लोकसभा चुनाव 2024 की जंग जारी है और हर दल अपने-अपने दावों और वादों के साथ जनता का दिल जीतने की कोशिश में लगे हैं. हालांकि, इस बार के चुनाव से बाहुबल की राजनीति करने वाले गैंगस्टर और डकैत गायब दिख रहे हैं. कभी राजनीति की चमक-दमक से प्रभावित होकर कई डकैतों ने इसमें अपना दबदबा कायम कर लिया था. एक वक्त तो ऐसा भी था, जब बीहड़ में रहकर एक डकैत पूरे चुनाव की कहानी लिख डालता था. वह जंगल से ही तय कर देता था कि कौन प्रधान, विधायक और सांसद चुना जाएगा. खुद उसका बेटा-भतीजा विधायक और भाई सांसद बन चुके हैं.
बुंदेलखंड में आतंक का दूसरा नाम था ददुआ
एक वक्त ऐसा था, जब यूपी-एमपी में फैले बुंदेलखंड में आतंक का दूसरा नाम था ददुआ. वैसे भी बुंदेलखंड में पाठा के जंगल को मिनी चंबल के नाम से जाना जाता है. चित्रकूट के जंगलों से लेकर प्रयागराज और आसपास के क्षेत्रों की प्रधानी से लेकर विधायक और सांसद तक के चुनाव में ददुआ की अहम भूमिका होती थी. चित्रकूट से सटे मध्य प्रदेश के दूसरे जिलों तक भी उसका प्रभाव था. इसी प्रभाव से उसके भाई-भतीजा और बेटे सांसद और विधायक बन पाए.
न जात पर न पात पर, मुहर लगेगी ददुआ की बात पर
डकैत सरगना ददुआ की इतनी चलती थी कि लगभग 30 सालों तक उसने बुंदेलखंड में अपनी सरकार चलाई तो राजनीति में भी उसकी इतनी दखल थी कि कोई भी पार्टी उसकी मर्जी से ही प्रत्याशी खड़ा करती थी. कहा जाता है कि बीहड़ में कोई भी सरकारी या गैर-सरकारी काम हो, 10 फीसदी हिस्सा ददुआ को देना पड़ता था.
कई दलों के नेता रात के अंधेरे में उससे मिलने जाते थे और चुनाव में मदद मांगते थे. शेखर याद करते हैं कि तब बुंदेलखंड में दो नारे बेहद प्रसिद्ध थे. एक था, न जात पर न पात पर, मुहर लगेगी ददुआ की बात पर. इसके अलावा एक खास पार्टी के लिए नारा था, ‘मुहर लगेगी हा… पर वरना गोली पड़ेगी छाती पर.
भाई-भतीजा और बेटा बने सांसद-विधायक
2007 में एनकाउंटर में ददुआ की मौत के बाद भी उसका इतना दबदबा था कि खुद उसके परिवार के सदस्य राजनीति में आए तो सफलता कदम चूम गए. ददुआ के छोटे भाई बालकुमार पटेल साल 2009 में मिर्जापुर सीट से सांसद बने. इन्हीं बालकुमार का बेटा राम सिंह 2012 में प्रतापगढ़ की पट्टी सीट से विधायक चुना गया. खुद ददुआ का बेटा वीर सिंह चित्रकूट की कर्वी सदर सीट से विधायक बना. बताया जाता है कि ददुआ जातिगत समीकरण साधने में भी माहिर था.
बुंदेलखंड सहित मध्य प्रदेश के एक दर्जन जिलों के कुर्मियों पर उसका प्रभाव था. वह इसका भी फायदा उठाता था. इसीलिए वीर सिंह को कर्वी सीट से आसानी से चुनाव में जीत मिली थी. इससे पहले ददुआ की हनक के चलते साल 2000 में वीर सिंह को चित्रकूट जिला पंचायत का निर्विरोध अध्यक्ष भी चुना गया था.
बांदा-चित्रकूट संसदीय सीट से बालकुमार पटेल ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भी किस्मत आजमाई थी. हालांकि, कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े बाल कुमार पटेल को हार का सामना करना पड़ा था. तब सपा के श्यामा चरण गुप्ता और भाजपा प्रत्याशी आरके सिंह पटेल के बीच मुकाबला था, जिसमें आरके सिंह ने विजय हासिल की थी. इसी चुनाव में वीर सिंह को सपा ने मध्य प्रदेश की खजुराहो सीट से उम्मीदवार बनाया था पर उसे भी हार मिली थी. फिलहाल बालकुमार धोखाधड़ी के एक केस में जेल में है.
आखिर कौन था ददुआ
ददुआ का असली नाम शिव कुमार पटेल था. वह यूपी में चित्रकूट जिले के देवकली गांव का निवासी था और बड़े होने पर एक स्कूल में चपरासी नियुक्त हो हुआ था. इलाके में एक बात कही जाती है कि शिवकुमार के गांव के पास के एक गांव के जमींदार ने किसी बात पर नाराज होकर शिवकुमार के पिता को पीटा और नंगा कर घुमाने के बाद कुल्हाड़ी से हत्या कर दी. साथ ही शिवकुमार को डकैती के आरोप में जेल भेज दिया था.
इसका बदला लेने के लिए वह डकैत बना था. वहीं, कुछ और लोग इस बात की खिलाफत करते हैं. उनका कहना है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ था और ददुआ अपनी संगत और इच्छा से डकैत बना था.
पूरे क्षेत्र में था ददुआ का नेटवर्क
स्थानीय पत्रकार शेखर बताते हैं कि बुंदेलखंड में ददुआ का इतना जबरदस्त नेटवर्क था कि कोई भी बात उस तक तुरंत पहुंच जाती थी. एक बार कानपुर के एक बड़े व्यापारी को चित्रकूट में बड़ा काम मिला था. वह इसकी रूपरेखा तय करने चित्रकूट आए थे. इसकी जानकारी चंद लोगों को ही थी. चित्रकूट से वह कानपुर पहुंचे तो ददुआ का फोन पहुंच गया और उसने अपना हिस्सा मांगा. इसके बाद उन्होंने उस काम से हाथ खींच लिया.
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.