यूपी के सियासी मैदान से राजा-महाराजा बाहर तो कई ‘तीस मार खां’ ने भी बनाई दूरी

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव को लेकर लगभग सभी दलों ने अपने-अपने पत्ते खोल दिए हैं. यूपी की सियासत में इस बार राज परिवार से आने वाले सदस्य ही नहीं बल्कि कई सियासी दिग्गज नेता भी नजर आ रहे हैं. अमेठी राजघराने से लेकर कालाकांकर, पडरौना, भदावर, रामपुर के नवाब परिवार तक से कोई चुनावी मैदान में नहीं उतरा. बिजनौर के साहनपुर रियासत के राजा भारतेंद्र सिंह को टिकट नहीं मिला. इसके अलावा कादिर राणा से लेकर याकूब कुरैशी, आजम खान, शाहिद अखलाक, रिजवान जहीर, रमाकांत यादव और गुड्डू पंडित जैसे दिग्गज नेताओं के सियासी कुनबे से कोई चुनावी मैदान में नहीं उतरा है.

आजादी के बाद देश के तमाम राजघरानों की रियासतों के विलय के बाद तमाम राजा-महाराजा ने सियासत में कदम रखा. राज परिवार से आने वाले लोग विधायक और लोकसभा के चुनावी मैदान में उतरते और जीतते रहे हैं, लेकिन इस बार उत्तर प्रदेश में उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिल सका. अमेठी के राजा संजय सिंह, पडरौना के कुंवर आरपीएन सिंह, प्रतापगढ़ के कालाकांकर राजघराने की राजकुमारी रत्ना सिंह, जामो के कुंवर अक्षय प्रताप सिंह, भदावर के राजा महेन्द्र अरिदमन सिंह, रामपुर नवाब परिवार से बेगम नूरबानो, साहनपुर रियासत के राजा भारतेंद्र सिंह के चुनावी मैदान में न उतरने से उनके इलाके में सियासी रौनक फीकी है.

वहीं, यूपी के कई राजनीतिक परिवार के नेता चुनावी मैदान में नहीं उतरे हैं, जो पिछले तीन दशक से सूबे के मजबूत चेहरे माने जाते थे. उन्होंने या तो खुद ही चुनावी मैदान से बाहर रहने का फैसला किया है या फिर टिकट लेने के लिए लाले पड़ गए हैं. कादिर राणा से याकूब कुरैशी, आजम खान तक चुनाव लड़ते रहे हैं, लेकिन इस बार वो चुनावी पिच पर खुद नहीं उतरे हैं. ऐसे में उनके इलाके में भी वैसी सियासी रंगत नहीं है, जैसी उनके उम्मीदवार होने पर दिखती रही है.

अमेठी और कालाकांकर राजघराना दूर

उत्तर प्रदेश की सियासत में अमेठी और कालाकांकर राजपरिवार से कोई भी इस बार के चुनावी मैदान में नहीं उतारा है. अमेठी के राजा संजय सिंह कई बार लोकसभा सांसद रह चुके हैं, वे सुल्तानपुर और अमेठी से चुनाव लड़ चुके हैं और जीत भी दर्ज की है. बीजेपी ने उन्हें अमेठी और सुल्तानपुर किसी भी सीट से प्रत्याशी नहीं बनाया है, जिसके चलते चुनाव से बाहर हैं. इसी तरह कालाकांकर रियासत की राजकुमारी रत्ना सिंह प्रतापगढ़ से कई बार कांग्रेस से सांसद रही हैं और उनके पिता राजा दिनेश सिंह विदेश मंत्री तक रह चुके हैं. फिलहाल बीजेपी में हैं और इस बार पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया, जबकि प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ने की फिराक में थीं. अमेठी और कालाकांकर परिवार पहली बार सियासी मैदान से पूरी तरह नदारद है.

मांडा और जामो राज परिवार नदारद

मांडा राजघराने के सदस्य विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन अब उनके वंशज अब राजनीति में सक्रिय नहीं हैं. पूर्व पीएम वीपी सिंह के बेटे कुंवर अजेय सिंह फतेहपुर से चुनाव भी लड़े, लेकिन इस बार पूरी तरह से बाहर हैं. इसी तरह प्रतापगढ़ राज परिवार के राजा अजीत प्रताप सिंह ने 1962 और 1980 में प्रतापगढ़ से लोकसभा चुनाव जीता. उनके बेटे अभय प्रताप सिंह ने 1991 में सीट जीती, लेकिन पोते अनिल प्रताप सिंह कई प्रयासों के बावजूद असफल रहे. इस बार राजा अजीत प्रताप के परिवार से कोई भी चुनावी मैदान में नहीं है. जामो राजघराने के कुंवर अक्षय प्रताप सिंह प्रतापगढ़ से सांसद रह चुके हैं, लेकिन इस बार चुनावी मैदान में नहीं उतरे हैं. अक्षय प्रताप सिंह भदरी रियासत के राजा रघुराज प्रताप सिंह के रिश्ते में भाई लगते हैं, लेकिन इस बार चुनावी पिच पर नहीं नजर आ रहे हैं.

भदावर और साहनपुर रियासत

आगरा के भदावर राजघराने के अरिदमन सिंह बाह विधानसभा सीट से छह बार के पूर्व विधायक हैं और प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे हैं. 2009 में फतेहपुर सीकरी की लोकसभा सीट से चुनाव लड़ चुके हैं और उनकी पत्नी रानी पक्षालिका सिंह अभी बीजेपी की विधायक हैं. इस बार चुनावी मैदान से राजा अरिदमन सिंह पूरी तरह बाहर है. इसी तरह बिजनौर के साहनपुर रियासत के राजा भारतेंद्र सिंह बिजनौर लोकसभा सीट से सांसद रह चुके हैं और इस बार भी टिकट की दावेदारी कर रहे थे, लेकिन सीट आरएलडी के खाते में चली गई. इसके चलते राजा भारतेंद्र सिंह चुनावी मैदान से बाहर हो गए हैं.

रामपुर नवाब और आजम परिवार दूर

उत्तर प्रदेश की सियासत में रामपुर नवाब परिवार का दबदबा था. रामपुर नवाब परिवार से ताल्लुक रखने वाले लोग विधायक से लेकर लोकसभा सदस्य तक चुने गए, लेकिन इस बार के चुनावी मैदान में कोई नहीं उतरा. नवाब परिवार की बेगम नूर बानो रामपुर सीट से टिकट की दावेदार थीं, लेकिन यह सीट सपा के खाते में है. इसके चलते चुनाव नहीं लड़ पाई हैं और उनके बेटे नवाब काज़िम अली भी इस बार चुनावी समर से दूर हैं. आजादी के बाद पहली बार रामपुर का नवाब परिवार चुनावी पिच पर नहीं उतरा है.

वहीं, रामपुर सियासत में दूसरा नाम आजम खान का आता है, जो नवाब परिवार के विरोध में राजनीति करते रहे हैं. आजम खान विधायक से लेकर सांसद रहे हैं, लेकिन जेल में रहने के चलते इस बार चुनावी मैदान से बाहर हैं. आजम परिवार से कोई भी सदस्य इस बार चुनाव नहीं लड़ रहा है. हालांकि, आपातकाल के बाद से ही आजम परिवार रामपुर में चुनाव लड़ते रहे हैं, लेकिन कानूनी शिकंजा कसने के बाद सियासत पर ग्रहण लग गया.

कादिर राणा से याकूब कुरैशी तक आउट

मुजफ्फरनगर में मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले पूर्व सांसद कादिर राणा पिछले तीन दशक से सियासत कर रहे हैं. सभासद से सांसद तक का राजनीति सफर करने वाले कादिर राणा सपा से एमएलसी, आरएलडी से विधायक और बसपा से सांसद रह चुके हैं. मुस्लिम समीकरण के दम पर राजनीतिक पहचान स्थापित की और अब सपा में हैं. इस बार बिजनौर सीट से टिकट मांग रहे थे, लेकिन सपा ने उन पर भरोसा नहीं जताया तो चुनावी मैदान से बाहर हो गए. इसी तरह मेरठ की सियासत में हाजी याकूब एक बड़ा चेहरा माने जाते हैं और मुस्लिम नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाई है. पिछले ढाई दशक से याकूब कुरैशी चुनावी किस्मत आजमाते आ रहे हैं, लेकिन इस बार चुनावी मैदान में नहीं उतरे.

मेरठ जिले में मुस्लिम चेहरा माने जाने वालेपूर्व सांसद हाजी शाहिद अखलाक और उनके परिवार से चार दशक के सियासी इतिहास में पहली बार कोई सदस्य चुनावी मैदान में नहीं है. शाहिद अखलाक खुद मेयर से लेकर सांसद तक रह चुके हैं तो उनके पिता अखलाक कुरैशी मेयर से लेकर विधायक तक रहे हैं. शाहिद अखलाक बसपा और सपा दोनों ही पार्टियों में रहे हैं और दोनों ही पार्टी से जीते हैं, लेकिन इस बार टिकट नहीं मिला.

गुड्डू पंडित को नहीं मिला टिकट

गुड्डू पंडित बुलंदशहर के दिग्गज और बाहुबली नेता भगवान शर्मा उर्फ गुड्डू पंडित और उनके भाई मुकेश शर्मा का सपा की साइकिल पर सवारी करने का दांव सफल नहीं रहा. गुड्डू पंडित को किसी सीट से टिकट नहीं दिया और न ही मुकेश शर्मा को प्रत्याशी बनाया. गुड्डू पंडित तो अलीगढ़ और हाथरस सीट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं. बुलंदशहर की सियासत में अच्छी पकड़ रखते हैं, लेकिन इस बार उन्हें किसी भी पार्टी से प्रत्याशी नहीं बनाया. इसी तरह रिजवान जहीर बलरामपुर सीट से तीन बार सांसद रहे, लेकिन इस बार उन्हें टिकट नहीं मिला है. ऐसे में चुनावी मैदान से बाहर हैं.

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.