चुनाव पर पाबंदी या जेल… आचार संहिता नहींं मानी तो राजनीतिक दलों पर क्या एक्शन ले सकता है इलेक्शन कमीशन?
देश में आम चुनाव का शंखनाद हो चुका है. 16 मार्च को चुनाव आयोग ने घोषणा की कि सात चरणों में मतदान होगा और 4 जून को मतगणना. इसके साथ ही आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है. मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने सभी राजनीतिक दलों से कहा है कि वे आचार संहिता का पालन करें. आइए जान लेते हैं कि आचार संहिता के उल्लंघन पर राजनीतिक दलों पर क्या कार्रवाई हो सकती है?
दरअसल, आदर्श आचार संहिता और कुछ नहीं, बल्कि चुनाव आयोग की ओर से जारी किए गए दिशानिर्देशोंं का एक संग्रह है, जिनके जरिए वह चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को नियंत्रित करता है. इन दिशानिर्देशोंं में चुनाव घोषणा पत्र के लिए नियम से लेकर भाषण, प्रचार, रैली, जुलूस से लेकर मतदान के दिन क्या करें और क्या न करें, जैसी तमाम जानकारियां होती हैं. इसका उद्देश्य चुनाव को स्वच्छ और निष्पक्ष तरीके से कराना होता है.
चुनाव की घोषणा के साथ ही लागू हो जाती आचार संहिता
किसी भी चुनाव की घोषणा के साथ ही आचार संहिता तुरंत लागू हो जाती है. लोकसभा चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता पूरे देश में जबकि विधानसभा के चुनाव के दौरान यह पूरे राज्य में लागू होती है. चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की तारीखों की घोषणा से ही इसे लागू माना जाता है और चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक लागू रहती है. इस बार भी आम चुनाव की घोषणा के साथ ही यह पूरे देश में लागू हो चुकी है. पूरे चुनाव के दौरान इसका पालन होगा.
तमाम तरह की पाबंदियां होती हैं लागू
आदर्श आचार संहिता में बताया जाता है कि क्या करना है और क्या नहीं. इसी से निर्धारित होता है कि राजनीतिक पार्टियों, उम्मीदवारों और सत्ताधारी दल को चुनाव प्रक्रिया के दौरान किस तरह का व्यवहार करना होगा. चुनाव प्रचार, जुलूस, बैठकों से लेकर मतदान के दिन की सारी गतिविधियां और सत्ता पर आसीन राजनीतिक दल के कामकाज इसी के जरिए निर्धारित होते हैं. इसके अनुसार चुनाव प्रक्रिया के दौरान प्रधानमंत्री को छोड़कर कोई भी मंत्री अपने आधिकारिक दौरे को चुनाव प्रचार के साथ मिक्स नहीं कर सकता है. प्रचार के लिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. सरकारी विमानों या वाहनों का इस्तेमाल चुनाव प्रचार के लिए नहीं किया जा सकता है.
तबादला-नियुक्ति पर होती है रोक
इस दौरान चुनाव से जुड़े किसी भी अधिकारी-कर्मचारी का तबादला या नियुक्ति सरकार नहीं कर सकती है. बहुत जरूरी होने पर चुनाव आयोग की अनुमति से ऐसा किया जा सकता है. चुनाव आयोग जरूरत पड़ने पर खुद अफसरोंं को हटाने या नियुक्त करने का आदेश जारी करता है, जैसे उसने आचार संहिता लागू होने के बाद छह राज्यों के गृह सचिवों को हटाने का आदेश दिया है.
सरकारी खर्च पर विज्ञापन नहीं
आचार संहिता के दौरान इलेक्ट्रॉनिक या प्रिंट मीडिया में सरकारी खर्च पर सरकार की उपलब्धियां नहीं बताई जा सकतीं और न ही किसी पार्टी या उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार किया जा सकता है. सरकार की उपलब्धियां बताने वाले होर्डिंग-बैनर और दूसरे विज्ञापनों पर भी रोक लग जाती है. पहले से लगे होर्डिंग-बैनर भी हटा दिए जाते हैं. इस दौरान कोई नई सरकारी योजना शुरू नहीं हो सकती. किसी योजना पर पहले से कोई काम जारी है तो वह चलता रहता है. यानी कोई नया शिलान्यास-लोकार्पण आदि नहीं हो सकता है.
ये हो सकती हैं कार्रवाइयां
जहां तक आदर्श आचार संहिता के कानूनी पहलू की बात है तो यह वास्तव में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के मार्गदर्शन के लिए तैयार किए गए मानकों का एक समूह मात्र है, जिसे राजनीतिक दलों की ही सहमति से तैयार किया गया है. आचार संहिता के उल्लंघन पर चुनाव आयोग राजनीतिक दलों, उनके प्रचारकों या उम्मीदवारों को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगता है. इस नोटिस के जवाब में संबंधित को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होती है. वह लिखित में अपनी गलती मानते हुए बिना शर्त माफी भी मांग सकता है. ऐसा नहीं करने पर चुनाव आयोग लिखित में उक्त के लिए निंदा पत्र जारी कर सकता है.
वैसे चुनाव आयोग को अगर लगता है कि कोई नेता प्रचार के दौरान चुनाव के माहौल को खराब कर रहा है तो वह उस पर प्रतिबंध लगा सकता है. इसके लिए संविधान के आर्टिकल 324 में आयोग को अधिकार दिए गए हैं. प्रतिबंध लगने के बाद तभी हटाया जा सकता है, जब वह नेता माफी मांगे और यह वादा करे कि भविष्य में आचार संहिता का पालन करेगा. कोई राजनीतिक दल या उम्मीदवार आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी पाया जाता है तो दोषी के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाई जा सकती है. इसके अलावा आयोग आपराधिक मुकदमा भी दर्ज करा सकता है. ऐसे में दोषी पाए जाने पर जेल की सजा तक हो सकती है.
वोट के लिए जाति, धर्म या भाषा के आधार पर तनाव पैदा करने, प्रचार के लिए पूजा स्थल का उपयोग करने, मतदाताओं को घूस देने, डराने-धमकाने, मतदाताओं को बूथों तक लाने- ले जाने, मतदान केंद्र के सौ मीटर दायरे में प्रचार करने और सार्वजनिक बैठकोंं में बाधा डालने पर कार्रवाई की जा सकती है.
इसके अलावा मतदान के लिए पैसे-शराब या लुभावने उपहार बांटने और मतदान के 48 घंटे पहले सार्वजनिक बैठक करने पर भी कानून के तहत कदम उठाए जा सकते हैं. इसके लिए आचार संहिता के बजाय भारतीय न्याय संहिता (पहले भारतीय दंड संहिता) के लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 का सहारा लिया जाता है. इसमें चुनावी अपराध और भ्रष्ट आचरण को सूचीबद्ध किया गया है, जिसके आधार पर दंड का प्रावधान है.
कब-कब लगा उल्लंघन का आरोप?
पिछले चुनावों में आदर्श चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के मामले भी सामने आ चुके हैं. नजदीकी उदाहरणोंं की बात करें तो नवंबर 2003 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को नोटिस जारी किया था. उन्होंने एक चुनावी रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर टिप्पणी की थी कि उन्होंने भेल को अपने बड़े उद्योगपति मित्रों को क्यों सौंप दिया. चुनाव आयोग ने असत्यापित आरोप लगाने पर उनसे अपनी टिप्पणी पर स्पष्टीकरण मांगा था.
गुजरात विधानसभा चुनाव-2017 के दौरान कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही एकदूसरे पर आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाया था. भाजपा ने मतदान के 48 घंटे पहले राहुल गांधी के एक टीवी चैनल पर प्रसारित साक्षात्कार को आचार संहिता का उल्लंघन बताया था. वहीं, कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि अहमदाबाद में अपना वोट डालने के बाद मतदान के दौरान ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोड शो किया था.
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान अपने भाषण से माहौल खराब करने के आरोप में भाजपा नेता अमित शाह और सपा नेता आजम खान पर आयोग ने चुनाव प्रचार करने पर प्रतिबंध लगा दिया था.
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