उत्तर प्रदेश के अमेठी और रायबरेली को पहचान गांधी परिवार के चलते मिली. गांधी परिवार के सदस्यों ने दोनों सीटों का प्रतिनिधित्व करते हुए विकास परियोजनाएं देकर अपना गढ़ बनाने के साथ-साथ लोगों से एक गहरा रिश्ता कायम किया. 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी क्षेत्र के लोगों ने कांग्रेस से मुंह मोड़ा तो राहुल गांधी ने केरल को अपना सियासी ठिकाना बना लिया है. रायबरेली से लोकसभा सांसद रहीं सोनिया गांधी अब राज्यसभा सदस्य बन चुकी हैं. ऐसे में रायबरेली और अमेठी लोकसभा सीट को लेकर सस्पेंस बना हुआ है, जिस पर लोगों की नजरें टिकी हुई हैं.
रायबरेली और अमेठी लोकसभा सीट पर नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. मगर, कांग्रेस ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं. अमेठी सीट से बीजेपी और बसपा ने अपने-अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं. बीजेपी सांसद और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी तीसरी बार अमेठी से चुनावी मैदान में हैं. रायबरेली से बसपा ने जरूर अपना कैंडिडेट घोषित किया है, लेकिन बीजेपी अभी कांग्रेस उम्मीदवार के इंतजार में है. 2019 में कांग्रेस सिर्फ रायबरेली सीट जीत सकी थी.
प्रियंका गांधी के रायबरेली और अमेठी से राहुल गांधी के 2024 लोकसभा चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे थे, फिलहाल दोनों ही चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हैं. इस तरह आजादी के बाद 75 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा जब नेहरू-गांधी परिवार सक्रिय पॉलिटिक्स में रहते हुए भी उत्तर प्रदेश की किसी भी सीट से चुनाव नहीं लड़ेगा. ऐसे में सभी के मन में सवाल यही है कि आखिर क्या वजह है कि राहुल और प्रियंका दोनों ही अपने पारिवारिक गढ़ से चुनाव लड़ने से कदम पीछे खींच रहे हैं?
राहुल गांधी कश्मकश में फंसे
राहुल गांधी 2019 में अमेठी के साथ-साथ केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़े थे. अमेठी से हार गए थे और वायनाड से जीतने में कामयाब रहे. एक बार फिर राहुल गांधी ने वायनाड सीट से किस्मत आजमाई है. सियासी समीकरण के लिहाज से राहुल गांधी के लिए वायनाड सीट काफी सुरक्षित मानी जा रही है. मीडिया सर्व में भी वायनाड सीट पर राहुल गांधी की जीत का अनुमान बताया जा रहा है. राहुल वायनाड के साथ अमेठी से भी चुनाव लड़ते हैं और उन्हें दोनों सीटों पर जीत मिलती है तो उनके लिए किसी एक सीट को छोड़ना आसान नहीं होगा.
माना जा रहा राहुल गांधी अमेठी से चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं, क्योंकि इसके पीछे जीत मिलने पर किस सीट को छोड़ें और किस सीट को अपने पास रखें, इस कशमकश के चलते वो अमेठी से चुनाव लड़ने से कदम पीछे खींच रहे हैं. उधर, वायनाड के लोगों ने उस समय साथ दिया था जब अमेठी की जनता ने उनसे मूंह मोड़ लिया था. ऐसे में वायनाड लोकसभा सीट छोड़ना राहुल गांधी के लिए मुश्किल है और अमेठी गांधी परिवार परंपरागत सीट रही है. राहुल के चाचा संजय गांधी से लेकर पिता राजीव गांधी और मां सोनिया गांधी तक प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं.
अमेठी में हार से होगी किरकिरी
अमेठी लोकसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर स्मृति ईरानी एक बार फिर से चुनावी मैदान में हैं. पिछले चार महीने से डेरा जमा रखा है. स्मृति ईरानी के खिलाफ राहुल गांधी अमेठी से चुनाव मैदान में उतरते हैं और किसी कारण दोबारा चुनाव हार जाते हैं तो इसका संदेश राजनीतिक तौर पर बहुत गलत जाएगा. उत्तर भारत की राजनीति में राहुल के लिए सियासी राह काफी मुश्किल हो जाएगी. माना जा रहा है कि इसी किरकिर से बचने के लिए ही वो अमेठी से चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हैं.
वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी कहते हैं कि राहुल गांधी इस बार अमेठी से चुनाव लड़ते हैं तो जीत सकते हैं, लेकिन उनके न लड़ने के पीछे दूसरा बड़ा कारण यह है कि स्मृति ईरानी के खिलाफ चुनाव लड़कर बहुत ज्यादा सियासी अहमियत नहीं देना चाहते हैं. स्मृति ईरानी को राजनीतिक पहचान सिर्फ इसीलिए मिली है, क्योंकि अमेठी में राहुल गांधी को चुनाव हराया है. राहुल अगर अब दोबारा से चुनाव लड़ते हैं तो उससे स्मृति ईरानी को बहुत तवज्जो मिलेगी. अगर वो चुनाव जीतने में सफल रहती हैं तो उनका सियासी कद गांधी परिवार के सामांतर हो जाएगा. गांधी परिवार अब खुद लड़ने के बजाय अपने किसी नेता को उनके खिलाफ चुनावी मैदान में उतारेगा.
परिवारवाद से बचने का प्लान
वरिष्ठ पत्रकार फिरोज नकवी कहते हैं कि राहुल गांधी वायनाड से चुनाव लड़ रहे हैं. वहां से उनकी जीत लगभग तय मानी जा रही है. उधर, सोनिया गांधी राज्यसभा सदस्य हैं. ऐसे में अगर प्रियंका गांधी रायबरेली सीट से चुनावी मैदान में उतरती हैं तो बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को परिवारवाद का मुद्दा हाथ लग जाएगा. बीजेपी और पीएम मोदी पहले ही गांधी परिवार को परिवारवाद के मुद्दे पर घेरते रहे हैं. इसलिए फिलहाल प्रियंका रायबरेली सीट से चुनाव लड़ने के लिए रजामंद नजर नहीं आ रही है.
फिरोज नकवी कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी लगातार रैलियां कर रही हैं. वो जिस तरह से अपनी चुनावी रैलियों में पीएम मोदी के आरोपों का जवाब दे रही हैं, उससे कांग्रेस के पक्ष में माहौल भी बनाया है. मंगलसूत्र वाले मुद्दे की बात हो या फिर सोने चांदी वाले बयान पर प्रियंका गांधी ने जिस तरह अपनी मां सोनिया के मंगलसूत्र और इंदिरा गांधी द्वारा 1962 की जंग में जेवरात देने की बात रखी है, उससे माहौल बदला है. ऐसे में प्रियंका गांधी अगर चुनाव मैदान में उतरती हैं तो कांग्रेस के चुनावी प्रचार अभियान को देश भर में झटका लग सकता है. कांग्रेस की तरफ से राहुल और प्रियंका स्टार प्रचारक हैं, जिनके चुनावी पिच पर उतरने से असर पड़ सकता है.
दुर्ग में कमजोर पड़ी कांग्रेस
रायबरेली और अमेठी में कांग्रेस ने जिन नेताओं को आगे बढ़ाया, वो सभी साथ छोड़ गए हैं. अमेठी में डॉ. संजय सिंह बीजेपी के साथ हैं तो नईम गुर्जर अब सपा में हैं. ऐसे ही रायबरेली में दिनेश प्रताप सिंह कांग्रेस में रहते हुए एमएलसी बने, लेकिन अब बीजेपी से ताल ठोक रहे हैं. 2019 में सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़े थे और अब दावेदारों में शामिल हैं. कांग्रेस के टिकट पर 2017 में विधायक बनने वाली अदिति सिंह मौजूदा समय में बीजेपी में हैं. सरेनी से पूर्व विधायक अशोक सिंह और ऊंचाहार से पूर्व विधायक अजय पाल सिंह खामोशी अख्तियार किए हुए हैं. इसके अलावा कांग्रेस ने रायबरेली में जिन नेताओं को आगे बढ़ाया है, उनमें से तमाम नेता पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं.
रायबरेली और अमेठी दोनों ही लोकसभा क्षेत्र में एक भी कांग्रेस का विधायक नहीं है. रायबरेली की पांच में से चार सीटों पर सपा के विधायक हैं तो एक सीट पर बीजेपी का कब्जा है. इसी तरह अमेठी की पांच में से तीन विधायक बीजेपी और दो सपा के हैं. हालांकि, अमेठी के गौरीगंज से सपा विधायक राकेश प्रताप सिंह और रायबरेली के ऊंचाहार से सपा विधायक मनोज पांडेय अब बागी हो चुके हैं और बीजेपी खेमे के साथ खड़े हैं. गांधी परिवार ऐसे दरकते दुर्ग से चुनावी मैदान में उतरने का जोखिम भरा कदम नहीं उठाना चाहता है. इसीलिए रायबरेली और अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने से बच रहा है.
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