कांग्रेस के घोषणापत्र में सामाजिक न्याय का एजेंडा, इंडिया गठबंधन के दलों के लिए बन सकता है टेंशन

लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस ने गुरुवार को अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया है, जिसे ‘न्याय पत्र’ का नाम दिया है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पार्टी का घोषणा पत्र जारी करते हुए 25 गारंटी दी हैं. कांग्रेस ने महिला, किसान, बेरोजगार और नौजवानों को साधने के लिए बड़ा दांव चला है. सत्ता में आने से देश में जातिगत जनगणना कराने और आरक्षण की 50 फीसदी लिमिट को समाप्त करने का वादा किया है. कांग्रेस ने सामाजिक न्याय के जरिए 2024 का एजेंडा सेट करने की कोशिश की है, जो बीजेपी की टेंशन ही नहीं बल्कि इंडिया गठबंधन में शामिल कई दलों के लिए चिंता का सबब बन सकता है.

2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया है. कांग्रेस ने घोषणा पत्र में कहा है कि आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्ग की आबादी लगभग 70 फीसदी है, लेकिन अच्छी नौकरियों, अच्छे व्यवसायों और ऊंचे पदों पर उनकी भागीदारी कम है. किसी भी आधुनिक समाज में जन्म के आधार पर असमानता और भेदभाव बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है, ऐसे में कांग्रेस सत्ता में आने पर जातिगत जनगणना कराएगी और आरक्षण की 50 फीसदी लिमिट को खत्म करके सामाजिक असमानता की खाई को पाटने का काम करेगी. सामाजिक न्याय की दिशा में कदम बढ़ाकर कांग्रेस ने ओबीसी राजनीति पर आगे बढ़ने की रणनीति बनाई है.

कांग्रेस से विरोध में बने ओबीसी दल

बता दें कि आजादी के बाद से कांग्रेस की पूरी सियासत उच्च जातियों और गरीबों के इर्द-गिर्द सिमटी रही है. कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण हुआ करता था. कांग्रेस इन्हीं जातीय समीकरण के सहारे लंबे समय तक सियासत करती रही है. पारंपरिक रूप से कांग्रेस को पिछड़े वर्ग और आरक्षण का विरोधी माना जाता रहा है और बार-बार राजीव गांधी के दिए उस भाषण का भी हवाला दिया जाता है, जिसमें उन्होंने लोकसभा में मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने का विरोध किया था.

मंडल कमीशन के बाद देश की सियासत ही पूरी तरह से बदल गई और ओबीसी आधारित राजनीति करने वाले नेता उभरे, जिनमें मुलायम सिंह यादव से लेकर लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार जैसे मजबूत क्षत्रप रहे. देश में ओबीसी सियासत इन्हीं नेताओं के इर्द-गिर्द सिमटती गई और कांग्रेस धीरे-धीरे राजनीतिक हाशिए पर पहुंच गई. कांशीराम की दलित और सामाजिक न्याय राजनीति ने कांग्रेस का सियासी खेल ही बिगाड़ दिया. बीजेपी की राम मंदिर पॉलिटिक्स उभरी. ऐसे में मुस्लिम से लेकर दलित और ब्राह्मण वोटर कांग्रेस से खिसक गए.

कांग्रेस की उच्च जातीय सियासत के चलते ओबीसी समुदाय की तमाम जातियां उसका विरोध करती रही हैं. इसी विरोध में ओबीसी नेताओं ने कांग्रेस के खिलाफ खुद की सियासत खड़ी. कांग्रेस के विरोध में सपा से लेकर आरजेडी और बसपा तक बनी, जिनका सियासी एजेंडा सामाजिक न्याय ही रहा है. सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश में ओबीसी राजनीति को लेकर आगे बढ़े. कांशीराम ने देशभर में दलित और अति पिछड़ों के बीच सियासी चेतना जगाने का काम किया. आरजेडी के संस्थापक लालू प्रसाद यादव की पूरी पॉलिटिक्स ओबीसी केंद्रित रही और बिहार में अपना सियासी आधार बनाया. इसके अलावा डीएमके की पूरी सियासत शुरू से ही सामाजिक न्याय पर आधारित रही है.

कांग्रेस क्यों बढ़ाना चाहती है आरक्षण की सीमा?

कांग्रेस नेतृत्व बने इंडिया गठबंधन में सपा से लेकर आरजेडी और डीएमके तक शामिल है. कांग्रेस दलित-आदिवासी-ओबीसी समुदाय को जोड़ने का खाका तैयार कर रही है. जातिगत जनगणना से लेकर आरक्षण की सीमा बढ़ाने वाले वादे के पीछे कांग्रेस की सामाजिक न्याय की राजनीति है. राहुल गांधी ने कर्नाटक के कोलार की रैली में ‘जिसकी जितनी संख्या, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ का नारा दिया था. इसके बाद से पार्टी लगातार इस मुद्दे पर आगे बढ़ रही है और अब उसे 2024 के घोषणा पत्र में शामिल कर लिया है.

कांग्रेस 2024 के चुनाव में भले ही बीजेपी से मुकाबला करने के लिए सामाजिक न्याय की दिशा में कदम बढ़ा रही है. इसके लिए राहुल गांधी के उस नारे को भी आगे रखा जा रहा ‘जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’. इस तरह कांग्रेस देश में आबादी के लिहाज से आरक्षण देने की पैरवी कर रही है, जो बात सपा, बसपा, आरजेडी करते रहे हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सामाजिक न्याय का मुद्दा भले ही सपा, आरजेडी और जेएमएम जैसे दलों को सूट कर रहा हो, लेकिन आगे काफी उनके लिए चिंता का सबब बन सकता है.

ओबीसी आधार वाले दलों के सामाजिक न्याय की राजनीति को ही कांग्रेस ने अपना एजेंडा बना लिया है और 2024 का चुनाव पूरी तरह से उसी के इर्द-गिर्द लड़ने की स्ट्रैटेजी है. ऐसे में आने वाले समय में कांग्रेस ओबीसी समुदाय को आकर्षित कर सकती है क्योंकि जातिगत जनगणना और आरक्षण की लिमिट को बढ़ाने की मांग वे लंबे समय से कर रहे हैं. कांग्रेस अगर इस बहाने ओबीसी जातियों के बीच अपनी पैठ बनाने में सफल रहती है तो सपा, आरजेडी और बसपा जैसे दलों के लिए भविष्य की राह काफी मुश्किलों भरी हो सकती है.

यूपी में क्यों नहीं उबर पाई कांग्रेस

कांग्रेस और राहुल गांधी जिस तरह से मुखर होकर ओबीसी, दलित और आदिवासी समुदाय के मुद्दे उठा रहे हैं, उस तरह सपा-आरजेडी नहीं उठा रहे हैं. आरजेडी अब मुस्लिम-यादव के बजाय ए-टू-जेड यानि सर्व समाज की राजनीति करती नजर आ रही है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव भले ही पीडीए की बात कर रहे हों, लेकिन जातिगत जनगणना और आरक्षण लिमिट को खत्म करने की मांग को लेकर काफी मुखर नजर नहीं आते हैं, ऐसी में कांग्रेस और राहुल गांधी जिस तरह से सामाजिक न्याय के मुद्दे पर आक्रमक हैं, वो ओबीसी को अपनी ओर आकर्षित कर सकती है.

कांग्रेस ओबीसी समुदाय को अपने साथ जोड़ने में सफल हो जाती है तो आरजेडी और सपा के लिए भी चिंता का सबब बनेगी. यूपी में सपा और बिहार में आरजेडी ने मुस्लिम वोटों के अपने साथ लेकर कांग्रेस की सियासी जमीन पूरी तरह से कब्जा लिया था. इसके चलते कांग्रेस अभी तक यूपी और बिहार में उभर नहीं पाई. ऐसे में अगर कांग्रेस ओबीसी, दलित वोटों को अपने साथ जोड़ने में सफल रहती है तो सबसे ज्यादा खतरा अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव के लिए हो सकता है.

बीजेपी के लिए कैसे बढ़ाएगी टेंशन?

बीजेपी पिछले दो लोकसभा चुनाव से ओबीसी वोटों के सहारे सत्ता पर काबिज हुई है. बीजेपी 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे करके ओबीसी वोटों का भरोसा जीतने में सफल रही है और अपना एक नया मजबूत वोट बैंक बनाया है. हालांकि, एक समय बीजेपी को ब्राह्मण और बनियों की पार्टी कहा जाता, लेकिन पार्टी ने नैरेटिव से बाहर निकलकर तमाम ओबीसी और दलित जातियों को अपने साथ जोड़ने का काम किया.बीजेपी उन्हीं के वोटों के बदौलत देश की सत्ता ही नहीं बल्कि राज्यों की सत्ता पर भी पूरी ताकत से काबिज है.

बीजेपी के विनिंग फॉर्मूले से कांग्रेस ने 2024 में पीएम मोदी को हराने का सियासी ताना बाना बुना है, जिसके लिए जातिगत जनगणना और 50 फीसदी आरक्षण लिमिट को खत्म करने का वादा किया है. बीजेपी ने जातिगत जनगणना कराने से साफ इनकार कर चुकी है और कांग्रेस अब इस पर मुखर है. अगर कांग्रेस 2024 के चुनाव में सामाजिक न्याय का एजेंडा सेट करने में कामयाब रही तो बीजेपी के लिए टेंशन बढ़ा सकती है.

कांग्रेस ने राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ के चुनाव में इसे मुद्दा बनाया था, लेकिन सफल नहीं रही. इसके बावजूद कांग्रेस ने 2024 के चुनाव में फिर से जातिगत सर्वे और आरक्षण का मुद्दा उठाया है, जिसका सीधा संकेत है कि वो किसी भी सूरत में सामाजिक न्याय के एजेंडे को नहीं छोड़ना चाहती.

दलित, ओबीसी समुदाय बिगाड़ सकते हैं सियासी खेल

कांग्रेस की रणनीति के लिहाज से ओबीसी काफी अहम हैं, जिसके चलते ही पार्टी अपना पूरा फोकस पिछड़ा वर्ग पर करने की रणनीति बनाई है. मंडल कमीशन के लिहाज से देखें तो करीब 52 फीसदी ओबीसी समुदाय, 16.6 फीसदी दलित और 8.6 फीसदी आदिवासी समुदाय है. इस तरह देश में करीब 75 फीसदी तीनों की आबादी है, जिस पर कांग्रेस की नजर है.

देश में दलित, ओबीसी समुदाय किसी भी राजनीतिक दल का चुनाव में खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. ऐसे में कांग्रेस सामाजिक न्याय के सहारे उन्हें अपने साथ जोड़ने की कवायद में है, जिसके लिए जातिगत जनगणना और 50 फीसदी आरक्षण लिमिट को खत्म करने का वादा किया है. कांग्रेस अगर ओबीसी समुदाय को साधने में सफल हो जाती है तो बीजेपी ही नहीं ओबीसी की सियासत करने वाली कई क्षेत्रीय दलों के लिए भी सियासी संकट खड़ा हो सकता है.

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