दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को चुनौती देने का मामला आज सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. केजरीवाल ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है. उनके वकील आज चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की कोर्ट में मामले को लेकर जल्द सुनवाई की मांग करेंगे. बीते दिन अरविंद केजरीवाल की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए उन्हें राहत नहीं दी थी. दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था की जांच एजेंसी ईडी द्वारा उनकी गिरफ्तारी सही है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी अवैध नहीं है. 6 महीने से ज्यादा समय तक बार-बार समन का पालन न करना उनकी गिरफ्तारी का एक कारण था. प्रवर्तन निदेशालय (ED) के पास अरविंद केजरीवाल को जांच में शामिल करने के लिए रिमांड के माध्यम से उनकी हिरासत मांगने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था.
कोर्ट ने कहा कि ये आरोप कि मामले में आरोपी से सरकारी गवाह बने लोगों के बयान ED ने जबरन लिए गए थे या उन्हें सरकारी गवाह निदेशालय के आदेश पर बनाया गया ये न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल उठाता है, जोकि कानून द्वारा शासित है, न कि किसी सरकार या जांच एजेंसी द्वारा.
‘आम आदमी या किसी मुख्यमंत्री के लिए अलग-अलग कानून नहीं’
अरविंद केजरीवाल और दूसरे आरोपियों के पक्ष में कथित तौर पर दिए गए बयानों को सामने नहीं रखने के दावों पर कोर्ट ने कहा कि इस स्तर पर यह सवाल ही नहीं उठ सकता. यह तर्क कि ED ने सिर्फ बाद के बयानों पर भरोसा किया है, न कि पहले के बयानों पर, जिनमें केजरीवाल का नाम नहीं था, इस स्तर पर स्वीकार्य नहीं है.
एक सीटिंग मुख्यमंत्री को गिरफ्तार करने के सवालों पर कोर्ट ने कहा कि किसी आम आदमी या किसी राज्य के मुख्यमंत्री को बुलाने या उनसे पूछताछ करने के लिए एजेंसी कोई अलग व्यवहार या प्रोटोकॉल नहीं अपना सकती. ये अदालत दो अलग-अलग प्रकार के कानून निर्धारित नहीं करेगी.
गिरफ्तारी पर जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने क्या कहा?
कोर्ट ने अपने आदेश में माना कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि रिश्वत का पैसा मनी लांड्रिंग के जरिए पहले ही गोवा चुनावों में साल 2022 में ही खर्च कर लिया गया, तो साल 2024 में रिकवरी या बचे हुए राशि की वसूली न होने के बारे में चार्जशीट दायर होने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा. अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को कानूनी रूप से सही मानते हुए जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने अपने आदेश में कहा कि गिरफ्तारी अवैध थी या नहीं, गिरफ्तारी के मुद्दे पर फैसला राजनीतिक बयानबाजी से नहीं, बल्कि कानून के दायरे में रहकर, कानून के इस्तेमाल से किया जाना चाहिए.
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