पेटलावद। अगर आपका बच्चा भी गली-मोहल्लों में एक रुपये में बिकने वाली कैंडी आइसक्रीम का सेवन कर रहा है तो संभल जाइए। रासायनिक रंगों से बनी तरल कैंडी किस तरह दुकानों में आ रही है। इसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसका सेवन बच्चे की सेहत बिगाड़ देगा।
बाजार में सस्ते सामानों का थोक और फुटकर का यह कारोबार जमकर चल रहा है। ठंडाई के नाम पर खुलेआम बिक रही इस बीमारी की तरफ खाद्य एवं औषधि प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। गर्मी शुरू होते ही मोहल्लों और ग्रामीण क्षेत्रों में एक रुपये में मिलने वाली कैंडी की बिक्री तेज हो गई है। पारदर्शी पॉलीथीन में भरे रासायनिक रंगों के मीठे घोल के पैकेट कार्टूनों में भरकर बाजार में आ रहे है। यह पैकेट दुकानदारों को करीब 25 से 30 रुपये मिलता है। इसे दुकानदार एक रुपये में बेच रहे है। एक पैकेट पर दस रुपये करीब का मुनाफा होने के कारण दुकानदारों ने भी इसकी खपत बढ़ा दी है।
पॉलीथिन में बंद रासायनिक मीठा घोल बच्चों को बेहद पसंद है, इसलिए बाजार में रोजाना करीब 1 हजार पैकेट कैंडी बेची जा रही है। केंडी के रैपर पर किसी कंपनी का नाम नहीं होता है। इसकी कोई जानकारी भी चस्पा नहीं है।
बोतलों में बंद मीठे तरल की बिक्री भी जोरों पर
कैंडी की तरह ही मार्केट में बोतलों में बंद तरल भी बेचा जा रहा है। ब्रांडेड शीतल पेय की तरह छोटी-छोटी बोतलों में यह तरल 5 से 10 रुपये में बिक रहा है। इन बोतलों पर नाम तो दर्ज किए गए हैं। लेकिन इस पर निर्माण कंपनी का पता और तरल पैक होने की कोई तारीख नहीं दर्शाई गई है।
लापरवाह बना खाद्य एवं औषधि विभाग
क्षेत्रभर में शुद्ध के लिए युद्ध अभियान चला रहे खाद्य एवं औषधि प्रशासन की टीम अभी तक पेटलावद सहित आसपास के ग्रामीण इलाकों में ऐसी कोई बड़ी कार्रवाई नही कर सकी है। हमेशा छूटपूट कार्रवाई कर विभाग अपने कार्य से इतिश्री कर लेता है। जिससे ऐसे दुकानदारों के हौंसले बुलंद है। कार्रवाई की जा रही हैइस संबंध में जिला खाद्य सुरक्षा अधिकारी राहुलसिंह अलावा से चर्चा की तो उनका कहना है कि हमारे द्वारा सतत कार्रवाई की जा रही है।
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