मतदाता चाहते हैं महाकाल के सुलभ दर्शन, पर्यावरण सुधार, जाम मुक्त सड़कें

उज्जैन। 11 अक्टूबर-2022 का दिन उज्जैन के इतिहास का स्वर्णिम दिन था। इसी दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर के विस्तारित क्षेत्र श्री महाकाल महालोक का लोकार्पण किया। इसी के साथ मप्र की धर्मधानी का वैभव देश-विदेश में और बढ़ गया। गत वर्ष विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इसे अपनी बड़ी उपलब्धि बताते हुए मतदाताओं से वोट मांगे थे। मतदाताओं ने भी भाजपा को प्रचंड जीत दिलवाई।

लोकसभा चुनाव में भाजपा इस उपलब्धि को लेकर जनता के बीच है। जाहिर है इसका राजनीतिक लाभ भाजपा को मिलेगा, मगर बात अब इससे कुछ आगे निकली है। पर्यटकों की लगातार बढ़ती संख्या के बीच मौजूदा व्यवस्थाएं मतदाताओं को अब बौनी दिखाई पड़ रही है।

वे अधोसंरचना के कार्यों में बढ़ोतरी और यातायात का सुव्यवस्थित संचालन चाहते हैं। उनका मत है कि महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन व्यवस्था सुलभ और पूरी तरह निश्शुल्क होनी चाहिए। शीघ्र दर्शन के नाम पर श्रद्धालु से पैसा लेना ठीक नहीं।

कुछ मतदाताओं ने महाकाल क्षेत्र की वायु गुणवत्ता सुधारने को वृहद स्तर पर आक्सीजन उत्सर्जित करने वाले छायादार पेड़-पौधे रोपने, मंदिर पहुंच मार्ग की मुख्य सड़कों को ट्रैफिक जाम से मुक्त रखने के लिए सिटी बसें संचालित करने, ई-रिक्शा के लिए पृथक रूट और संख्या निर्धारित करने एवं सुविधाघरों की संख्या बढ़ाने की बात लोकसभा प्रत्याशियों से की है।\

प्रसादम्, त्रिवेणी मंडपम और मध्यांचल भवन की दुकानें खुले

 

मतदाता चाहते हैं कि जल्द से जल्द महाकाल महालोक में बने प्रसादम्, त्रिवेणी मंडपम और मध्यांचल भवन की 106 दुकानें खुले। याद रहे कि महाकाल महालोक परिसर में लोगों को स्वस्थ एवं स्वच्छ खान-पान की सुविधा उपलब्ध कराने को उज्जैन स्मार्ट सिटी कंपनी ने पौने दो करोड़ रुपये खर्च कर प्रसादम् के रूप में 17 दुकानों का काम्प्लेक्स बनाकर 7 जनवरी 2024 को मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव के द्वारा लोकार्पित कराया था।

चार महीने गुजर गए हैं और अब तक एक भी दुकान नहीं खुली है। इससे भी गंभीर बात ये है कि ढाई साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा महाकाल महालोक परिसर में लोकार्पित त्रिवेणी मंडपम और मध्यांचल भवन की 89 दुकानों में से भी एक दुकान अब तक न खुल पाई है। विविध कारणों में एक कारण न्यायालय में प्रकरण विचाराधीन होना है। यहां प्रश्न ये है कि अफसरों ने निर्माण से पहले न्यायालयीन विवाद क्यों नहीं निपटाए। ये जिम्मेदारी किसकी थी।

 

मंदिर पहुंच मार्ग पर सिर्फ सिटी बसें चलें, पर्यटकों को शहर घूमने को मिले ई-बाइक

 

मतदाता चाहते हैं कि महाकाल मंदिर पहुंच मार्ग पर सिर्फ सिटी बसें ही संचालित हों। ई-रिक्शा, आटो रिक्शा के लिए एक अलग मार्ग हो। पर्यटकों को शहर घूमने को मिले ई-बाइक मिले।

मालूम हो कि कई वर्षों से उज्जैन सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेस लिमिटेड (यूसीटीएसएल) के अफसर-जनप्रतिनिधियों द्वारा बताया जा रहा कि उज्जैन में पर्यावरण एवं ट्रैफिक सुधार के लिए महाकाल मंदिर सहित सभी धार्मिक पर्यटन स्थलों तक इलेक्ट्रिक सिटी बसें चलाई जाएंगीं।

निर्धारित मार्गों पर एजेंसी के माध्यम से सीमित संख्या में ई-रिक्शा चलवाए जाएंगे। शहर घूमन के लिए पर्यटकों को किराये पर ई-बाइक उपलब्ध कराई जाएंगी।

कार्रवाई स्वरूप प्रस्ताव पास हुए मगर योजना और की गई घोषणाएं महीनों बाद भी धरातल पर न उतर पाई। परिणाम स्वरुप सड़कों पर आवश्यकता से अधिक निजी वाहन और ई-रिक्शों का दबाव है। इससे सड़क पर बार-बार ट्रैफिक जाम की स्थिति निर्मित होती है। इससे लोगाें का समय और ईंधन, दोनों बर्बाद होता और पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता।

 

पार्किंग स्थल और जनसुविधाघरों की संख्या बढ़े

 

मतदाता चाहते हैं कि शहर में अब पार्किंग स्थल और जन सुविधाघरों की संख्या बढ़ाई जाना चाहिए। उज्जैन में सबसे बड़ी जरूरत सुव्यवस्थित यातायात संचालन, वाहन पार्किंग स्थल और सुविधाघरों की है। लगातार बढ़ती पर्यटकों की संख्या के मद्देनजर महाकाल महालोक, गोपाल मंदिर क्षेत्र में वाहन पार्किंग स्थल की क्षमता कम पड़ रही है। शहर के ह्दय स्थल, फ्रीगंज क्षेत्र में तो एक भी वाहन पार्किंग स्थल नहीं है, जिसके कारण बीच सड़क ही लोग वाहन पार्क करने को मजबूर है। ये सरकारी व्यवस्था पर बड़ा प्रश्न है। मतदाताओं का कहना है कि महाकाल महालोक, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, फ्रीगंज स्थित घंटाघर क्षेत्र, छत्री चौक, गोपाल मंदिर क्षेत्र में वाहन पार्किंग और जनसुविधा केंद्रों की सुविधा बढ़ाई जाना चाहिए।

 

भस्मारती दर्शन व्यवस्था में पारदर्शिता लाई जाए

 

भगवान महाकाल में आस्था रखने वाला हर श्रद्धालु अपने जीवन में एक दिन महाकाल की भस्मारती के दर्शन करने की इच्छा अवश्य रखता है। इसके लिए वह हर संभव जतन भी करता है। मंदिर प्रबंध समिति ने दर्शन के लिए पास जारी करने को एक व्यवस्था बना रखी है, जिसमें पारदर्शिता की कमी श्रद्धालुओं को खलती है।

उनका मत है कि भस्मारती प्रवेश के लिए स्वीकृत सीटों की संख्या और प्रवेश के लिए स्वीकृति पत्र पाए व्यक्तियों के नाम, पते की सूची सार्वजनिक होना चाहिए। ये व्यवस्था ठीक वैसी होना चाहिए जैसी रेलवे अपने यात्रियों को ट्रैन में सीट बुक करने के लिए देता है।

अनुमति पत्र प्राप्त करने के बाद मंदिर में प्रवेश के दरमियान पक्षपात न हो, इसके लिए सभी श्रद्धालुओं को एक ही द्वार से प्रवेश देने की व्यवस्था लागू करना चाहिए। क्योंकि देखने में आया है कि कथित कर्मचारी विशेष लोगों को नंदी हाल और गणेश मंडपम में प्रवेश कराते हैं और शेष को कार्तिकेय मंडपम से।

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.