तवायफों की दुनिया में आपका स्वागत है, लेकिन जरा संभलकर, कैसी है संजय लीला भंसाली की हीरामंडी?

एक समय था जब देश में तवायफों का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता था. बड़े-बड़े रसूकदार लोग, अधिकारी लोग तवायफों की महफिल में जाते थे. तवायफें अदब से पेश आती थीं. उनके अंदर फन था. फन की कद्र थी. और साथ में मोहकता थी. और उस मोहकता के जाल में न जाने कितने फंसे. कितने दिल टूटे, कितने बर्बाद हुए. इसका कोई हिसाब नहीं. लेकिन एक समय तवायफों का वर्चस्व रहा. उनका बल इतना था कि उनके इशारों पर फिरंगी तक नाचते थे. रुतबा ऐसा कि बड़ी-बड़ी महारानियों का अंदाज फीका पड़ जाए. दौलत इतनी कि रखने के लिए तिजोरियां कम पड़ जाएं. और जेवर-जायजाद, उनका क्या कहना. सारी हवेली आभूषणों से सजी रहती थी. एक विरासत थी पूरी. सामराज्य था. ऐसा ही एक सामराज्य था हीरामंडी.

ब्रिटिश राज में लाहौर में रहने वाली तवायफों का सामराज्य. लेकिन जब सह हद से ज्यादा मिल जाए तो बात बिगड़ने लग जाती है. इज्जत, शोहरत, दौलत और जायदाद ने इन तवायफों को सहका दिया. दौलत की आड़ में रिश्ते शर्मिंदा हुए. कुछ तो रौंद दिए गए. अरमान दबा दिए गए. निचोड़ दिए गए. ऐश-ओ-आराम का अंजाम बुरा होता है. लेकिन तवायफ भी तो इंसान है. उनकी भी इंसानियत जागी. हीरे-जवाहरात की चकाचौंध से जब नजर हटी तो सामने कुछ जिम्मेदारियां नजर आईं. और इस फन में भी तवायफें खरी साबित हुईं. इन्हीं तवायफों की कहानी पर संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज आई है. हम लेकर आए हैं इस वेब सीरीज का रिव्यू.

क्या है कहानी?

हीरामंडी की कहानी इस इलाके की दो बड़ी तवायफ मल्लिका जान और फरादीन की दुश्मनी के इर्द-गिर्द घूमती है. दोनों की दुश्मनी हवेली को लेकर है. दुश्मनी होती ही इन सब चीजों के लिए है. जबकी दोनों के बीच पारिवारिक रिश्ता है. दोनों की इस जंग में खूब हलचल मचती है. आपस में तवायफें टकराती हैं. नवाबों के लिए लड़ती हैं. जिसे नवाब मिला उसे कोठियां. और जिसके पास कोठियां उसकी ज्यादा इज्जत. यहां हीरामंडी में लड़ाई चल रही थी इस बात की कि कौन तवायफ सबसे आगे है. और उधर हीरामंडी के बाहर सिरफिरे क्रांतिकारी देश को आजादी दिलाने के लिए लड़ रहे थे. एक लड़ाई थी सत्ता की तो एक थी गुलामी से छुटकारा पाने की. लेकिन एक वक्त ऐसा आया कि सत्ता का ज्यादा महत्व न रह गया. वो दो कौड़ी की रह गई. बस हर नागरिक की आंखों में कोई ख्वाब पलता था तो वो था देश की आजादी का. यही ख्वाब जब हीरामंडी की तवायफों की आंखों में पला तो वे भी क्रांतिकारी बन गईं. उनका हुस्न उनका तेवर बन गया. उनका फन उनका हथियार. जिन अंग्रेजों के साथ वे हमबिस्तर होती थीं उन्हीं के खिलाफ तवायफों ने बगावत छेड़ दी. हीरामंडी की कहानी सिर्फ फन की नुमाइश और जिस्म की बोली लगाने तक सीमित नहीं थी. ये कहानी थी हीरामंडी में पल रही तवायफों की क्रांति की कहानी. कोई उस चार दीवारी से आजाद होकर अपने सपनों की उड़ान भरना चाहता था तो किसी का सपना ही था आजाद होना. इसी पर है संजय लीला भंसाली की 8 एपिसोड की वेब सीरीज.

कैसा है डायरेक्शन ?

इसमें कोई दोराय नहीं है कि संजय लीला भंसाली को सिनेमा से प्यार है. इसलिए वे एक जुनून के साथ फिल्में बनाते हैं. वेब सीरीज भी उन्होंने इसी जुनून के साथ बनाई. सेट की भव्यता कमाल की दिखी. असल में तो यही इस वेब सीरीज का आकर्षण है. इसके अलावा सीरीज की स्क्रिप्टिंग पर भी और काम किया जाना था कई सारे सीन्स तो ऐसे जरूरी थे उसे झट से खत्म कर दिया. सीरीज कहीं-कहीं अपने ट्रैक से भटकती हुई भी नजर आई. लेकिन जब ज्यादा बड़ी सीरीज हो तो ऐसा हो जाता है. मगर सीरीज स्लो है बहुत. इतनी स्लो सीरीज में आपको कुछ दमदार डायलॉग्स और कुछ रोचक किरदार गढ़ने पड़ते हैं. वरना मामला फीका लगने लगता है. अगर आपन अ स्यूटेबल बॉय सीरीज देखी हो तब आप ये तो जानते होंगे कि सीरीज में तवायफों के किरदार थे. उनके लिए कितने अच्छे गानों का चयन किया गया. महफिल बर्खास्त हुई, लुत्फ वो इश्क में पाए हैं जैसे गाने कभी भी सुनो क्या सुकून मिलता है. लेकिन इस सीरीज में जो गाने चुने गए और जैसे बनाए गए उसने इस सीरीज का मजा फीका कर दिया और इस भारी-भरकम सीरीज का वजन भी जरा हल्का कर दिया. सबसे बड़ी मायूसी इस सीरीज की यही है कि इसमें अच्छे गानों का आभाव है. और उसके पिच्चराइजेशन का भी.

कैसी है कास्टिंग ?

सीरीज की कहानी और कहानी के किरदार के हिसाब से इस सीरीज की कास्टिंग फीकी नजर आई. सिर्फ बड़े सेट से कोई प्रोजेक्ट मुकम्मल नहीं होता. हमेशा से भंसाली के गानों की गुणवत्ता प्रशंसनीय रही है. लेकिन इस सीरीज की आभा को देखते हुए इसकी कास्टिंग पर और भी काम किया जा सकता था. साथ ही इस सीरीज में जो गाने सेलेक्ट किए गए वे कमतर मालूम होते हैं. इस बात की कमी आपको पूरी सीरीज भर खल सकती है. 1-2 गाने ठीक हैं क्योंकि वे सही सिचुएशन पर सही बैठ रहे हैं.

कैसी है एक्टिंग ?

एक्टिंग की अगर बात करें तो इस सीरीज में मल्लिका जान के रोल में मनीषा कोइराला ने अपने करियर का सबसे बढ़िया काम कर के दिखा दिया है. सीरीज में उनके रोल के हिसाब से उन्होंने अपनी एक्टिंग में जो तेवर डाला है उसका फ्लेवर आपको जरूर रास आएगा. वहीं डबल रोल में सोनाक्षी का काम भी किसी से कम नहीं है. सोनाक्षी ने अपने करियर का अब तक का सबसे शानदार अभिनय इस सीरीज में किया है. तेवर तो उनके किरदार का भी हाईफाई है. इसके अलावा अदिति राव हैदरी तो ऐसे रोल्स में कहर बरपाती हैं. वहीं आलमजेब के रोल में शर्मिन सेगल मेहता का अभिनय भी देखने लायक है. खासकर की ताजदार के रोल में ताहा साह बदूशा संग उनकी केमिस्ट्री देखना भी काफी सुखद है. कुल मिलाकर सीरीज में कुछ खामियां हैं जिसे संजीय लीला भंसाली का भव्य सेट कहीं-कहीं तो छिपा लेता है लेकिन कहीं-कहीं कमियां साफतौर पर जाहिर हो जाती हैं. इस सीरीज में कोई नरेशन नहीं है. अगर होता तो कॉम्प्लिकेटेड कहानी को समझने में दर्शकों को सहजता होती है और किरदारों को समझने में भी.

वेब सीरीज- हीरामंडी

डायरेक्टर- संजय लीला भंसाली

कास्ट- मनीषा कोइराला, सोनाक्षी सिन्हा, अदिति राव हैदरी, शेखर सुमन, फरदीन खान

रेटिंग्स- 3/5

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