लोकसभा चुनाव के दो चरण की वोटिंग हो चुकी है. अभी पांच चरण का मतदान बाकी है. गांव-गांव, गली-गली लोकतंत्र के महापर्व का उत्साह देखा जा सकता है. इस उत्साह के बीच चुनावी खर्च को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है. जो इस बात की दस्दीक कर रहा है कि लोकसभा चुनाव 2024 खर्च के मामले में पिछले रिकॉर्ड तोड़ने और दुनिया की सबसे खर्चीली चुनावी कवायद बनने जा रहा है.
चुनाव संबंधी खर्चों पर पिछले करीब 35 साल से नजर रख रहे गैर-लाभकारी संगठन सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) के अध्यक्ष एन भास्कर राव ने ये दावा किया है. उनका कहना है, इस लोकसभा चुनाव में अनुमानित खर्च के 1.35 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है. जो 2019 में खर्च किए गए 60,000 करोड़ रुपये से दोगुने से भी अधिक है.
पब्लिक मीटिंग पर ज्यादा खर्च
भास्कर राव का कहना है कि इस खर्च में राजनीतिक दलों और संगठनों, उम्मीदवारों, सरकार और निर्वाचन आयोग सहित चुनावों से संबंधित प्रत्यक्ष या परोक्ष सभी खर्च शामिल हैं. राव ने टीवी9 भारतवर्ष को बताया कि उन्होंने प्रारंभिक व्यय अनुमान को 1.2 लाख करोड़ रुपये से संशोधित कर 1.35 लाख करोड़ रुपये कर दिया. इसमें चुनावी बॉन्ड के खुलासे के बाद के आंकड़े और सभी चुनाव-संबंधित खर्चों का हिसाब शामिल है.
चुनाव की घोषणा से पहले ही शुरू हो जाते हैं खर्चे
भास्कर का कहना है, अब चुनावों में नेता डोर टू डोर प्रचार कम करते हैं. उसकी जगह अब पब्लिक मीटिंग पर ज्यादा खर्च करते हैं. उन्होंने बताया, 2014 से चुनावी खर्च बहुत तेजी से बढ़ा है. इसकी वजह है कॉरपोरेट. इसके अलावा अब वर्कर्स पर बहुत खर्च होता है. अब लोकल के नेता कम होते हैं, बाहर के नेताओं को ज्यादा टिकट मिलता है. इसलिए भी खर्च बढ़ जाता है.
प्रति मतदाता 1400 रुपये खर्च का अनुमान
सीएमएस अध्यक्ष के मुताबिक, चुनाव की घोषणा से पहले ही खर्चे होने शुरू हो जाते हैं. राजनीतिक रैलियां, परिवहन, कार्यकर्ताओं की नियुक्ति सब पर खर्च होता है. उन्होंने कहा कि चुनावों के प्रबंधन के लिए निर्वाचन आयोग का बजट कुल व्यय अनुमान का 10-15 प्रतिशत होने की उम्मीद है. भारत में 96.6 करोड़ मतदाताओं के साथ, प्रति मतदाता खर्च लगभग 1,400 रुपये होने का अनुमान है.
अमेरिकी चुनाव के खर्च से भी ज्यादा
यह खर्च 2020 के अमेरिकी चुनाव के खर्च से ज्यादा है, जो 14.4 अरब डॉलर या लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये था. इन सबमें सबसे खास बात ये है कि पार्टियां चुनाव आयोग को कम खर्च दिखाती हैं. जबकि खर्च काफी अधिक होता है.
आइए एक नजर डालते हैं 2004 से लेकर 2019 तक के लोकसभा चुनावों के खर्च पर…
चुनावी साल | खर्च (करोड़ में) |
2004 | 14000 |
2009 | 20,000 |
2014 | 30,000 |
2019 | 55,000+ |
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