दलित के बहाने एक मजबूत सोशल इंजीनियरिंग बनाने की कवायद की है.
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