सुप्रीम कोर्ट ने साल 2010 के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि हम शर्मिंदा हैं कि अपील अभी भी अदालत के समक्ष लंबित है. ये मामला अर्बन इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट बनाम विद्या देवी और अन्य के बीच का है. राजस्थान राज्य की ओर से पेश वकील ने 14 साल से लंबित मामले में स्थगन की मांग की. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की.
राज्य द्वारा मांगे गए किसी भी स्थगन को देने से इनकार करते हुए न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि यह शर्म की बात है कि अपील अभी भी अदालत के समक्ष लंबित है. न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, हम 2010 के इस मामले में स्थगन नहीं दे सकते. हमें बेहद शर्मिंदगी महसूस हो रही है कि 2010 की अपील लंबित है और हमसे स्थगन देने के लिए कहा जा रहा है. इसके बाद पीठ ने अपील पर सुनवाई शुरू की. अपील साल 1976 से भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही से संबंधित थी.
क्या है पूरा मामला
1981 में प्रतिवादियों को उनकी भूमि अधिग्रहण के लिए राज्य द्वारा मुआवजे के रूप में 90 हजार रुपये की एक विशिष्ट राशि का भुगतान करने का निर्णय लिया गया था. 1997 में राज्य ने ब्याज के अतिरिक्त उक्त राशि का भुगतान करने का दावा किया. विवाद इसी पहलू के इर्द-गिर्द घूमता रहा.
राजस्थान उच्च न्यायालय की एकल-न्यायाधीश ने भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही को बरकरार रखते हुए राज्य के पक्ष में फैसला सुनाया, जबकि डिवीजन बेंच ने वर्तमान उत्तरदाताओं के पक्ष में फैसला सुनाया. राजस्थान राज्य ने वर्तमान अपील के साथ 2010 में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया.
सुनवाई के दौरान जब सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अर्चना पाठक दवे से जमीन की वर्तमान स्थिति के बारे में पूछा, तो उन्होंने एक बार फिर इस बारे में निर्देश लेने के लिए समय मांगा. जवाब में न्यायमूर्ति पारदीवाला ने मामले में देरी पर प्रकाश डाला और यह भी बताया कि रिकॉर्ड के अनुसार भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा इस मामले में उच्च न्यायालय के समक्ष वकील के रूप में पेश हुए थे.
वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने तब बताया कि राज्य द्वारा जिन मामलों पर भरोसा किया जा रहा है उनमें से एक मामला न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा के पिता न्यायमूर्ति एसके लोढ़ा द्वारा प्रस्तुत किया गया था, जब वह राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे. इसके बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखने से पहले करीब 40 मिनट तक मामले की सुनवाई की. अदालत ने पक्षों से 10 दिनों के भीतर मामले के संबंध में कोई अन्य विवरण या दस्तावेज दाखिल करने को भी कहा.
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