रायबरेली-अमेठी से गांधी परिवार नहीं तो फिर कौन लड़ेगा लोकसभा चुनाव?

उत्तर प्रदेश में गांधी परिवार के दुर्ग के तौर पर रायबरेली और अमेठी लोकसभा सीट को माना जाता है. 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी क्षेत्र के लोगों ने कांग्रेस से मुंह मोड़ा तो राहुल गांधी ने केरल को अपना सियासी ठिकाना बना लिया है. रायबरेली सीट से लोकसभा सांसद रहीं सोनिया गांधी ने अब राज्यसभा सदस्य बनने के बाद चुनावी राजनीति से किनारा कर लिया है. ऐसे में रायबरेली से प्रियंका गांधी और अमेठी से राहुल गांधी के लोकसभा चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन अब दोनों ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों ने ही अमेठी और रायबरेली से चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हैं. इस तरह से गांधी परिवार का कोई भी सदस्य अपनी इन परंपरागत सीटों से आगामी चुनाव नहीं लड़ेगा. राहुल गांधी केरल की वायनाड सीट से ही चुनाव मैदान में होंगे. गांधी परिवार के दूरी बनाने के बाद अब सभी की निगाहें इस बात पर है कि अमेठी और रायबरेली सीट से कौन चुनाव लड़ेगा. कांग्रेस अपना उम्मीदवार किसे बनाएगी?

नेहरू-गांधी परिवार का रहा है भावनात्मक रिश्ता

अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीट से नेहरू-गांधी परिवार का एक भावनात्मक रिश्ता रहा है. कांग्रेस और नेहरू-गांधी परिवार का रिश्ता यहां से काफी पहले जुड़ गया था. रायबरेली के साथ नेहरू-गांधी परिवार का रिश्ता चार पीढ़ियों का है, जबकि अमेठी सीट से गांधी परिवार का लगाव 1977 में हुआ है, जब संजय गांधी ने चुनाव लड़ा था. रायबरेली से फिरोज गांधी चुनाव लड़कर सांसद बने और उसके बाद इंदिरा गांधी ने इसे अपनी कर्मभूमि बनाया. अमेठी से संजय गांधी और उसके बाद राजीव गांधी चुनाव लड़ते रहे. फिर सोनिया और राहुल ने अमेठी को अपनी कर्मभूमि बनाया.

अमेठी में राहुल गांधी को बीजेपी की स्मृति ईरानी से हार मिले पांच साल होने जा रहे हैं, लेकिन कांग्रेस और गांधी परिवार के लिए अभी तक यह जख्म हरे हैं. ऐसे में गांधी परिवार का लगाव और भावनात्मक रिश्ता अमेठी से पहले की तरह नहीं रहा. इसीलिए राहुल गांधी अब वायनाड सीट से ही चुनाव लड़ने का फैसला कर रखा है. इसी तरह साल 1980 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी रायबरेली और आंध्र प्रदेश की मेंडक (तेलंगाना) सीट से चुनाव लड़ी थीं और दोनों ही सीटों से जीतने में कामयाब रही थीं, लेकिन उन्होंने रायबरेली सीट से इस्तीफा देकर मेंडक सीट को चुना. इसके बाद इंदिरा गांधी कभी भी रायबरेली सीट से चुनाव नहीं लड़ीं और अब राहुल गांधी भी उसी नक्शेकदम पर है.

पहले भी ये सीट छोड़ चुका है गांधी परिवार

रायबरेली और अमेठी सीट से गांधी परिवार चुनावी मैदान में इस बार नहीं होगा. राजीव गांधी की हत्या के बाद आठ साल तक गांधी परिवार का कोई भी सदस्य लोकसभा चुनाव में नहीं लड़ा था. हालांकि, इंदिरा गांधी ने रायबरेली सीट छोड़ी थी तो उन्होंने अपनी जगह किसी बाहरी को रायबरेली सीट से चुनाव नहीं लड़ाया था बल्कि अपने परिवार के रिश्तेदार पर ही भरोसा जताया था. इसी तरह राजीव गांधी के निधन के बाद अमेठी सीट से चुनाव मैदान में उतारने की बारी आई तो गांधी परिवार के करीबी नेता को उम्मीदवार बनाया गया है. ऐसे में चर्चा है कि इस बार भी गांधी परिवार के किसी करीबी नेता को ही चुनावी मैदान में उम्मीदवार बनाया जा सकता है.

इंदिरा गांधी के बाद किस पर भरोसा

आजादी के बाद रायबरेली से फिरोज गांधी पहले सांसद रहे. इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रायबरेली को अपनी कर्मभूमि बनाया और 1967 के लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की. इसके बाद 1971 के चुनावों में भी इंदिरा गांधी यहां से जीतीं, लेकिन 1977 में उन्हें जनता पार्टी के राजनारायण के हाथों हार मिली. 1980 में इंदिरा गांधी रायबरेली के साथ-साथ मेंडक (तेलंगाना) सीट से चुनाव लड़ी. दोनों सीटों से वो जीतने में सफल रही, लेकिन उन्होंने रायबरेली सीट छोड़ दी. इसके बाद करीब 43 साल तक रायबरेली सीट से गांधी परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन किसी बाहरी पर भी कांग्रेस ने भरोसा नहीं जताया बल्कि दूर के रिश्तेदार को ही टिकट दिया.

इंदिरा गांधी के रायबरेली सीट छोड़ने के बाद कांग्रेस से अरुण नेहरू चुनाव लड़े थे और जीतकर सांसद बने थे. अरुण नेहरू मोती लाल नेहरू के चचेरे भाई भाई श्याम लाल नेहरू के पौत्र थे. इस तरह गांधी फैमिली का परिवारिक रिश्ता था. राजीव गांधी जब राजनीति में आए तो अरुण नेहरू उनके सलाहकार थे, लेकिन बाद में कांग्रेस छोड़कर वीपी सिंह के साथ हो गए. अरुण नेहरू 1981 और 1984 में रायबरेली से सांसद बने, लेकिन जब जनता दल में शामिल हुए तो कांग्रेस ने शीला कौल को टिकट दिया.

गांधी परिवार की रिश्तेदार थीं शीला कौल

शीला कौल इंदिरा गांधी के मामा की पत्नी थीं. कमला नेहरू की भाभी थीं. शीला कौल 1989 और 1991 में रायबरेली सीट से सांसद चुनी गईं. शीला कौल के बाद कांग्रेस ने उनके बेटे विक्रम कौल को 1996 में रायबरेली से प्रत्याशी बनाया, पर वो जीत नहीं सके. इसके बाद 1998 में शीला कौल की बेटी दीपा कौल को कांग्रेस ने रायबरेली से उम्मीदवार बनाया, लेकिन वो भी जीत नहीं सकी. 1999 में कांग्रेस ने कैप्टन सतीश शर्मा को टिकट दिया, जो कांग्रेस के टिकट पर रायबरेली से सांसद बने.

कैप्टन शर्मा वैसे गांधी परिवार से नहीं थे, लेकिन राजीव गांधी के दोस्त थे. राजीव गांधी ही उन्हें राजनीति में लेकर आए थे. 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद अमेठी लोकसभा सीट से कांग्रेस का टिकट कैप्टन सतीष शर्मा को मिला था. सोनिया गांधी ने उस समय राजनीति में आने से इनकार दिया था, जिसके बाद कांग्रेस ने कैप्टन शर्मा को अमेठी से प्रत्याशी बनाया. कैप्टन शर्मा 1991 और 1996 में अमेठी से जीतकर सांसद बने और केंद्र में मंत्री रहे. इसके बाद 1998 में भी कैप्टन शर्मा अमेठी से चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके.

सोनिया गांधी ने राजनीति में कदम रखा और 1999 में चुनाव लड़ने के लिए उतरी तो अमेठी क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि बनाया. कैप्टन सतीष शर्मा ने अमेठी सीट छोड़कर रायबरेली को चुना. सोनिया अमेठी से सांसद चुनी गई और कैप्टन शर्मा रायबरेली से चुनाव जीते. इसके बाद राहुल गांधी ने सियासत में कदम रखा तो सोनिया गांधी ने अमेठी सीट उनके लिए छोड़ दी और खुद रायबरेली शिफ्ट हो गईं. राहुल गांधी ने अमेठी से तीन चुनाव लगातार जीते और सोनिया गांधी रायबरेली से लगातार चार बार चुनाव जीत दर्ज करने में कामयाब रहीं. 2019 में राहुल अमेठी से हार गए, लेकिन सोनिया रायबरेली से जीतने में सफल रहीं.

गांधी परिवार की जगह कौन लड़ेगा चुनाव?

2024 में अमेठी और रायबरेली से गांधी परिवार से कोई भी सदस्य चुनाव नहीं लड़ेगा. ऐसे में सवाल यही है कि कौन उम्मीदवार रायबरेली और कौन अमेठी से किस्मत आजमाएगा. सपा के साथ सीट शेयरिंग में यह दोनों सीटें कांग्रेस को मिली हैं. माना जा रहा है कि रायबरेली से प्रियंका गांधी अगर चुनाव नहीं लड़ती हैं तो गांधी परिवार का कोई करीबी नेता ही किस्मत आजमाएगा. रायबरेली से सोनिया गांधी के सांसद प्रतिनिधि किशोरी लाल शर्मा हैं, जिन्हें पार्टी चुनावी मैदान में उतार सकती है. केएल शर्मा चुनावी तैयारी में जुटे हैं और पिछले 20 साल से रायबरेली में वो सोनिया गांधी का काम देख रहे हैं. माना जा रहा है कि अमेठी में भी गांधी परिवार के करीबी किसी नेता की किस्मत खुल सकती है. इस लिस्ट में कई नाम है

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